विश्वविद्यालय का कारनामा, पांच करोड़ रुपये की किताबों के लिए 50 लाख के किराये पर ली जगह

शिक्षकों और छात्रों ने आरोप लगाए हैं कि मानकों का पालन नहीं किया गया.

Update: 2021-11-23 03:42 GMT

पटना: बिहार के पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय का भवन अभी नहीं बना है। बावजूद इसके पांच करोड़ रुपये की किताबें और अलमीरा की खरीद की गई। इन किताबों को रखने की जगह नहीं थी। कई महीने तक किताबें एक ही कमरे में पड़ी रहीं। जब मामले का खुलासा हुआ तो आनन-फानन में आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय में किताबों को रखने के लिए किराए पर एक फ्लोर लिया गया है। इसके लिए 50 लाख रुपए से अधिक का किराया साल में विश्वविद्यालय को देना होगा।

किताबों का इस्तेमाल नहीं हो रहा है। छात्र इन्‍हें पढ़ने नहीं जा रहे हैं। यह खरीद पूर्व कुलपति जीएस जायसवाल के आदेश पर खरीद हुई थी। शिक्षकों और छात्रों ने आरोप लगाए हैं कि मानकों का पालन नहीं किया गया। सिलेबस और समसामयिक मुद्दों के इतर किताबें खरीद ली गईं। बिहार के कुछ अन्‍य विश्वविद्यालयों में भी किताबों की खरीदारी में गड़बड़ी का मामला सामने आया है। ताजा संस्करण की बजाए पुरानी किताबें भी खरीद ली गई हैं। कई बिना उपयोग की भी हैं। आरोप है कि दिल्ली की दरियागंज मंडी से पुरानी किताबें आई हैं। दिल्ली की एक ही कंपनी को कई विश्वविद्यालयों के लिए ऑर्डर मिलने से शक और गहरा गया है।
दरअसल, विश्वविद्यालयों में पुस्तकों की खरीद में बिना टेंडर के ही पुस्तकों के लिए आर्डर दिए जाते रहे हैं। इसी की आड़ में जमकर खेल हुआ है। बिना जरूरत की भी किताबों की खरीद हुई है। बिहार के कई विश्वविद्यालयों सहित दूसरे राज्य के अन्य विश्वविद्यालयों में दिल्ली की एक ही कंपनी इंडिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स प्राइवेट लिमिटेड, अंसारी रोड, दरियागंज से पुस्तकों की खरीदारी की जा रही है।
मगध विश्वविद्यालय के पुस्तकालयों के लिए लगभग पांच करोड़ की खरीदारी की गई। यह खरीदारी भी दिल्ली की ही कंपनी इंडिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स प्राइवेट लिमिटेड से की गई। मगध विवि में विजिलेंस की टीम ने किताबों की खरीदारी के मामले को पकड़ा है। इसकी जांच अभी चल रही है। इसमें भी किताबें मानक के अनुरूप नहीं खरीदी गईं।
पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय का भवन अभी नहीं बना है। बावजूद इसके पांच करोड़ रुपये की किताबें और अलमीरा की खरीद की गई। पूर्व कुलपति जीएस जायसवाल के आदेश पर खरीद हुई थी। इसमें शिक्षकों और छात्रों ने आरोप लगाए हैं कि मानकों का पालन नहीं किया गया। सिलेबस और समसामयिक मुद्दों के इतर किताबें खरीद ली गईं। इतना ही नहीं किताबों को रखने की जगह तक नहीं थी। इस कारण कई महीने तक किताबें एक ही कमरे में पड़ी रहीं। जब मामले का खुलासा हुआ तो आनन-फानन में आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय में किताबों को रखने के लिए किराए पर एक फ्लोर लिया गया है। इसके लिए 50 लाख रुपए से अधिक का किराया साल में विश्वविद्यालय को देना होगा। इन किताबों का इस्तेमाल भी सही तरीके से नहीं हो रहा है। यहां छात्र पढ़ने भी नहीं जा रहे हैं।
विश्वविद्यालयों में सामान्यत: शिक्षकों और छात्रों की आवश्यकता के अनुसार पुस्तकालय समिति खरीद करती है। टेंडर नहीं होता है। अपडेट संस्करण सीधे पब्लिशर्स से खरीदे जाते हैं। यूजीसी की ओर से इस संबंध में गाइडलाइन है।
प्रो. आरके वर्मा, पूर्व कुलपति, मुंगेर विश्वविद्यालय
किताबों की खरीदारी इंडिका पब्लिशर्स डिस्ट्रीब्यूशन लिमिटेड से ही हुई है। वर्तमान में लाइब्रेरी आर्यभट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी में स्थापित की गयी है। कैंपस के लिए पीजी में दाखिला नहीं हुआ है।
डॉ. जितेंद्र कुमार, कुलसचिव, पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय
उपयोग की नहीं किताबें
इसके अलावा अलग-अलग समय में वीर कुंवर सिंह विवि आरा, तिलकामांझी विवि भागलपुर में भी इसी कंपनी से किताबों की खरीद हुई है। इसकी भी जांच चल रही है। कई कॉलेजों के प्राचार्यों और शिक्षकों ने आरोप लगाया है कि आधी से अधिक किताबें किसी उपयोग की नहीं हैं। विभागाध्यक्षों की आपत्ति को भी इसमें दरकिनार किया गया है। बहुत सारी किताबें सिलेबस के अनुसार नहीं हैं। सिर्फ अलमीरा का शोभा बढ़ाने के लिए किताबें खरीदी गई हैं। इन शिक्षकों का कहना है कि कीमत से ज्यादा दाम दिए गए हैं। विजिलेंस इसकी भी जांच कर रही है।


Tags:    

Similar News

-->