ए डी खुशबू, कोढ़ा कटिहार बिहार
कटिहार। मशहूर फिल्म ‘ सरस्वतीचन्द ‘ का गीत फुल तुम्हें भेजा है खत में … फूल नहीं मेरा दिल है … खत में लिखना प्रियतम मेरे , क्या ये तुम्हारे काबिल है…ऐसे ढेरों गीत है जिसे आज भी लोग गुनगुना उठते हैं। दर असल वह जमाना ही अलग था। उस समय खतों का एक अलग ही संसार हुआ करता था। महबूबा के खतों का देर से आने के इंतजार भरे लम्हों की कसक में तड़पता आशिक। विदेश गये बेटे को मां के प्यार व लाड़ से में सुकून का एहसास कराता था , या फिर लिफाफे में बन्द बहन की राखी का स्नेह बांटने का जरिया वह खत और खतों का संसार सूचना क्रान्ति के इस युग में हर दिल को भाने वाला खतों की वह दुनिया आज लगभग विलुप्त सी हो गयी है ,आज तो इस हाईटेक जमाने में मोबाइल उठाया , कॉल लगाया और कर ली दो - चार दिल की बातें। मगर खतों की वह खामोश जुबान। जो लफ्जों के आगोश में छिपा होता था वह बात आज कहां ? आज के लड़के लड़कियाँ तो खत लिखना तक नहीं जानते।
वे तो आज व्हाट्सएप्प, फेसबूक, टि्वटर टेलीग्राम, ईमेल, मैसेजिंग, आदि जैसे संचार के उन्नत तकनीकों में ही उलझ कर रह गये है। एक वक्त था जब लोग डाकिये का आने का इन्तजार बड़ी बेसब्री से किया करते थे। क्या अजब लम्हा होता था वह। जब महबूब बन्द लिफाफे को खोलते वक्त यह सुनिश्चित कर लेता था कि किसी की निगाहें उसे घूर तो नहीं रहा है। जब वह लिफाफे जब खोलता था तब उसके दिल की धड़कनें तेज हो जाया करती थी। खत पढने के बाद उसे बार बार पढ़ने व पढ़कर उसे चूमने की दीवानगी। ………प्रियतमा का खत पाकर प्रीतम की आंखों से खुशी के आंसु छलक उठते थे।
आशिक अपने महबूब के खत का इंतजार में अपनी पलके बिछाए रहता था। मगर अब जमाना ऐसा बदला कि मन के आंगन में चाहत ने जब भी अंगड़ाइया ली , मोबाईल पर बाते शुरु हो गयी , वैसे खतों का मानव जीवन में एक अलग ही इतिहास था। महज दो से तीन दशक पहले तक खत भेजने की परमपरा थी। बुजुर्गों के मुताबिक जब जमिन्दारी प्रथा थी , तब विस्वस्त दूतों के माध्यम से खत भेजे जाते थे। खत के जरिये हम अपने जज्बात को लफ्जों का जामा पहना कर बड़ी सरलता से पेश करते थे। कभी कभी तो खत इतने मार्मिक एंव भावनात्मक होते थे कि हम उन्हें सोने के गहनों की तरह सहेज कर रखते थे। आज भी बंद लिफाफे में गुलाब के सुखे फूल, बीते हुए कल के समन्दर में डुबकियां लेने को विवश कर देता है। खतों का इन्तजार जहां पांव में कांटे चुभने जैसे पीड़ादायक होता था , वहीं पत्र मिलने की खुशी दिल को सुकून देती थी। पर आज न डाकिया आता है और न कोई खत।