तृणमूल समर्थित पार्टी ने दार्जिलिंग, कलिम्पोंग में प्रतिद्वंद्वियों को मुश्किल में डाला

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Update: 2023-07-15 16:08 GMT
कोलकाता (आईएएनएस)। दार्जिलिंग और कलिम्पोंग के दो पहाड़ी जिलों में कोई छाप नहीं छोड़ने के बावजूद सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के पास इन दोनों जिलों में पंचायत चुनावों के नतीजों से खुश होने की वजह है। शेष जिलों से अलग इन दोनों जिलों में चुनाव केवल ग्राम पंचायत और पंचायत समिति के दो स्तरों के लिए आयोजित किए गए थे। चूंकि गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) पहाड़ियों में नागरिक प्रशासन का समग्र प्रभारी है, इसलिए जिला परिषद स्तर पर कोई चुनाव नहीं हुआ। अनित थापा के नेतृत्व वाला भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा (बीजीपीएम), जिसे तृणमूल कांग्रेस का बाहरी समर्थन प्राप्त था, एक तरफ था। दूसरी तरफ भाजपा के नेतृत्व में आठ दलों का गठबंधन जिसमें गोरखा जनमुक्ति मोर्चा, हमरो पार्टी, गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ रिवोल्यूशनरी मार्क्सवादी, अखिल भारतीय गोरखा लीग, सुमेती मुक्ति मोर्चा और गोरखालैंड राज्य निर्माण पार्टी शामिल थे।
बुधवार दोपहर को परिणाम स्पष्ट होने के बाद, बीजीपीएम इन दोनों पहाड़ी जिलों में दोनों स्तरों पर आठ-पक्षीय गठबंधन से काफी आगे थी। दार्जिलिंग की 70 ग्राम पंचायतों में से 38 बीजीपीएम के पास गईं, 14 निर्दलीय के पास और तीन भाजपा के पास गईं। शेष 15 ग्राम पंचायतों में स्थिति अधर में लटकी हुई है। उसी जिले में पंचायत समितियों के मामले में, बीजीपीएम को पांच में से चार पर जीत मिली है, जबकि एक पंचायत समिति में त्रिशंकु फैसला आया है। कलिम्पोंग जिले में 42 में से 29 ग्राम पंचायतें बीजीपीएम के पास चली गई हैं। जहां भाजपा दो सीटों पर सिमट गई, वहीं आठ सीटें निर्दलीयों के खाते में गईं। इसी जिले में पंचायत समितियों में बीजीपीएम को चार में से दो पर जीत मिली है, जबकि शेष दो पंचायत समितियां निर्दलीय उम्मीदवारों के पास गई हैं।
नतीजों से उत्साहित बीजीपीएम प्रमुख अनित थापा, जो जीटीए के मुख्य कार्यकारी भी हैं, ने कहा कि उन्हें बेहद खुशी है कि पहाड़ों में पंचायती राज व्यवस्था लोकतांत्रिक तरीके से लौट आयी है। उन्होंने कहा, ''पहाड़ियों में इस बार चुनाव संबंधी हिंसा की एक भी घटना नहीं हुई। अब हमारा एकमात्र लक्ष्य पहाड़ का विकास है। चुनाव नतीजों के बाद से गोरखा जनमुक्ति मोर्चा सुप्रीमो बिमल गुरुंग, जो कभी पहाड़ियों में अंतिम दावेदार थे, मीडिया से संपर्क में नहीं हैं। यहां तक कि उनकी पार्टी के महासचिव रोशन गिरि ने भी मीडिया के सवालों का जवाब नहीं दिया।''
भाजपा के एक लोकसभा सदस्य ने हार स्वीकार करते हुए कहा कि पहाड़ों में दोनों स्तरों पर उनके निर्वाचित सदस्य लोगों के विकास के लिए काम करेंगे। पहाड़ी राजनीति के वरिष्ठ पर्यवेक्षकों का मानना है कि दो स्तरों के नतीजे दार्जिलिंग लोकसभा क्षेत्र के मामले में 2024 की बड़ी लड़ाई के लिए भाजपा के लिए एक चेतावनी है। इस सीट पर 2009 से लगातार भगवा खेमे के उम्मीदवार संसद के लिए चुने गए हैं। तृणमूल कांग्रेस-बीजीपीएम गठबंधन ने ग्रामीण नागरिक निकाय चुनावों में इस जोड़ी के लिए अद्भुत काम किया है। सात पहाड़ी पार्टियों के साथ समझौता करने की भाजपा की कोशिशों का कोई नतीजा नहीं निकला है। यह भी स्पष्ट है कि बिमल गुरुंग पहाड़ी मतदाताओं को गोलबंद करने की स्थिति में नहीं हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, भाजपा के लिए चिंता का कारण यह है कि यह जीजेपी ही थी जिसने 2009, 2014 और अंततः 2019 में लगातार लोकसभा चुनावों में दार्जिलिंग निर्वाचन क्षेत्र में भगवा खेमे के उम्मीदवारों की नैया पार लगाई थी। अब यह देखना होगा कि 2024 में दार्जिलिंग लोकसभा सीट के लिए तृणमूल कांग्रेस और बीजीपीएम के बीच क्या समझौता होगा - क्या वहां बीजीपीएम समर्थित तृणमूल कांग्रेस का उम्मीदवार होगा या इसके विपरीत।
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