ट्रेन विस्फोट मामला: SC का टाडा कोर्ट को निर्देश, तीन महीने के अंदर आरोपी के खिलाफ आरोप तय करने को कहा

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Update: 2021-09-27 17:14 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राजस्थान के अजमेर की एक विशेष टाडा कोर्ट को निर्देश दिया है कि वह 1993 में कई राजधानी एक्सप्रेस और अन्य ट्रेनों में सिलसिलेवार विस्फोटों के आरोपी के खिलाफ तीन महीने के भीतर आरोप तय करे. आरोपी 11 साल की जेल की सजा काट रहा है. शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश पुलिस की ओर से साल 2010 में गिरफ्तार किए गए हमीर उई उद्दीन की जमानत याचिका को लंबित रखा और कहा कि उसके खिलाफ आरोप तय होने के बाद इस पर विचार किया जाएगा.

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने सीबीआई से कहा कि वह मामले में आरोप तय करने के लिए गाजियाबाद जेल में बंद सह-आरोपी सैयद अब्दुल करीम उर्फ टुंडा को विशेष अदालत के सामने पेश करने में मदद करे और मामले में सुनवाई शुरू करना सुनिश्चित करे. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 10 दिसंबर को सूचीबद्ध की है.
हमीर उई उद्दीन की ओर से पेश वकील शोएब आलम ने कहा कि मौजूदा मामले के तथ्य चौंकाने वाले हैं और याचिकाकर्ता इस स्तर पर निर्दोष है क्योंकि कोई मुकदमा नहीं चलाया गया है. उन्होंने कहा कि बिना आरोप तय किए उन्हें 10 साल से अधिक समय तक हिरासत में रखने का कोई आधार नहीं है, जहां वैध रूप से यह उम्मीद की जाती है कि उन्हें अधिकतम सजा आजीवन कारावास हो सकती है.
आलम ने कहा, 'सीबीआई ने अपने जवाबी हलफनामे में एक विकृत दलील दी है कि मूल रिकॉर्ड के अभाव में आरोप तय करने में देरी हुई. अभियोजन शुरू करने या ट्रायल करने के लिए ऑरिजनल रिकॉर्ड्स की कोई आवश्यकता नहीं है. फरार आरोपी व्यक्तियों के मामले में सीबीआई मैनुअल 30 साल की अवधि के लिए रिकॉर्ड और मामले की संपत्ति को संरक्षित करती है. रिकॉर्ड की हमेशा कई प्रतियां उपलब्ध होती हैं और आरोप तय किए जा सकते हैं.'
याचिकाकर्ता के अधिकारों का घोर उल्लंघन हुआः वकील
आलम ने दलील दी कि निचली अदालत द्वारा सात साल की लंबी अवधि के लिए आरोपी को वकील नहीं देना न्याय की एक अचेतन विफलता है. उन्होंने कहा, 'यह न केवल आरोपी के लिए एक संवैधानिक गारंटी है, बल्कि यह सीआरपीसी की धारा 304 के तहत ट्रायल कोर्ट का एक वैधानिक कर्तव्य भी है. याचिकाकर्ता के इन अधिकारों का घोर उल्लंघन किया गया है और इसके लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं है.'
हमीर उई उद्दीन को उत्तर प्रदेश पुलिस और लखनऊ स्पेशल टास्क फोर्स ने 2 फरवरी, 2010 को गिरफ्तार किया था और 8 मार्च 2010 को अजमेर टाडा अदालत के समक्ष पेश किया गया था, जिसने उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया था. साल 2010 में उनके खिलाफ टाडा और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान की रोकथाम अधिनियम और भारतीय रेलवे अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत 8000 पन्नों का आरोप पत्र दायर किया गया था.
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