पंजाबी किसानों का UP में क्या है इतिहास और राज्य की तरक्की में योगदान, जानिए

पंजाबी किसानों का UP में क्या है इतिहास और राज्य की तरक्की में योगदान, जानिए

Update: 2021-10-06 13:31 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क :-  उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में रविवार शाम को हुई हिंसा में चार किसानों की मौत हो गई थी. इन किसानों के नाम लवप्रीत सिंह, दलजीत सिंह, नछत्र सिंह और गुरविंदर सिंह थे. ये सभी पंजाबी नाम थे. ऐसे में कई लोगों के लिए यह आश्चर्य की बात थी तो कुछ लोगों को लग रहा था कि पंजाब के किसान उत्तर प्रदेश के लखीमपुर में प्रदर्शन के लिए पहुंचे थे. हालांकि ऐसा कुछ भी नहीं है और वे सभी उत्तर प्रदेश के ही रहने वाले थे.

आजादी के वक्त जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो पंजाब का भी विभाजन हुआ. पाकिस्तान के हिस्से में आने वाले इलाके के किसान वहां से भागकर भारत आ गए. उनके लौटने पर सरकार ने उत्तर प्रदेश के तराई वाले इलाके में उन किसानों को जमीन दी, ताकि वे रह सकें. तराई का इलाका जंगलों से पटा पड़ा था और स्थानीय लोग इसे बेकार जमीन मानते थे. आज तराई का इलाका उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में है. यहां पर काफी संख्या में सरदार यानी पंजाबी मूल के लोग रहते हैं.
विभाजन के बाद पलायन और हरित क्रांति का असर
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, उत्तर प्रदेश के तराई के इलाके में सबसे पहले पूर्वी पंजाब, पाकिस्तान के शेखपुरा और सियालकोट क्षेत्रों के किसान आए. विभाजन के बाद भारत सरकार ने उन्हें तराई में भूमि आवंटित की. शुरुआत में इस इलाके में खेती करने के लिए किसानों को काफी संघर्ष करना पड़ा. इस क्षेत्र में सिर्फ जंगल थे और जंगली जानवर इसमें रहा करते थे. कड़ी मेहनत के बाद किसानों ने इस जमीन को कृषि योग्य बना दिया. इसके बाद बड़ी संख्या में पंजाब के किसान यहां आने लगे.
दरअसल, तब पंजाब में कृषि भूमि दुर्लभ और महंगी होती जा रही थी. वहां के किसान अपनी एक एकड़ जमीन बेचकर तराई के क्षेत्र में 10 एकड़ भूमि खरीद सकते थे. इसी कारण बाद के दिनों में पलायन कर पंजाब के किसान बड़ी संख्या में इस इलाके में पहुंचे.
पंजाब हरित क्रांति की शुरुआत में फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए नवीन कृषि तकनीकों को अपनाने वाला पहला राज्य था. पंजाब से तराई की ओर पलायन करने वाले कई छोटे किसानों ने मशीनों की मदद से गेहूं और चावल की नई उच्च उपज देने वाली किस्में उगाईं. इससे उत्तर प्रदेश के किसानों को भी फायदा हुआ और उत्पादन बढ़ने लगा.
उत्तर प्रदेश के सिखों का इतिहास
यूपी में ऐसे सिख हैं जिनका पंजाब से कोई संबंध नहीं है. सिख गुरुओं ने यूपी और उत्तराखंड की यात्रा की और दोनों राज्यों में कई ऐतिहासिक गुरुद्वारों भी हैं. ऐसे कई सिखों के पूर्वज हैं, जिन्होंने गुरुओं के आने पर सिख धर्म अपनाया था. 18वीं सदी में भी पंजाब से कई सिख यूपी आ गए थे. हालांकि केवल खेती के लिए पंजाब से बड़े पैमाने पर पलायन 1947 के बाद शुरू हुआ. यह 1960 और 1970 के दशक में चरम पर था, लेकिन पूरी तरह से कभी नहीं रुका.
यूपी में सिखों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व
मायावती की पहली सरकार में राज्य के सिखों की पहचान को एक नई ऊंचाई दी गई. तब उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड अलग नहीं हुआ था. मायावती ने पंजाब के स्वतंत्रता आंदोलन के शहीद उधम सिंह के नाम पर एक जिले का नाम रखकर पंजाबियों के महत्व को स्वीकार किया. सिखों की बड़ी आबादी वाला यह जिला उधम सिंह नगर अब उत्तराखंड में आता है.
यूपी और उत्तराखंड दोनों विधानसभाओं में सिख प्रतिनिधि हैं. बलदेव सिंह औलख यूपी सरकार में मंत्री हैं. समाजवादी पार्टी ने अखिलेश यादव की सरकार में पंजाबी राजनेता बलवंत सिंह रामोवालिया को मंत्री बनाया था.
लखीमपुर उत्तर प्रदेश के सबसे दूर-दराज के जिलों में से एक है, जहां पंजाब के किसान पलायन करते हैं. यह पहली बार नहीं है जब तराई क्षेत्र के किसानों ने कृषि आंदोलन में हिस्सा लिया है. 26 जनवरी को दिल्ली में हुई हिंसा के दौरान रामपुर के रहने वाले नवप्रीत सिंह की मौत हो गई थी. पीलीभीत के एक किसान ने आंदोलन के दौरान दिल्ली सीमा पर आत्महत्या कर ली थी.


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