गांव में अंधविश्वास की परम्परा: ग्रामीण वाले खुद को बताते है पांडवों का वंशज, मन्नत पूरी कराने और बहन की विदाई करने के लिए कांटों की सेज पर लेटते हैं

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Update: 2021-12-18 01:28 GMT

मध्य प्रदेश के बैतूल के एक गांव में अंधविश्वास की परम्परा के चलते लोग इक्कीसवीं सदी में भी कांटो पर लेट कर परीक्षा देते है. यहां आज भी आस्था के नाम पर एक दर्दनाक खेल खेला जा रहा है. अपने आप को पांडवों का वंशज कहने वाले रज्जड़ समाज के लोग अपनी मन्नत पूरी कराने और बहन की विदाई करने के लिए खुशी-खुशी कांटों की सेज पर लेटते हैं. बैतूल के सेहरा गांव में हर साल अगहन मास पर रज्जड़ समाज के लोग इस परंपरा को निभाते हैं. इन लोगों का कहना है कि हम पांडवों के वंशज हैं. पांडवों ने कुछ इसी तरह से कांटों पर लेटकर सत्य की परीक्षा दी थी इसीलिए रज्जड़ समाज इस परंपरा को सालों से निभाता आ रहा है.

इन लोगों का मानना है कि कांटों की सेज पर लेटकर वो अपनी आस्था, सच्चाई और भक्ति की परीक्षा देते हैं. ऐसा करने से भगवान खुश होते हैं और उनकी मनोकामना भी पूरी होती है. इसके अलावा यह भी मान्यता है कि इस कार्यक्रम के बाद वे अपनी बहन की विदाई करते है. रज्जड़ समाज के ये लोग पूजा करने के बाद नुकीले कांटों की झाड़ियां तोड़कर लाते हैं और फिर उन झाड़ियों की पूजा की जाती हैं. इसके बाद एक-एक करके ये लोग नंगे बदन इन कांटों पर लेटकर सत्य और भक्ति का परिचय देते हैं.
इस मान्यता के पीछे एक कहानी यह है कि एक बार पांडव पानी के लिए भटक रहे थे. बहुत देर बात उन्हें एक नाहल समुदाय का एक व्यक्ति दिखाई दिया. पांडवों ने उस नाहल से पूछा कि इन जंगलों में पानी कहां मिलेगा, लेकिन नाहल ने पानी का स्रोत बताने से पहले पांडवों के सामने एक शर्त रख दी. नाहल ने कहा कि, पानी का स्रोत बताने के बाद उनको अपनी बहन की शादी भील से करानी होगी. पांडवों की कोई बहन नहीं थी इस पर पांडवों ने एक भोंदई नाम की लड़की को अपनी बहन बना लिया और पूरे रीति-रिवाजों से उसकी शादी नाहल के साथ करा दी.
विदाई के वक्त नाहल ने पांडवों को कांटों पर लेटकर अपने सच्चे होने की परीक्षा देने का कहा. इस पर सभी पांडव एक-एक कर कांटों पर लेटे और खुशी-खुशी अपनी बहन को नाहल के साथ विदा किया.
इसलिए रज्जड़ समाज के लोग अपने आपको पंड़वों का वंशज कहते हैं और कांटों पर लेटकर परिक्षा देते हैं. परंपरा पचासों पीढ़ी से चली आ रही है, जिसे निभाते वक्त समाज के लोगों में खासा उत्साह रहता है. ऐसा करके वे अपनी बहन को ससुराल विदा करने का जश्न मनाते हैं. यह कार्यक्रम पांच दिन तक चलता है और आखिरी दिन कांटों की सेज पर लेटकर खत्म होता है.
वहीं इस प्रथा को लेकर डॉ रानू वर्मा का कहना है कि ऐसे नंगे बदन कांटों पर लेटना किसी भी लिहाज से सही नहीं है. इससे गंभीर चोट लग सकती है और कई तरह के संक्रमण और बैक्टिरियल इंफेक्शन हो सकते हैं और इससे किसी की जान भी जा सकती है.
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