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Update: 2022-05-15 10:31 GMT

18वीं सदी में हिंदू धर्म छोड़कर ईसाई धर्म अपनाने वाले देवसहायम पिल्लई को संत घोषित किया गया है. रविवार को वेटिकन सिटी में पोप फ्रांसिस ने इसकी घोषणा की है. देवसहायम ये उपलब्धि हासिल करने वाले पहले भारतीय हैं. 2004 में कोट्टर डायोसीस, तमिलनाडु बिशप्स काउंसिल और काउंसिल ऑफ कैथोलिक बिशप्स ऑफ इंडिया के आग्रह पर वेटिकन की ओर से बीटिफिकेशन की प्रक्रिया के लिए देवसाहयम के नाम की सिफारिश की गई थी.

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वेटिकन के सेंट पीटर्स बेसिलिका में पोप फ्रांसिस ने रविवार को 9 अन्य लोगों के साथ देवसहायम पिल्लई को संत की उपाधि दी है. देवसहायम पिल्लई से जुड़े एक चमत्कार को 2014 में पोप फ्रांसिस की ओर से मान्यता दी गई थी, जिससे 2022 में उनको संत की उपाधि दिए जाने का रास्ता साफ हो गया था. अब यह प्रक्रिया के पूरी होने के साथ ही 1745 में ईसाई धर्म अपनाने के बाद लैजेरस नाम रखने वाले देवसहायम पिल्लई संत बनने वाले भारत के पहले व्यक्ति बन गए हैं.

संत देवसहायम पिल्लई का जन्म 23 अप्रैल, 1712 को भारत के तमिलनाडु राज्य के कन्याकुमारी जिले के नट्टलम में एक हिंदू नायर परिवार में नीलकांत पिल्लई के रूप में हुआ था. यह जिला उस समय तत्कालीन त्रावणकोर साम्राज्य का हिस्सा था. वह त्रावणकोर के महाराजा मार्तंड वर्मा के दरबार में एक अधिकारी थे, जब उन्हें एक डच नौसेना कमांडर की ओर से कैथोलिक धर्म अपनाने को कहा गया था. मलयालम में लैजेरस या देवसहायम का अर्थ होता है – भगवान मदद के लिए हैं. वेटिकन की ओर से पहले कहा गया था कि प्रचार करते समय पिल्लई ने विशेष रूप से जातिगत मतभेदों के बावजूद सभी लोगों की समानता पर जोर दिया था. इससे उच्च वर्गों में नफरत पैदा हुई और उन्हें 1749 में गिरफ्तार कर लिया गया था. उनकी परेशानियां बढ़ती गईं और बाद में 14 जनवरी 1752 में उन्हें गोली मार दी गई थी. कन्याकुमारी जिले के कोट्टर डायोसीस में उनके जन्म और मृत्यु से जुड़ी कई जगहें हैं.

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