- लापरवाही के चलते नहीं अपनाई जा रही नीलामी प्रक्रिया
वर्षो से खड़े कूड़े के ढेर में बदलते जा रहे जप्त हुए इन लावारिस वाहनों के कारण थाना प्रांगण व उसके आस-पास अतिक्रमण जैसी स्थिति बनी हुई है.जहां का मंजर देखकर लगता है मानो वह कोई कबाड़ घर हो। दूसरी ओर बात क्षेत्रीय पुलिस चौकियों की करें तो उनका भी कुछ ऐसा ही हाल है। गौरतलब है कि चोरी की आशंका के चलते पुलिस द्वारा संबंधित धारा के अंतर्गत वाहन जप्त किये जाते है जिनका निराकरण न्यायालय के निर्देश पर ही संभव होता है जबकि लावारिस मिले वाहनों को पुलिस 25 एक्ट के तहत जप्त करती है। ऐसे वाहनों के निराकरण हेतु संबंधित प्रशासनिक अधिकारी की मंजूरी जरुरी होती है। इसके अतिरिक्त अवैध शराब इत्यादि परिवहन में वाहन जब्त किए जाने के अलावा एक समस्या यह भी है कि कई बार हादसे के बाद वाहन स्वामी उसका निराकरण कराने ही नही आते। इस तरह पुलिस द्वारा कब्जे में लिए गए ऐसे सभी वाहनों को संबंधित थाना परिसर में रखा जाता है। सूत्रों की माने तो इसके बाद जांच अधिकारी की जिम्मेदारी है कि वह उस वाहन पर उसका अपराध क्रमांक और उससे संबंधित जानकारी दर्ज करे, वही थाना प्रभारी द्वारा कार्यपालिक मजिस्ट्रेट को इन वाहनों की नीलामी प्रक्रिया के संबंध में प्रत्येक 6 माह में जानकारी भेजने का प्रावधान है। स्थिति ऐसी दिखाई पड़ती है कि संबंधित अधिकारियों की लापरवाही के साथ-साथ मालखाना इंचार्ज भी इन वाहनों की पूरी तरह देख-रेख नहीं कर पाते। संदर्भ में थाना लोनी बॉर्डर से मिली जानकारी के मुताबिक जब्त किए वाहनों की समस्या के निराकरण हेतु जिलाधिकारी एवं उप जिलाधिकारी को प्रेषित प्रार्थना पत्र को उनके कार्यालय में तैनात संबंधित कर्मचारी आसानी से ग्रहण करने को तैयार नहीं होते और मजबूरी वश उन्हें कई-कई बार वहां के चक्कर लगाने पड़ते हैं। मौजूदा समय में भी उप जिलाधिकारी के कार्यालय में काफी दिनों तक लंबित पड़ा रहना एक ऐसा प्रार्थना पत्र इसका जीता जागता उदाहरण है। मामले में जब उप जिलाधिकारी लोनी से बातचीत हुई तो उन्होंने बताया कि थानों पर जप्त वाहनों की नीलामी निर्धारित नियमनुसार होती है। अधिकांश वाहन ऐसे होते हैं जिनकी नीलामी प्रक्रिया न्यायिक आदेशनुसार मजिस्ट्रेट की देखरेख में अपनाई जाती है जबकि कुछ एक के लिए जिला अधिकारी के निर्देशानुसार कार्यवाही अमल में लाई जाती है। नीलामी के लिए वाहनों की वैल्यूएशन आदि की तमाम प्रक्रिया का प्लान संबंधित थाने के द्वारा किया जाता है। जहां तक इस संबंध में थाना लोनी बॉर्डर से उनके कार्यालय पर आये प्रार्थना पत्र के लंबित पड़े रहने की बात है, हो सकता है उनकी नियुक्ति से पूर्व कार्यालय पर पहुंचा हो जिसे निर्देशित कर वापस भेजा जा चुका होगा। फिर भी संज्ञान लेकर यदि ऐसा कोई प्रार्थना पत्र लंबित पाया जाता है तो उसका निस्तारण कर दिया जाएगा।
- आखिर जिम्मेदार कौन.?
जप्त किए गए तमाम वाहनों की देखरेख की सभी जिम्मेदारी मूल रूप से मालखाना मुंशी की होती है। पुलिस द्वारा जप्त वाहनों की संख्या को देखते हुए लोनी के प्रत्येक थाने में जगह कम होने तथा टीन सेट (छाया) की कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण वाहनों को खुले में रखा जाता है और इस तरह बारिश, धूप व धूल-मिट्टी के कारण यह लाखों के वाहन कबाडे में तब्दील होकर नष्ट होते जा रहे हैं। अफसोस की बात तो यह है कि संदर्भ को लेकर प्रदेश सरकार ने भी थानों में वर्षों से खड़े ऐसे वाहनों के प्रति चिंता जताई थी जिसे देखकर लगा था कि अब उक्त समस्या का कोई समाधान अवश्य निकलेगा। मगर वर्षो बीत जाने के बावजूद वह आज भी वह जस की तस मुंह बाएं खड़ी है।
अब ऐसे में यह सवाल खड़ा होना लाजमी है कि थानों में खड़े इन जप्ती वाहनों की इस दशा के लिए आखिर जिम्मेदार कौन है.? जो वास्तव में एक गंभीर जांच का विषय है।