कवि मलय की याद में श्रद्धांजलि सभा

लखनऊ। वरिष्ठ़ कवि 'मलय' की याद में लहक डिजिटल द्वारा श्रद्धांजलि सभा का आयोजन 14 जनवरी को सम्पन्न हुआ । इस गोष्ठ़ी में मलय जी के जीवन, रचना कर्म और कविता में उनके योगदान को बड़ी शिद्दत के साथ स्मरण किया गया । उनकी रचनात्मक सक्रियता, उनकी मित्रता और आलोचकीय उपेक्षा को भी रेखांकित किया …

Update: 2024-01-16 07:13 GMT

लखनऊ। वरिष्ठ़ कवि 'मलय' की याद में लहक डिजिटल द्वारा श्रद्धांजलि सभा का आयोजन 14 जनवरी को सम्पन्न हुआ । इस गोष्ठ़ी में मलय जी के जीवन, रचना कर्म और कविता में उनके योगदान को बड़ी शिद्दत के साथ स्मरण किया गया । उनकी रचनात्मक सक्रियता, उनकी मित्रता और आलोचकीय उपेक्षा को भी रेखांकित किया गया । ज्ञात हो कि मलय जी का निधन जबलपुर में 9 जनवरी को हुआ। उस वक्त उनकी उम्र 94 साल के करीब थी। उनका जन्म 19 नवम्बर 1929 को हुआ। उनके 13 कविता संकलन हैं। बढ़ती उम्र के बावजूद उनकी सक्रियता बनी हुई थी। शुरुआती दिनों में उन्होंने पत्रकारिता की। बाद में वे अध्यापन कार्य से जुड़े।

स्मरण सभा की शुरुआत 'लहक' के संपादक निर्भय देवयांश ने की। उनका कहना था कि मलय को मुक्तिबोध के जैसा कवि कहा जाता है लेकिन मुक्तिबोध से उनका दायरा बड़ा है। सहजता व सरलता उनके जीवन और कविता दोनों में है । वे हमारे बीच अपनी रचनाओं से रहेंगे। निर्भय देवयांश ने उनकी एक कविता के माध्यम से भी याद किया।

युवा कवि शरद कोकास ने मलय जी का स्मरण करते हुए उनकी साहित्य यात्रा के तमाम प्रसंगों, कविताओं, लेखन व अवदान की चर्चा की। उनका कहना था कि मलय जी ने प्रगतिशील लेखक संघ के बैनर तले बहुत सी 'लेखन कार्यशालाओं' का आयोजन किया जिसके कारण कविता की नयी पीढी का निर्माण हुआ । इस मौके पर उनकी एक कविता का पाठ किया जिसमें वे कहते हैं - 'मैं इतनी जल्दी/कैसे छोड़ दूँ/यह दुनिया!/अभी सूखती नदियों की तरह/उदास खड़ी हैं बहनें/भाई फटे गमछे सेबाँधे है कान !और हिमालय बर्फ़ से जमा देना चाहता है/शरीर की सारी गंगोत्रियाँ/मेरी माँ बुहारती है ज़िन्दगी…./मैं छोड़ नहीं सकता ये दुनिया/इतनी जल्दी कैसे छोड़ दूँ ये दुनिया !!'

वरिष्ठ़ कवि व आलोचक कौशल किशोर ने मलय जी को 'लोकधर्मी' कवि कहा । उनका कहना था कि मलय स्वभाव से प्रगतिशील थे। वह मात्र सांगठनिक प्रगतिशील नहीं थे । उनका लेखन क्षेत्र व्यापक रहा है। आधुनिकतावादी काव्यधारा का उन पर प्रभाव नहीं था। बल्कि उनकी जड़ें लोकजीवन में रही हैं। मुक्तिबोध और परसाई जी के साथ के बावजूद उन्होंने अपनी राह बनाई। उनमें जीवन के प्रति गहरी प्रत्याशा है। अपनी रचनाओं के माध्यम से वे हमारे बीच रहेंगे।

वरिष्ठ़ कवि सुधीर सक्सेना ने मलय जी के साथ के अपने लम्बे जुड़ाव को याद करते हुए कहा कि वे समृद्ध कविताओं के कवि हैं। यदि वे विस्मृति हैं, तो क्यों? यह विचार और विश्लेषण का विषय है। पार्टनर शब्द उनका तकिया कलाम था। यह मुक्तिबोध में भी मिलता है। मुक्तिबोध बेहतरी की बात करते हैं और मलय जी की कविता में भी यह बात है। दोनों का काव्य वैशिष्ट्य अलग है। जहां मुक्तिबोध यथार्थ से मुठभेड़ के कवि हैं। वहीं मलय में प्रगतिशील चेतना है और गहरी प्रतिबद्धता है। उनका ठीक से वर्गीकरण नहीं हुआ जो होना चाहिए था।

युवा कवि असंगघोष मलय जी के स्नेह पात्र रहे । मलय के नजदीक रहे। उन्होने भावुक होकर मलय जी का स्मरण किया और अपने संस्मरण सुनाए । मलय की कविताओं को उन्होने रेखांकित करते हुए उनकी शुरुआती रचनाओं को एकत्र कर रचनावली के सातवाँ खण्ड लाने की बात भी कही ।

वरिष्ठ़ आलोचक कर्ण सिंह चौहान ने बहस का समापन करते हुए कहा कि मलय ने खूब लिखा और उन पर बात हुई । मलय के जीवन काल में रचनावली का प्रकाशित हो जाना एक उपलब्धि है । उन्होने मलय की कविताओं का जिक्र करते हुए कहा कि उनकी कविताओं में जीवन है और जीवन से जुडाव है । उन्होंने समाज से संवाद किया है। उनकी कविता को और खोलने की जरूरत है। उनका साहित्य संसार काफी भरा पूरा है । उनकी रचनाएं लगातार आती रही है। नोटिस भी ली गई। ऐसे में नहीं कहा जा सकता कि उनकी उपेक्षा हुई है । उन पर चर्चा हुई है और आगे भी होती रहेगी।

अन्त में सभी का लहक डिजिटल की तरफ़ से युवा आलोचक उमाशंकर सिंह परमार ने धन्यवाद ज्ञापन किया और घोषित किया कि मलय जी सहित विजेन्द्र, मानबहादुर सिंह, भगवत रावत आदि लोकधर्मी कवियों के बहाने आधुनिक हिन्दी कविता पर लहक डिजिटल के मंच पर हरेक रविवार को विचार विमर्श होता रहेगा ।

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