जब संसद में लहराई गईं नोटों की गड्डियां, जानें और भी हैरान करने वाले किस्से

Update: 2021-08-13 11:50 GMT

संसद का मानसून सत्र इस बार हंगामे की भेंट चढ़ गया. सत्र के आखिरी दिन जो हुआ वो देश और लोकतंत्र के लिए बेहद शर्मसार कर देने वाला था. राज्यसभा में इश्योरेंस बिल पेश किए जाने के दौरान सदन में जमकर हंगामा हुआ और हाथापाई की गई. मार्शल बुलाने की नौबत तक आ गई. सत्तापक्ष और विपक्ष एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं. हालांकि, संसद पहली बार शर्मसार नहीं हुई बल्कि कई बार ऐसे ही लोकतंत्र के मंदिर की गरिमा ठेस पहुची है.

इश्योरेंस बिल पर संसद में हाथापाई
मोदी सरकार के सात साल में पहली बार है, जब संसद का संत्र हंगामे की भेंट चढ़ा है. वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बुधवार जनरल इंश्योरेंस अमेंडमेंट बिल राज्यसभा में पेश किया, जिसका पर जमकर हंगामा हुआ. विपक्षी दल के कुछ सदस्य मेज पर चढ़कर जोरदार नारेबाजी की. कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बाजवा डेस्क पर चढ़कर काला कानून वापस लो का नारा लगाते हुए उन्होंने आसन की ओर रूल बुक भी फेंक दी. मार्शल बुलाने की नौबत तक आ गई और सदन को स्थागित करना पड़ गया.
राज्यसभा के अध्यक्ष वेंकैया नायडू ने कहा कि मॉनसून सत्र जिस तरह बाधित हुई और इस दौरान विपक्ष का जो आचरण रहा, उसको लेकर वो इतने दुखी हैं कि रात भर सो भी नहीं पाए. नायडू ने कहा कि जो कुछ सदन में हुआ उसने लोकतंत्र के मंदिर को अपवित्र किया है. ऐसा बोलते बोलते नायडू भावुक भी हो गए थे. साथ ही लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का कहना था कि वो इस बात से आहत हैं कि जनसरोकार के मुद्दों को लेकर सदन में चर्चा नहीं हो पाई और सदन ठीक से नहीं चल सका.
विपक्षी नेताओं ने सरकार पर लोकतंत्र की हत्या करने और बाहर के मार्शल के भेष में लोगों को बुलाकर महिला सांसदों के साथ मारपीट का आरोप लगाया. एनसीपी प्रमुख शरद पवार का कहना था कि 55 सालों से वो संसद के सदस्य हैं, लेकिन उन्होंने संसद में इस तरह के दृश्य कभी नहीं देखे हैं. कांग्रेस पार्टी के मुख्य सचेतक जयराम रमेश का कहना था ये सबकुछ सरकार ने 'जनरल इंश्योरेंस बिल' को ज़बरदस्ती पारित करवाने के लिए किया था. वो कहते हैं कि विपक्ष इस बिल को संसद की सेलेक्ट कमेटी के पास भिजवाने की मांग कर रहा था.
संसद के हंगामे पर केंद्र सरकार के आठ मंत्रियों ने एक साथ प्रेस कॉन्‍फ्रेंस कर कहा है कि इस मामले में विपक्ष को माफी मांगनी चाहिए. सत्तापक्ष का आरोप है कि राज्यसभा में विपक्षी सदस्यों ने बिल को फाड़ा और कागज के टुकड़ों को आसन की तरफ फेंका. इस मामले में विपक्ष को माफ़ी मांगनी चाहिए. केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि मॉनसून सत्र में विपक्ष का एकमात्र एजेंडा अराजकता पैदा करना था, जो कुछ भी हुआ, वह शर्मसार करने वाला था. विपक्ष घड़ियाली आंसू बहाने के बजाय देश से माफी मांगे.
संसद में जब लहराई गईं नोटों की गड्डियां
साल 2008 में परमाणु समझौते के विरोध में यूपीए सरकार से वामदलों ने समर्थन वापस ले लिया था, जिसके बाद मनमोहन सरकार को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था. मनमोहन सरकार ने विश्वास मत तो जीत लिया लेकिन इस दौरान भारतीय संसद एक शर्मसार कर देने वाली घटना की गवाह बनी. विश्वास मत पर आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर चल ही रहा था कि अचानक बीजेपी के तीन सांसद अशोक अर्गल, फग्गन सिंह कुलस्ते और महावीर भगोरा (राजस्थान) नोटों की गड्डियां लेकर स्पीकर की सीट के सामने पहुंच गए. उन्होंने आरोप लगाया कि यह रकम उन्हें विश्वास मत के पक्ष में मतदान करने के लिए दी गई थी. इस घटना से पूरे देश की जनता भौंचक्की रह गई थी और लोकतंत्र मंदिर शर्मसार हुई. तत्कालीन लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी ने इस घटना को भारत के संसदीय इतिहास की सबसे दुर्भाग्यपूर्ण घटना करार दिया था.
महिला आरक्षण बिल पर सभापति से धक्का मुक्की
साल 2010 में राज्यसभा कि इज्जत उस समय तार-तार होती नजर आई जब, महिला आरक्षण विधेयक की मुख़ालिफ़त कर रहे विराधियों ने सभापति हामिद अंसारी के साथ छीना-झपटी करते हुए बिल की प्रतियां फाड़ दी. संसदीय इतिहास में पहली बार संसद को शर्मसार करने वाला इस तरह का असंसदीय व्यवहार किया गया. संसद के इतिहास में यह एक काला अध्याय के तौर पर जुड़ गया.
दरअसल, महिला दिवस के दिन कांग्रेस नेता और उस समय के कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने जैसे ही महिला आरक्षण बिल को सदन के पटल पर रखा, विधेयक का विरोध कर रहे आरजेडी और सपा सांसद सभापति हामिद अंसारी के असान तक जा पहुंचे. आरजेडी के सुभाष यादव व राजनीति प्रसाद और सपा सांसद कमाल अख्तर ने हामिद अंसारी से छीना-झपटी करते हुए बिल की प्रतियां छीन लीं और उसे फाड़कर सदन में लहरा दिया. इसके बाद पूरे देश ने देखा कि कैसे सदन की गरिमा तार-तार हुई.
राज्यसभा में फटा लोकपाल विधेयक
साल 2011 के शीतकाली सत्र में देश को संसद से एक मजबूत लोकपाल विधेयक की उम्मीद थी, लेकिन इस सत्र के अंतिम दिन जो हुआ उसने संसद की गरिमा पर कालिख पोत दी. रात के करीब 12 बजे सरकार वोटिंग से भाग गई और सरकार ने तर्क दिया कि सदन तीन दिनों के लिए था और रात 12 बजे के बाद इसे नहीं चलाया जा सकता. हालांकि, इससे पहले राजद सांसद राजनीति प्रसाद ने लोकपाल विधेयक की प्रतियां फाड़कर संसद के पटल पर उछाल दिया था. विपक्ष सदन में जमकर हंगामा. इसके बाद राज्यसभा को स्थागित कर दिया गया और लोकपाल एक बार फिर से ठंडे बस्ते में चला गया.
कृषि कानून पर राज्यसभा में हंगामा
सिंतबर 2020 में कृषि क्षेत्र से जुड़े हुए तीन बिल लेकर मोदी सरकार आई थी. लोकसभा में सरकार ने आसानी से पास कर लिया था और राज्यसभा में जब कृषि कानूनों को पेश किया गया तो विपक्ष विरोध करने लगा. ऐसे में सदन में जमकर हंगामा हुआ. विपक्षी सदस्य उपसभापति हरिवंश सिंह के आसान के सामने चले गए थे, जिसके चलते सदन में मार्शल बुला लिए गए थे. राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने विपक्षी दल के आठ राज्यसभा सदस्यों को अनुशासनहीनता के लिए निलंबित कर दिया था.
राज्यसभा सदस्य डेरेक ओ ब्रायन, संजय सिंह, राजू सातव, केके रागेश, रिपुन बोराडोला सेन, सैय्यद नासिर हुसैन और इलामारन करीम ने निलंबन के बावजूद संसद के बाहर लॉन में चादर वगैरह बिछाकर बैठे है और कृषि बिल का विरोध कर रहे हैं. विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार ने बिल को पास कराने के लिए लोकतंत्र को शर्मसार किया और मार्शल का सहारा लिया. दो दिनों तक राज्यसभा सदस्य रात-दिन संसद में धरने पर बैठे रहे.
प्रश्नकाल पर ही प्रश्न पूछने वाले नदारद
लोकतंत्र के इतिहास में 30 नवंबर 2009 की सुबह 11 बजे पहली बार संसद में प्रश्नकाल रोकना पड़ा. सांसदों की गैरहाजरी के मामले में यह दिन लोकसभा के लिए ऐतिहासिक रूप से सबसे शर्मसार करने वाला रहा. संसद के पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक 38 सासंदों को सवाल पूछने थे. संसद की परंपरा के मुताबिक इन सभी सांसदों को पहले से ही सूचना भी दे दी गई थी, लेकिन सदन में सिर्फ चार सांसद ही पहुंचे. इस दौरान जब सवाल पूछने वाले ही नहीं था तो कोई जवाब भी क्या देता. इस कारण लोकतंत्र के इतिहास में पहली बार संसद में प्रश्नकाल रोका गया. 


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