अमेरिकी विदेश मंत्री ने भारत को दी चेतावनी, मानवाधिकारों के हनन में बढ़ोतरी की निगरानी कर रहा है US

Update: 2022-04-12 05:40 GMT

नई दिल्ली: भारत-अमेरिका टू-प्लस-टू वार्ता के बाद सोमवार को दोनों देशों के विदेश मंत्रियों और रक्षा मंत्रियों ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा कि अमेरिका भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड की निगरानी कर रहा है. उन्होंने कहा कि भारत में मानवाधिकार हनन के मामलों में वृद्धि हुई है. अमेरिका ने इससे पहले भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड पर इस तरह की कोई टिप्पणी नहीं की है. भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की मौजूदगी में अमेरिकी विदेश मंत्री का ये बयान भारत के लिए एक फटकार के रूप में देखा जा रहा है.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ब्लिंकन ने भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड पर बात करते हुए कहा, 'हम मानवाधिकार के इन साझा मूल्यों पर अपने भारतीय भागीदारों के साथ नियमित रूप से बात करते हैं. हम भारत के कुछ हालिया घटनाक्रमों की निगरानी कर रहे हैं जिनमें मानवाधिकार हनन के मामले शामिल हैं. हमने सरकार, पुलिस और जेल अधिकारियों द्वारा मानवाधिकारों के हनन में बढ़ोतरी देखी है.'
ब्लिंकन ने हालांकि भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड पर विस्तार से बात करने से परहेज किया. उनके संबोधन के बाद भारतीय विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री ने उनकी इस टिप्पणी पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
ब्लिंकन की ये टिप्पणी अमेरिकी प्रतिनिधि इल्हान उमर की उस आलोचना के कुछ दिनों बाद आई है जिसमें उमर ने कहा था कि भारत में मानवाधिकार हनन को लेकर जो बाइडेन सरकार नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना नहीं करना चाहती है.
जो बाइडेन की डेमोक्रेटिक पार्टी से ताल्लुक रखने वाली उमर ने पिछले हफ्ते कहा था, 'इससे पहले कि हम भारत को शांति का भागीदार मानना बंद कर दें, मोदी को भारत की मुस्लिम आबादी के साथ किस तरह पेश आने की जरूरत है?'
नरेंद्र मोदी सरकार के आलोचकों का कहना है कि उनकी हिंदू राष्ट्रवादी सत्ताधारी पार्टी ने 2014 में सत्ता में आने के बाद से धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया है.
आलोचकों का कहना है कि मोदी के सत्ता में आने के बाद से ही दक्षिणपंथी हिंदू समूहों ने अल्पसंख्यकों पर हमले शुरू कर दिए हैं. धर्मांतरण को लेकर भी मोदी सरकार ने सख्त रवैया अपनाया है. भारत के कई राज्य धर्मांतरण विरोधी कानून भी पारित कर चुके हैं.
साल 2019 में जब मोदी सरकार ने नागरिकता कानून पारित किया था तब भी सरकार को आलोचना का सामना करना पड़ा. आलोचकों का कहना है कि इस कानून के जरिए भारत सरकार ने पड़ोसी देशों के मुस्लिम प्रवासियों को देश से निकाल कर भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान को कमजोर करने की कोशिश
की है. कानून मुस्लिमों को छोड़कर बौद्धों, ईसाइयों, हिंदुओं, जैनियों, पारसियों और सिखों को भारत की नागरिकता देने के लिए था, जो 2015 से पहले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भागकर भारत आए थे.
2019 में भी नरेंद्र मोदी सरकार जब दोबारा सत्ता में आई तब उसने जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य का दर्जा खत्म कर दिया. सरकार के इस फैसले का कई हलकों में विरोध हुआ. सरकार ने जम्मू-कश्मीर में विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए कई कश्मीरी नेताओं को हिरासत में ले लिया और राज्य में सेना की तैनाती भी बढ़ा दी.
कर्नाटक की बीजेपी सरकार ने हाल ही में स्कूलों और कॉलेजों में मुस्लिम छात्राओं के हिजाब पहनने पर बैन लगा दिया जिसे लेकर भी नरेंद्र मोदी की बीजेपी सरकार की आलोचना हुई है.
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