- ललित गर्ग -
शांति के तमाम उपायों के बीच दुनियाभर में सैन्य खर्च, शस्त्रीकरण एवं घातक हथियारों की होड़ किसी खतरे की घंटी से कम नहीं। शस्त्रीकरण के भयावह दुष्परिणामाअें से समूचा विश्व भयाक्रांत है, हर पल आणविक हथियारों के प्र्रयोग को लेकर दुनिया डर के साये में जी रही है। इसीलिये आज अयुद्ध, निशस्त्रीकरण एवं शांति की आवाज चारों ओर से उठ रही है। शक्ति संतुलन के लिये शस्त्र-निर्माण एवं शस्त्र संग्रह की बात से किसी भी परिस्थिति में सहमत नहीं हुआ जा सकता। क्योंकि इससे अपव्यय हो होता ही है, साथ ही किसी भी गलत हाथों से दुरुपयोग होने की बहुत संभावनाएं रहती है। ताजा घटनाक्रम को देखें तो एक ओर रूस और यूक्रेन आमने-सामने हैं, वहीं दूसरी तरफ इजरायल और ईरान के बीच तल्खी भी चरम पर है। चीन और ताइवान के बीच भी रह-रह कर युद्ध के बदल मंडरा रहे हैं। ऐसे माहौल में यह सवाल भी गूंजना स्वाभाविक है कि क्या सचमुच दुनिया तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ते हुए घातक हथियारों के उपयोग की प्रयोगभूमि बन रही है? सवाल दूसरे ओर भी हैं। स्टॉकहोम इन्टरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की हथियारों पर आयी ताजा रिपोर्ट ऐसे ही सवाल खड़े कर रही है। इसका संतोषजनक जवाब शायद ही मिले क्योंकि दुनिया सीधे-सीधे दो खेमों में बंट गई है।
स्टॉकहोम की रिपोर्ट के आंकड़े चौंकाने वाले ही नहीं, डराने वाले हैं। शांति के तमाम उपायों के बीच दुनियाभर में सैन्य खर्च का बढ़ना एवं नये-नये हथियारों का बाजार गरम होना, चिन्ताजनक है। रिपोर्ट में खास बात यह है कि दुनिया में र्स्वाधिक सैन्य खर्च करने वाले देशों में भारत चौथे नंबर पर बरकरार है। शांति एवं अहिंसा की भूमि पर हथियारों का जमावड़ा उसकी कथनी एवं करनी के भेद को उजागर कर रहा है। ये सवाल स्वाभाविक है कि जब प्रत्येक देश शाांति बनाए रखने की वकालत करता है फिर हथियारों की होड़ लगातार क्यों बढ़ रही है? भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश बन चुका है। स्टॉकहोम की ओर से जारी रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। भारत ने बीते पांच साल में दुनिया में सबसे ज्यादा हथियार खरीदे हैं। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि यूरोप का हथियार आयात 2014-18 की तुलना में 2019-23 में लगभग दोगुना बढ़ा है, जिसके पीछे रूस-यूक्रेन युद्ध बड़ा कारण माना जा रहा है। वहीं, इसके अलावा पिछले पांच वर्षों में सबसे ज्यादा हथियार एशियाई देशों ने खरीदे हैं। इस लिस्ट में रूस-यूक्रेन का युद्ध देश के रक्षा निर्यात को काफी प्रभावित किया है। इस कारण से पहली बार रूस हथियार निर्यात में तीसरे स्थान पर पहुंच गया है। तो वहीं, अमेरिका पहले और फ्रांस दूसरे नंबर पर है।
पिछले 25 सालों में पहली बार, संयुक्त राज्य अमेरिका एशिया और ओशिनिया का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता रहा। अमेरिका की हथियारों की होड़ एवं तकनीकीकरण की दौड़ पूरी मानव जाति को ऐसे कोने में धकेल रही है, जहां से लौटना मुश्किल हो गया है। अब तो दुनिया के साथ-साथ अमेरिका स्वयं ही इन हथियारों एवं हिंसक मानसिकता का शिकार है। अमेेरिका दुनिया पर आधिपत्य स्थापित करने एवं अपने शस्त्र कारोबार को पनपाने के लिये जिस अपसंस्कृति को उसने दुनिया में फैलाया है, उससे पूरी मानवता कराह रही है, पीड़ित है। अमेरिका ने नई विश्व व्यवस्था (न्यू वर्ल्ड आर्डर) की बात की है, खुलेपन की बात की है लगता है ”विश्वमानव“ का दम घुट रहा है और घुटन से बाहर आना चाहता है। विडम्बना देखिये कि अमेरिका दुनिया का सबसे अधिक शक्तिशाली और सुरक्षित देश है लेकिन उसके नागरिक सबसे अधिक असुरक्षित और भयभीत नागरिक हैं। वहां की जेलों में आज जितने कैदी हैं, दुनिया के किसी भी देश में नहीं हैं। ऐसे कई वाकये हो चुके हैं कि किसी रेस्तरां, होटल या फिर जमावड़े पर अचानक किसी सिरफिरे ने गोलीबारी शुरू कर दी और बड़ी तादाद में लोग मारे गए। 2014 में अमेरिका में हत्या के कुल दर्ज करीब सवा चौदह हजार मामलों में अड़सठ फीसद में बंदूकों का इस्तेमाल किया गया था।
एक तरफ अमरीका और उसके सहयोगी नाटो देश हैं तो दूसरी तरफ रूस-चीन का गठजोड़ है। तटस्थ रहने वाले देश भी गाहे-बगाहे अप्रत्यक्ष रूप से किसी न किसी खेमे की तरफ झुकाव प्रदर्शित करते रहे हैं। ऐसे में आखिरी उम्मीद संयुक्त राष्ट्र ही रह जाता है। जबकि संयुक्त राष्ट्र की शक्तियां एवं उद्देश्य कोरे दिखावे के हैं, समूची दुनिया इससे वाकिफ है। वह ऐसे किसी भी संकट में शांति प्रस्ताव पारित कर अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री कर पला झाड़ लेता है। वह न तो रूस-यूक्रेन के संघर्ष में और न ही इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष रोकने में कोई सार्थक भूमिका अदा कर पा रहा है। उसके कड़े से कड़े फैसले भी आखिर में महाशक्तियों के वीटो के सामने हथियार डाल देते हैं। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अस्तित्व में आया संयुक्त राष्ट्र कहने को तो दुनिया के देशों का सबसे बड़ा मंच है पर युद्धों को रोकने में उसकी भूमिका नगण्य है। ऐसे में दुनिया में बढ़ते हथियारों की होड़ एवं युद्ध की संभावनाओं को आखिर कौन-कैसे-किसको रोके? जाहिर है, ऐसी परिस्थितियों में तो हथियारों की होड़ बढ़ेगी ही। अमरीका एक तरफ युद्ध की तरफ बढ़ रहे देशों से शांति की अपील करने में सबसे आगे रहता है। लेकिन दूसरी तरफ अमरीकी हथियार कंपनियां तमाम देशों को खरबों रुपए के हथियार बेच रहीं है। इन कंपनियों के लिए तो युद्धकाल ही स्वर्णकाल होता है। ऐसे दौर में जब अधिकांश देश शिक्षा, रोजगार व सेहत के मोर्चे पर संकटों का सामना कर रहे हैं, हथियारों की इस होड़ को रोका ही जाना चाहिए।
रूस एवं यूक्रेन के बीच लम्बे समय से चल रहा युद्ध भीषणतम तबाही एवं सर्वनाश का कारण बनता दिख रहा है। रूस द्वारा परमाणु हथियारों के इस्तेमाल किये जाने एवं यूक्रेन के द्वारा ‘डर्टी बम’ का इस्तेमाल किये जाने की धमकियां, दुनिया के लिये डर का कारण बन रही है। भयंकर विनाश की आशंकाओं के बीच समूची दुनिया सहमी हुई है। यदि परमाणु हथियारों का उपयोग होता है तो यह मानवता के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ होगा एवं दुनिया को अशांति की ओर अग्रसर करने वाला होगा। अब परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का खतरा इसलिए बढ़ गया है कि यूक्रेन को इतने लंबे समय से झुकता न देख रूस का अहं चोट खा रहा है। हालांकि परमाणु हथियारों के दुष्परिणामों से दोनों देश अनजान नहीं हैं। इस युद्ध को चलते लंबा वक्त हो गया। इस तरह युद्धरत बने रहना खुद में एक असाधारण और अति-संवेदनशील मामला है, जो समूची दुनिया को विनाश एवं विध्वंस की ओर धकेलने जैसा है। ऐसे युद्ध का होना विजेता एवं विजित दोनों ही राष्ट्रों को सदियों तक पीछे धकेल देगा, इससे भौतिक हानि के अतिरिक्त मानवता के अपाहिज और विकलांग होने का भी बड़ा कारण बनेगा।
यूक्रेन और रूस में शांति का उजाला करने, अभय का वातावरण, शुभ की कामना और मंगल का फैलाव करने के लिये भारत ने लगातार शांति प्रयास किये हैं। लेकिन प्रश्न है कि दुनिया को अहिंसा, अयुद्ध एवं शांति का सन्देश देने वाला भारत क्यों हथियारों की दोड़ में शामिल है? मनुष्य के भयभीत मन को युद्ध एवं हथियारों की विभीषिका से मुक्ति दिलाना आवश्यक है। युद्धरत देशों में शांति स्थापित कर, उन्हें अभय बनाकर, युद्ध-विराम करके विश्व को निर्भय बनाना चाहिए। निश्चय ही यह किसी एक देश या दूसरे देश की जीत नहीं बल्कि समूची मानव-जाति की जीत होगी। यथार्थ यह है कि अंधकार प्रकाश की ओर चलता है, पर अंधापन मृत्यु-विनाश की ओर। लेकिन रूस ने अपनी शक्ति एवं सामर्थ्य का अहसास एक गलत समय पर गलत उद्देश्य के लिये कराया है। इस युद्ध से होने वाली तबाही रूस-यूक्रेन की नहीं, बल्कि समूची दुनिया की तबाही होगी, क्योंकि रूस परमाणु विस्फोट करने को विवश होगा, जो दुनिया की बड़ी चिन्ता का सबब है। बड़े शक्तिसम्पन्न राष्ट्रों को इस युद्ध को विराम देने के प्रयास करने चाहिए। लेकिन प्रश्न है कि जो देश हथियारों के निर्माता है, वे क्यों चाहेंगे कि युद्ध विराम हो। जब तक शक्तिसम्पन्न राष्ट्रों की शस्त्रों के निर्माण एवं निर्यात की भूख शांत नहीं होती तब तक युद्ध की संभावनाएं मैदानों में, समुद्रों में, आकाश में तैरती रहेगी, इसलिये आवश्यकता इस बात की भी है कि जंग अब विश्व में नहीं, हथियारों में लगे।