Vikram Batra: भारत के परमवीर सपूत कैप्‍टन विक्रम बत्रा आज 47 साल के होते, देश पर न्योछावर कर दी जान, अनसुने किस्से जानिए

Update: 2021-09-09 03:27 GMT

भारतीय सेना में परमवीर चक्र हासिल करना बहुत गौरव की बात होती है. बहुत कम वीर ऐसे हुए हैं जिन्हें युद्ध में अदम्य साहस का यह सर्वोच्च सम्मान हासिल हो पाता है. कैप्टन विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra) ऐसे वीर थे जिन्हें केवल 24 साल की उम्र में ही कारगिल युद्ध (Kargil War) में मरणोपरांत यह गौरव हासिल हुआ था. इस युद्ध में कैप्टन बत्रा ने साहस के साथ बेहतरीन रणकौशल और धैर्य का परिचय दिया. आज 9 सिंतबर को कैप्टन बत्रा का जन्मदिन है.

हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में 9 सिंतबर 9174 को जन्मे विक्रम बत्रा के पिता गिरधारी लाल बत्रा सरकारी स्कूल में प्रिंसिपल थे और उनकी मां एक स्कूल टीचर थीं. जुड़वां भाईयों में कैप्टन बत्रा बड़े थे. बचपन में उनका लव था और उनके भाई विशाल का नाम कुश है. उनकी बहनों का नाम सीमा और नूतन (नीतू) है. सेना में उन्हें उन्हें शेरशाह कह कर पुकारा जाता था.
कैप्टन बत्र बचपन से ही पढ़ाई में होशियार तो थे ही, वे एक बेहतीर खिलाड़ी भी थे. स्कूल के दिनों में उन्होंने दिल्ली में हुए यूथ पार्लियामेंट्री कॉम्प्टीशन में राष्ट्रीय स्तर पर भाग लिया था. उन्होंने अपने स्कूल कॉलेज की ओर से टेबल टेनिस, कराटे और अन्य खेलों में भाग लिया. वे टेबल टेनिस के बेहतरीन खिलाड़ी थे और उन्होंने 1990 में अपने भाई विशाल के साथ स्कूल का टेबल टेनिस के लिए ऑल इंडिया केविएस नशनल्स में प्रतिनिधित्व किया. उन्होंने कराटे में भी ग्रीन बेल्ट होकर नेशनल लेवल पर कैम्प में भाग लिया था.
विक्रम ने पालमपुर में स्कूल शिक्षा के बाद चंडीगढ़ में स्नातक की पढ़ाई की जिसके दौरान उन्होंने एनसीसी का सी सर्टिफिकेट हासिल किया और दिल्ली में हुई गणतंत्र दिवस की परेड में भी भाग लिया जिसके बाद उन्होंने सेना में जाने का फैसला कर लिया. स्तानक की पढ़ाई के दौरान ही बत्रा मर्चेंट नेवी के लिए हॉन्गकॉन्ग की कंपनी में चयनित हुए थे, लेकिन उन्होंने बढ़िया नौकरी की जगह देशसेवा तो तरजीह दी.
कैप्टन बत्रा को अपने आप पर पूरा भरोसा था. स्नातक की पढ़ाई के बाद उन्होंने संयुक्त रक्षा सेवा की तैयारी शुरू कर दी. 1996 में इसके साथ ही सर्विसेस सिलेक्शन बोर्ड में भी चयनित होककर और इंडियन मिलिट्री एकेडमी से जुड़ने के साथ वे मानेकशॉ बटालियन का हिस्सा बने. ट्रेनिंग पूरी करने के 2 साल बाद ही उन्हें लड़ाई के मैदान में जाने का अवसर मिल गया था.
दिसंबर 1997 उन्हें जम्मू में सोपोर में 13 जम्मूकश्मीर राइफ्लस में लेफ्टिनेट पद पर नियुक्ति मिली जिसके बाद जून 1999 में कारगिल युद्ध में ही वे कैप्टन के पद पर पहुंच गए. इसके बाद कैप्टन बत्रा की टुकड़ी को श्रीनगर-लेह मार्ग के ऊपर अहम 5140 चोटी को मुक्त करवाने की जिम्मदारी दी गई. कैप्टन ने अपने टुकड़ी का बखूबी नेतृत्व किया और 20 जून 1999 के सुबह साढ़े तीन बचे चोटी को अपने कब्जे में ले लिया. इसके बाद उन्हें रेडियो पर अपनी जीत पर कहा ये दिल मांगे मोर जो हर देशवासी की जुबां पर चढ़ गया.
बत्रा की टुकड़ी को इसके बाद 4875 की चोटी पर कब्जा करने की जिम्मेदारी मिली. इस बार भी वे सफल हुए लेकिन बहुत जख्मी हो गए. 7 जुलाई 1999 को चोटी पर भारत का कब्जा होने से पहले उन्होंने अपनी टुकड़ी के साथ कई पाकिस्तान सैनिकों को खत्म करते हुए अपने प्राणों की आहूति दे दी. कैप्टन बत्रा की बहादुरी के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र का सम्मान दिया गया. 4875 की चोटी को भी विक्रम बत्रा टॉप से जाना जाता है.
कैप्टन बत्रा की बहादुरी से बॉलीवुड बहुत प्रभावित रहा. कारगिल युद्ध पर बनी एलओसी कारगिल में अभिषेक बच्चन ने कैप्टन बत्रा की भूमिका निभाई तो साल 2021 में बनी फिल्म शेरशाह में सिद्धार्थ मल्होत्रा ने कैप्टन विक्रम बत्रा की भूमिका निभाई. यह फिल्म पूरी तरह से कैप्टन बत्रा के जीवन पर आधारित है.
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