महिला पर्वतारोही का अभूतपूर्व कारनामा, टीचर की नौकरी और परिवार की जिम्मेदारी के बीच बिना ऑक्सीजन के हिमालय की चोटी को छुआ
हुगली: हिंदी में एक कहावत है कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, इस कहावत को चरितार्थ करके दिखाया है हुगली के चंदन नगर की युवा महिला पर्वतारोही 30 वर्षीय पीयाली बसाक ने. पीयाली ने बिना ऑक्सीजन के यह अभूतपूर्व कारनामा करके दिखाया.
हुगली के चंदन नगर के कांटापुकुर इलाके की रहने वाली पीयाली बसाक ने जब हिमालय की 8167 मीटर ऊंची धौलागिरी की चोटी को चूमा तो उसके साथ-साथ गर्व के मारे पूरे भारत का सीना चौड़ा हो गया. आर्थिक प्रतिकूलताओं को मात देकर उसकी यह उपलब्धि वाकई में काबिले तारीफ है जहां पीयाली के पिता तपन बसाक अल्जाइमर और डिमेंशिया नामक एक लाइलाज बीमारी से पीड़ित हैं.
पीयाली को जहां एक ओर अपने पिता के इलाज का खर्चा उठाना होता है तो दूसरी ओर अपने घर संसार का जिम्मा भी उसके कंधों पर है. पीयाली, चंदननगर के कन्हाईलाल प्राथमिक विद्या मंदिर में बतौर एक शिक्षिका की नौकरी करती हैं.
इससे पहले साल 2019 में सिर्फ 400 मीटर दूरी नहीं तय कर पाने का मलाल पीयाली के दिल में रह गया था जब वह दुनिया की सबसे बड़ी पर्वत हिमालय की चोटी माउंट एवरेस्ट को चूमने से रह गई थीं लेकिन फिर भी उसने अपना हौसला नहीं तोड़ा और अंततः हिमालय की विश्वविख्यात चोटी धौलागिरी फतह करने का नया कारनामा करके दिखाया और वो भी बिना ऑक्सीजन के.
इससे पहले साल 2018 में पीयाली ने हिमालय की चोटी माउंट मानसरोवर पर भी चढ़ाई की थी. पीयाली की सफलता थी कि उनके परिवार और इलाके में खुशी और उत्साह का माहौल है.
बहन तमाली बसाक एक पैथोलॉजी लैब में काम करती है. तमाली ने बताया कि उसकी दीदी ने धौलागिरी श्रृंखला पर चढ़ाई का अभियान पिछले 5 सितंबर को शुरू किया था. उसकी मां सपना बसाक एक साधारण गृहिणी है. वो अपनी बेटी की एक बड़ी सफलता पर फूले नहीं समा रही हैं.