सांड की मौत के बाद सदमे में गांव वाले, प्यार से कहते थे 'बाबूजी'

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Update: 2021-08-23 13:10 GMT

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में एक गांव हैं जिसका नाम कुरडी है. इस गांव के लोग 'बाबूजी' यानी की एक सांड की मौत के बाद सदमे में हैं. अब गांव के लोग उस मृत सांड के लिए वो सब कर रहे हैं जो आमतौर पर सिर्फ इंसानों के लिए समाज में किया जाता है. सांड जिसे गांव के लोग प्यार से 'बाबूजी' कहते थे उसकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म, हवन पूजन और ब्रह्म भोज का आयोजन किया गया. तेरहवीं के दिन सांड को श्रद्धांजलि अर्पित कर ब्रह्म भोज किया गया, जिसमें पूरे गांव के लोगों ने हिस्सा लिया. अब ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर एक सांड को गांव के लोग बाबूजी क्यों कहते थे. इसकी कहानी भी बेहद दिलचस्प है.

दरअसल करीब 18 साल पहले एक सांड कुरडी गांव में आया था. सांड आक्रमक ना होकर इतना शांत और भोला भाला था कि वह किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता था. बच्चे उसके इतने अच्छे मित्र हो गए थे कि उसके शरीर पर बैठकर सवारी किया करते थे. सांड के इंसानों से इस प्रेम को देखकर गांव वालों ने उसका नाम 'बाबूजी' रख दिया. बाबूजी हर दिन गांव के लोगों के घर जाया करते थे जहां लोग उनके लिए घास और पानी रख दिया करते थे. वो सांड घास खाकर फिर अपनी जगह लौट आता था और गांव में कभी किसी पर कोई हमला नहीं किया.

कुछ दिन पहले सांड (बाबूजी) की तबीयत खराब हुई तो ग्रामीणों ने उसे बचाने की हरसंभव कोशिश की लेकिन उसकी मौत हो गई. सांड़ की मौत के बाद भी पूरे सम्मान के साथ उसे गांव वालों ने दफनाया और इंसानों की तरह तेरहवीं का आयोजन किया गया. इस मौके पर गांव के लोगों ने बाबूजी यानी की सांड की तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित कर भगवान से उसके आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की. इतना ही नहीं यज्ञ हवन के बाद ब्रह्म भोज का आयोजन किया गया जिसके बाद सभी लोगों के बीच प्रसाद बांटा गया. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक गांव के करीब 3000 लोगों ने इसमें हिस्सा लिया. इस घटना को लेकर गांव के लोगों ने कहा कि यह हमारे गांव के इष्ट देव माने जाते हैं. इसलिए मरने के बाद उन्हें सदगति मिले और हमारे गांव में सुख शांति बनी रहे इसके लिए यह सब किया गया है. इस मौके पर सुरेंद्र नाम के ग्रामीण ने कहा कि बाबूजी (सांड) को इसी गांव में मुकुट पहनाया गया था. सब गांव वालों ने उसकी बहुत अच्छी सेवा की. उसका (सांड) का रहन सहन भी बहुत अच्छा था और किसी को कभी कोई चोट नहीं पहुंचाई. बता दें कि सांड के श्राद्ध का सारा खर्च गांव के लोगों ने मिलजुलकर उठाया.

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