जो उनके लिये 'वंशवाद' वह इनके लिये 'राष्ट्रवाद' कैसे ?

Update: 2022-07-17 07:48 GMT

तनवीर जाफ़री

ख़बर है कि 2024 में भारतीय जनता पार्टी 'वंशवाद की राजनीति' के विरुद्ध बिगुल फूंकने की तैयारी में है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'वंशवाद की राजनीति' के विरुद्ध काफ़ी मुखर होकर बोलते रहे हैं। चाहे वह कानपुर में राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के पैतृक गांव परौंख में दिया गया उनका भाषण हो या पिछले दिनों हैदराबाद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक या अत्र तत्र कहीं भी, हर जगह उनका मुख्य फ़ोकस 'वंशवाद की राजनीति' के विरोध पर आधारित ही रहा। सूत्रों के अनुसार जिसतरह बीजेपी ने पिछले चुनावों में कांग्रेस और भ्रष्टाचार मुक्त भारत के नारे दिए थे उसी तरह अगले चुनावों में पार्टी 'वंश-मुक्त भारत' के नारे को अपने चुनाव अभियान में शामिल कर सकती है। परन्तु सवाल यह है कि भारतीय जनता पार्टी व उसके नेताओं की नज़रों में 'वंशवाद ' की व्यापक परिभाषा है क्या ? क्या वास्तव में राजनीति की 'वंशवादी' व्यवस्था ही देश के विकास में सबसे बड़ी बाधा है ? क्या कांग्रेस या कई अन्य क्षेत्रीय राजनैतिक दल ही 'वंशवादी राजनीति ' का शिकार हैं और भाजपा इससे पूरी तरह अछूती है ? या फिर भाजपा अपने दल के वंशवादी नेताओं या अपने समर्थक 'वंशवादियों ' के अतिरिक्त केवल अपने विरोधी 'वंशवादियों ' को ही 'वंशवादी राजनीति ' करने वालों की श्रेणी में डालती है ?

सबसे ताज़ातरीन उदाहरण तो महाराष्ट्र का ही है। जब शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भाजपा से नाता तोड़ने के बाद एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर महा विकास अघाड़ी का गठन किया और मंत्रिमंडल में अपने पुत्र आदित्य ठाकरे को शामिल किया उस समय से लेकर अब तक यही शोर-शराबा होता रहा कि शिवसेना वंशवादी राजनीति का प्रतीक है। अब उसी राज्य से प्राप्त ख़बरों के अनुसार भाजपा ने राज ठाकरे के सुपुत्र अमित ठाकरे को विभाजित शिवसेना के शिंदे गुट व भाजपा द्वारा नव गठित सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल कर उद्धव ठाकरे की कथित 'वंशवादी राजनीति ' को ' वंशवाद' के ही शस्त्र से ही हमलावर होने की योजना बनाई है। इससे राज ठाकरे व उनके मनसे समर्थक ख़ुश होंगे और उद्धव ख़ेमा आहत होगा और इन दोनों ही ख़ेमों की खाई और गहरी भी होगी। गोया बाल ठाकरे के एक पौत्र आदित्य ठाकरे को बढ़ावा दिया जाना 'वंशवादी राजनीति ' का हिस्सा था और बाल ठाकरे के ही दूसरे पौत्र अमित ठाकरे को मंत्री बनाना 'राष्ट्रवादी राजनीति ' कहलायेगी ?

कुछ दिनों पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के 26 वर्षीय सुपुत्र आर्यमन सिंधिया को किसी भी संस्था या संगठन के पहले पद की ज़िम्मेदारी सौंपते हुए ग्वालियर डिवीज़न क्रिकेट एसोसिएशन GDCA का उपाध्यक्ष बनाया गया। ज्योतिरादित्य सिंधिया का चश्म-ए-चिराग़ होने के अतिरिक्त आख़िर उनमें और क्या विशेषता है ? यह सिंधिया घराने की अगली पीढ़ी के राजनैतिक प्रवेश की तैयारी नहीं तो और क्या है? विजय राजे सिंधिया से लेकर वसुंधरा राजे उनके पुत्र दुष्यंत सिंह,स्वयं ज्योतिरादित्य सिंधिया आदि सब वंशवाद की ही बेल तो है? इसी प्रकार गृह मंत्री अमित शाह के पुत्र जय शाह को 2019 में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड का सेक्रेटरी बनाया गया। आज वे एशियन क्रिकेट काउंसिल के अध्यक्ष भी हैं। अमित शाह का कुलदीपक होने के अतिरिक्त भी क्या उनकी कोई योग्यता या विशेषता है ? परन्तु इसे भी वंशवाद नहीं बल्कि राष्ट्रवाद कहिये। भाजपा में शीर्ष में अनेक नेताओं ने वंशवादी बेल को बख़ूबी सींचा है और अब भी सींच रहे हैं। उदाहरणार्थ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के विधायक पुत्र पंकज सिंह, हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के फ़ायर ब्रांड सुपुत्र व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर,दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे स्वर्गीय साहब सिंह वर्मा के सांसद पुत्र प्रवेश सिंह वर्मा, उत्तर प्रदेश के 3 बार मुख्यमंत्री व राज्यपाल रहे स्व कल्याण सिंह के सांसद पुत्र राजवीर सिंह और राजवीर सिंह के भी विधायक पुत्र संदीप सिंह जोकि वर्तमान में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में शिक्षा राज्य मंत्री भी हैं। इसी तरह स्वर्गीय प्रमोद महाजन की पुत्री पुनम महाजन,गोपीनाथ मुंडे की प्रीतम मुंडे व पंकजा मुंडे,भाजपा नेता वेद प्रकाश गोयल के पुत्र केंद्रीय मंत्री पीयुष गोयल, लालजी टंडन के सुपुत्र आशुतोष टंडन, ठाकुर प्रसाद के सुपुत्र रविशंकर प्रसाद, यशवंत सिन्हा के पुत्र जयंत सिन्हा, देवेंद्र प्रधान के पुत्र धर्मेंद्र प्रधान,बीएस येदियुरप्पा के पुत्र बी. वाई राघवेंद्र,कैलाश विजयवर्गीय के 'बैट दनादन फ़ेम सुपुत्र 'आकाश विजय वर्गीय विधायक,गंगाधर फ़नवीस के नूर-ए- नज़र देवेंद्र फ़डनवीस, सांसद दीया कुमारी, किरण रिजिजू, रीता बहुगुणा जोशी,आदि जैसी दर्जनों और राज्य स्तर पर सैकड़ों मिसालें ऐसी मिलेंगी जिनमें भाजपाइयों द्वारा वंशवाद की बेल को बख़ूबी खाद पानी दिया जा रहा है।

इसी प्रकार जब जम्मू कश्मीर में सरकार बनानी थी तो राज्य में महबूबा मुफ़्ती भी वंशवादी नहीं थी और उनकी पी डी पी भी पक्की राष्ट्रवादी थी। अब साथ छूटते ही वह वंशवादी भी हैं और पी डी पी राष्ट्रविरोधी भी। पंजाब में दो दशक से भी लंबे समय तक बादल परिवार के अकाली दल से गठबंधन रहा,वंशवाद की कोई चर्चा नहीं हुई,आज भी हरियाणा में देवी लाल के पौत्र दुष्यंत चौटाला को उनकी इसी योग्यता के आधार पर मुख्यमंत्री बनाया गया है कि वे स्व देवी लाल जी के वंश के ध्वजवाहक हैं अन्यथा पहली बार में ही विधायक बनने पर उपमुख्यमंत्री बनना भला किसी साधारण जे जे पी कार्यकर्त्ता के भाग्य में कहाँ ? परन्तु जब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या उनकी पार्टी के अन्य शीर्ष नेता जनसभाओं में वंशवाद पर निशाना साधते हैं तो उन्हें अपने निशाने पर देश का प्रथम वंशवादी राजनैतिक परिवार नेहरू गांधी परिवार नज़र आता है परन्तु इसी परिवार के मेनका गाँधी व वरुण गांधी मां-बेटे राष्ट्रवादी नज़र आते हैं ,वंशवादी नहीं ? भाजपा को समाजवादी पार्टी,राष्ट्रीय जनता दल,बीजू जनता दल,तथा दक्षिण भारत की अनेक पार्टियां जो भाजपा विरोधी हैं उन सबमें इनको वह 'वंशवाद ' दिखाई देता है जो इनके अनुसार देश की राजनीति व लोकतंत्र के लिये घातक है।

यदि भाजपा की यही धारणा है तो इस पैमाने पर तो केवल देश की वामपंथी पार्टियां ही सबसे उपयुक्त नज़र आती हैं। परन्तु भाजपाई व संघ विचारधारा व सिद्धांतों के मुताबिक़ तो कम्युनिस्टों से भी देश को उतना ही ख़तरा है जितना ईसाईयों व मुसलमानों से ? ऐसे में वंशवाद से निपटने का आख़िर उपाय क्या रह जाता है। क्या यही कि जो भाजपाई वंशवादी नेता हैं उन्हें वंशवादी नहीं बल्कि राष्ट्रवादी और यदि हो सके तो उन्हें 'महा राष्ट्रवादी ' मान लिया जाये और जो भाजपा विरोधी ख़ेमे से संबद्ध हैं उनपर वंशवादी होने का टैग लगाकर उन्हें लोकतंत्र व राजनीति के लिये ख़तरा घोषित कर दिया जाये। 

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