उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू: 'युवा रामानुजाचार्य के जीवन से लें प्रेरणा, भेदभाव मुक्त समाज बनाने में बनें भागीदार'

भारतीय समाज में सामाजिक सुधार लाने के लिए 11वीं सदी के संत और समाज सुधारक श्री रामानुजाचार्य (Sant Ramanujacharya) के प्रयासों की सराहना करते हुए

Update: 2022-02-12 18:37 GMT

भारतीय समाज में सामाजिक सुधार लाने के लिए 11वीं सदी के संत और समाज सुधारक श्री रामानुजाचार्य (Sant Ramanujacharya) के प्रयासों की सराहना करते हुए. उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू (M Venkaiah Naidu) ने शनिवार को देश के युवाओं से उनके जीवन से प्रेरणा लेने का आग्रह किया. एक आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया है कि यहां पास में ''स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी'' (Statue Of Equality) का दौरा करने वाले उपराष्ट्रपति ने कहा कि रामानुजाचार्य की 'सभी के लिए समानता, सबका कल्याण' की शिक्षाओं को 'नए भारत' के निर्माण के प्रयास में मार्गदर्शक के रूप में लेना चाहिए. युवाओं से श्री रामानुजाचार्य के जीवन से प्रेरणा लेने का आह्वान करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें भेदभाव मुक्त समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भागीदार बनना चाहिए.

उन्होंने कहा, ''आइए हम श्री रामानुजाचार्य द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने के लिए खुद को फिर से समर्पित करें और महान संत के सिद्धांत 'भगवान की सेवा के रूप में सभी प्राणियों की सेवा करें' का पालन करके मानवता की पीड़ा को कम करने का प्रयास करें.'' जाति, वर्ग और लैंगिक असमानताओं को खत्म करने की दिशा में श्री रामानुजाचार्य के अथक प्रयासों के लिए उनकी प्रशंसा करते हुए नायडू ने कहा कि शांति और सद्भाव के लिए उनका दृष्टिकोण आज भी प्रासंगिक बना हुआ है.'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ', ग्रामीण स्वच्छता और अन्य सरकारी योजनाओं को रेखांकित करते हुए नायडू ने कहा कि ये सभी कार्यक्रम 'सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास' के दर्शन से प्रेरित हैं जो श्री रामानुजाचार्य की शिक्षाओं के अनुरूप है. बयान में कहा गया है कि हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय, केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी और अश्विनी चौबे भी इस अवसर पर उपस्थित थे.

जानिए कौन हैं रामानुजाचार्य स्वामी?
रामानुजाचार्य स्वामी का जन्म 1017 में तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में हुआ था. उनके माता का नाम कांतिमती और पिता का नाम केशवचार्युलु था. भक्तों का मानना है कि यह अवतार स्वयं भगवान आदिश ने लिया था. उन्होंने कांची अद्वैत पंडितों के अधीन वेदांत में शिक्षा प्राप्त की. उन्होंने विशिष्टाद्वैत विचारधारा की व्याख्या की और मंदिरों को धर्म का केंद्र बनाया. रामानुज को यमुनाचार्य द्वारा वैष्णव दीक्षा में दीक्षित किया गया था. उनके परदादा अलवंडारू श्रीरंगम वैष्णव मठ के पुजारी थे. 'नांबी' नारायण ने रामानुज को मंत्र दीक्षा का उपदेश दिया. तिरुकोष्टियारु ने 'द्वय मंत्र' का महत्व समझाया और रामानुजम को मंत्र की गोपनीयता बकरार रखने के लिए कहा, लेकिन रामानुज ने महसूस किया कि 'मोक्ष' को कुछ लोगों तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए, इसलिए वह पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से पवित्र मंत्र की घोषणा करने के लिए श्रीरंगम मंदिर गोपुरम पर चढ़ गए.


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