राज ठाकरे और बीजेपी के बीच क्या पक रहा है? शिवसेना ने किया पलटवार

Update: 2022-04-04 07:02 GMT

नई दिल्ली: शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे की छत्र-छाया में पले बढ़े और उनकी उंगली पकड़कर सियासी A,B,C,D.. सीखने वाले महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MSN) के प्रमुख राज ठाकरे (Raj Thackeray) अपना राजनीतिक वजूद बचाए रखने की जद्देजहद कर रहे हैं. वहीं, उद्धव ठाकरे अपने वैचारिक विरोधी कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर महाराष्ट्र की सरकार चला रहे हैं. गठबंधन की मजबूरी कहें या फिर सत्ता में काबिज रहने की लालसा, शिवसेना कई मौके पर हिंदुत्व के मुद्दे पर नरम पड़ तो राज ठाकरे ने इसे अवसर के रूप में ले लिया.

मस्जिदों में लाउडस्पीकर बंद करने, नहीं तो मस्जिद के बाहर हनुमान चलीसा को तेज आवाज में बजाए जाने की धमकी देकर राज ठाकरे ने हिंदुत्व के अपने उग्र तेवर फिर दिखा दिए हैं. इतना ही नहीं, उन्होंने मुख्यमंत्री व अपने चचेरे भाई उद्धव ठाकरे और एनसीपी प्रमुख शरद पवार पर भी निशाने साधे. राज ठाकरे के उग्र हिंदुत्व की ओर बढ़ते कदम और सीएम उद्धव पर उनके आक्रामक रुख के दूसरे दिन केंद्रीय मंत्री व बीजेपी नेता नितिन गडकरी ने मुंबई में राज ठाकरे के आवास पर जाकर उनसे मुलाकात की है. ऐसे में चर्चाएं ये भी हैं कि क्या महाराष्ट्र की सियासत में बीजेपी के लिए राज ठाकरे शिवसेना का विकल्प तो नहीं बन रहे हैं, क्योंकि राज ठाकरे ने 2019 के बाद से अपना सियासी ट्रैक चेंज कर रखा है.
दरअसल, शिवसेना महाराष्ट्र की सियासत में बीजेपी के साथ मिलकर लंबे समय तक हिंदुत्व के एजेंडे पर सियासी तौर पर कदमताल करती रही. राज ठाकरे ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले पीएम मोदी और बीजेपी के खिलाफ आक्रामक रुख अपना रखा था. मुंबई में रैली करके बीजेपी नेताओं और देवेंद्र फडणवीस के पुराने बयानों को दिखा कर उन्होंने एंटी मोदी स्टैंड लिया था. उन्होंने 2019 में एक भी सीट पर अपनी पार्टी से कैंडिडेट नहीं उतारे थे, लेकिन मोदी के विरोध में दस रैलियां की थीं.
महाराष्ट्र के 2019 विधानसभा चुनाव के बाद सत्ता के लिए बीजेपी-शिवसेना की 25 सालों की दोस्ती टूटी और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने अपनी वैचारिक विरोधी मानी जाने वाली कांग्रेस-एनसीपी के साथ हाथ मिलाकर सत्ता की कमान अपने हाथों में ले ली. शिवेसना की मौजूदा सहयोगी कांग्रेस और एनसीपी दोनों ही हिंदुत्व की राजनीति के बजाय धर्मनिरपेक्ष वाली सियासत करना पसंद करती हैं. महाराष्ट्र के बदले हुए सियासी मिजाज में राज ठाकरे ने अपना राजनीतिक ट्रैक चेंज किया है. ऐसे में वो ऐसे तमाम मुद्दों को उठा रहे हैं, जो उग्र हिंदुत्व को धार देने वाले माने जाते हैं.
राज ठाकरे का यह उग्र हिंदुत्व का तेवर बीजेपी के लिए काफी मुफीद नजर आ रहा है, क्योंकि बीजेपी नेता पहले से ही मस्जिदों से लाउड स्पीकर हटाने का मुद्दा उठा रहे थे. इसके अलावा मदरसों में छापा मारने की बात भी राज ठाकर ने उठाई थी, जिस पर बीजेपी भी मुखर रही है. राज ठाकर ने 2022 जनवरी में अपनी पार्टी का चौरंगी झंडा बदलकर भगवा रंग दिया और शिवाजी की मुहर को अपनाया. राज ठाकरे ने मंच पर सावरकर की फोटो सजाकर हिंदुत्व की दिशा में कदम बढ़ाने के मंसूबे जाहिर करते हुए कहा था कि ये वो झंडा था, जो पार्टी की स्थापना करते वक्त उनके मन में था और हिंदुत्व उनके डीएनए में है.
राज ठाकरे अपनी छवि अब हिंदुत्ववादी नेता के तौर पर मजबूत करने की कवायद में हैं ताकि महाराष्ट्र में शिवसेना के पारंपरिक हिंदू वोटबैंक में सेंध लगा सकें, जो कांग्रेस-एनसीपी के चलते फिलहाल नाराज माने जा रहे हैं. इतना ही नहीं राज ठाकरे को बीजेपी के करीब आने का मौका भी मिल सकता है. राज ठाकरे की कट्टर मराठी छवि के चलते बीजेपी भी उनसे दूरी बनाए रख चलती थी. राज ठाकरे ने अपना सियासी ट्रैक चेंज किया है तो बीजेपी के नेताओं के साथ उनकी नजदीकियां भी साफ दिख रही हैं. यही वजह है कि महाराष्ट्र के बीजेपी नेता राज ठाकरे लाउड स्पीकर वाले बयान के समर्थन में खड़े नजर आ रहे हैं.
गुड़ी पड़वा के मौके पर पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस सहित कई बीजेपी के नेता मनसे प्रमुख राज ठाकरे के घर भोजन करने पहुंचे थे. वहीं. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने रविवार को मुंबई में राज ठाकरे के घर जाकर मुलाकात की. गडकरी ने इस बैठक के पीछे कुछ भी राजनीतिक होने से इनकार करते हुए भले ही इसे एक पारिवारिक बैठक बताया हो, लेकिन सियासी गलियारों में बीजेपी के साथ उनकी बनती सियासी केमिस्ट्री की चर्चा तेज है. विपक्षी दल राज ठाकरे को बीजेपी की बी-टीम बता रहे हैं.
मस्जिद से लाउडस्पीकर हटाने की राज ठाकरे की बात पर शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा कि, महाराष्ट्र में कानून का राज कायम है. उन्होंने कहा कि शिवाजी पार्क में राज ठाकरे का बयान बीजेपी के द्वारा प्रायोजित था. मनसे प्रमुख ने वही बोला, जो बीजेपी ने उन्हें लिख कर दिया था.
राज ठाकरे द्वारा शरद पवार को निशाने पर लेने पर संजय राउत ने कहा कि आप कुछ समय पहले तक पवार के चरणों में उनका मार्गदर्शन लेने के लिए बैठते थे. आपको पवार जैसी महान शख्सियतों पर बोलने से पहले सोचना चाहिए. साथ ही राउत ने कहा कि शिवसेना इस तरह की बातों पर ध्यान नहीं देती, क्योंकि पार्टी का एजेंडा महाराष्ट्र का विकास सुनिश्चित करना और राज्य भर में अपना भगवा झंडा फहराना है.
बता दें कि राज ठाकरे ने 2006 में अलग महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) नाम से अलग पार्टी बना ली थी. इसके बाद तीन विधानसभा और तीन लोकसभा चुनाव हुए हैं. मनसे कोई खास सफलता हासिल नहीं कर सकी. 2014 में बीजेपी से राज ठाकरे को उम्मीद थी कि मनसे को साथ लेकर चलने में बीजेपी को दिक्कत नहीं होगी. लेकिन तब बीजेपी ने शिवसेना से नाता न तोड़ने को ही समझदारी मानी. बीजेपी का साथ न मिलने से बेचैन राज ठाकरे ने 2019 में पवार के साथ जानने की भी कोशिश की. लेकिन 2019 में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के साथ आने से सभी समीकरण बदल गए.
साल 2019 में हुए महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) बीजेपी के खिलाफ थी, लेकिन अब दोनों की केमिस्ट्री बनती नजर आ रही है. हालांकि, बीजेपी के लिए सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उत्तर भारतियों के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले राज ठाकरे को साथ में कैसे लिया जाए. सूबे के बदले हुए सियासी माहौल में शिवसेना वाले महाविकास अघाड़ी से मुकाबले के लिए बीजेपी फूंक-फूंककर सियासी कदम बढ़ा रही है और राज ठाकरे को साथ लेने पर नफे-नुकसान को भी तौल रही है. ऐसे में देखना है कि बीएमसी चुनाव में किस तरह से दोनों के बीच सियासी केमिस्ट्री दिखती है. 
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