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Update: 2022-04-13 08:36 GMT

आप चाहें तो बैंक से लोन ले सकते हैं या फाइनेंस कंपनियों से. फाइनेंस कंपनियों को एनबीएफसी (NBFC) भी कहते हैं. कुछ मामूली अंतर को छोड़ दें तो बैंक और फाइनेंस कंपनियों का लोन देने का तरीका लगभग एक है. अंतर यही होता है कि बैंक का सारा सिस्टम रिजर्व बैंक के प्रोटोकॉल के मुताबिक चलता है और नियम-कानून बहुत सख्त हैं. जबकि फाइनेंस कंपनियों का सिस्टम कंपनीज एक्ट के तहत चलता है और कायदे-कानून में कई तरह की छूट है. पर्सनल लोन (Personal Loan) की जहां तक बात है, तो फाइनेंस कंपनियों से इसे लेना ज्यादा सही माना जाता है. आइए जानते हैं कि बैंक लोन और एनबीएफसी लोन (NBFC Loan) में ज्यादा सही कौन रहेगा. 

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फाइनेंस कंपनियों से बैंकों की तुलना में ज्यादा जल्दी लोन मिल जाता है. बैंकों का नियम आरबीआई के हिसाब से चलता है, इसलिए कागजी कार्यवाही या शर्तों को पूरा करने में समय लग सकता है. आजकल यूपीआई पेमेंट ऐप से भी फटाफट लोन मिल जाता है. ऐसा ही हाल फाइनेंस कंपनियों का है जहां 5 मिनट में लोन देने का दावा किया जाता है. इसे इंस्टेंट लोन कहते हैं. केवाईसी सही रहे तो कुछ मिनटों में ही लोन आपके अकाउंट में ट्रांसफर हो जाएगा. यदि आप प्री-अप्रूव्ड कस्टमर हैं तो लोन मिलने में और भी जल्दी होती है. कागजों की भी जरूरत नहीं होती. बैंक का लोन प्रोसेस होने में 1-2 हफ्ते तक लग सकता है.

ब्याज के हिसाब से देखें तो फाइनेंस कंपनियां बैंकों की तुलना में ज्यादा लचीला रुख अपनाती हैं. ब्याज दर निर्धारित करने में बैंक ग्राहकों को अधिक आजादी नहीं देते, जबकि फाइनेंस कंपनियों से अच्छी मोल-मोलाई की जा सकती है. रिजर्व बैंक के बताए बेंचमार्क के मुताबिक बैंकों को फ्लोटिंग रेट तय करने होते हैं. हालांकि बैंक अपने इंटरनल बेंचमार्क के मुताबिक ब्याज दरों पर नियंत्रण रखते हैं और अपने फायदे के हिसाब से ब्याज लेते हैं. ब्याज दर, प्रोसेसिंग फीस और पार्ट पेमेंट चार्ज के लिहाज से फाइनेंस कंपनियों का लोन अधिक सुविधाजनक और फायदेमंद होता है.

लोन देने की पात्रता और योग्यता में भी फाइनेंस कंपनियां ग्राहकों को अधिक छूट देती हैं. बैंकों को आरबीआई के सेट पैरामीटर्स और शर्तों के हिसाब से ही पात्रता तय करनी होती है. उसमें बहुत अधिक ढिलाई संभव नहीं है. ग्राहक जब तक शर्तों को पूरा नहीं करता, लोन मंजूर नहीं होता. इसमें सबसे बड़ी बाधा क्रेडिट स्कोर की आती है. कोई भी बैंक 750 क्रेडिट स्कोर से नीचे जल्दी किसी को लोन नहीं देता, जबकि फैनेंस कंपनियों ने यह लिमिट 700 की रखी है. हालांकि इसका मतलब यह नहीं कि क्रेडिट स्कोर कम होने पर फाइनेंस कंपनियां लोन दे देंगी और बैंक नहीं देंगे. इसके अलावा भी कई फैक्टर होते हैं जिन्हें ध्यान में रखना होता है. इन सभी बातों के बावजूद लोन आपको लेना है, इसलिए इसका फैसला भी आप ही करें. बैंक और फाइनेंस कंपनियों की सभी शर्तें ध्यान से पढ़ें, ब्याज दर का हिसाब लगा लें, दोनों का नफा-नुकसान समझ लें, उसके बाद ही लोन के लिए अप्लाई करें. आजकल ऑनलाइन अप्लाई का जमाना है जिसमें बैंक और फाइनेंस कंपनियों की बराबर की भागीदारी है. एक बात ध्यान रखें कि किसी भी फर्जी फाइनेंस कंपनी के झांसे में नहीं आएं जैसा कि रिजर्व बैंक भी आगाह करता रहा है. इससे आपकी आर्थिक स्थिति सुधरने के बजाय बिगड़ सकती है. 

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