पर्यटन ही है शांति एवं जीवन मुस्कान का जरिया

Update: 2023-09-25 07:21 GMT

 ललित गर्ग 

विश्व पर्यटन दिवस हर साल 27 सितंबर को मनाया जाता है। वर्ष- 2023 की विश्व पर्यटन दिवस की थीम ‘पर्यटन और हरित निवेश’ है। हर साल यूनाइटेठ नेशन वर्ल्ड टूरिज्म ओरगेनाइजेशन द्वारा किसी एक देश को पर्यटन दिवस की मेजबानी के लिए चुना जाता है, 2023 में ‘रियाद, सऊदी अरब साम्राज्य‘ इस महत्वपूर्ण दिन के कार्यक्रमों की मेजबानी कर रहा है। पिछली साल 2022 में बाली, इंडोनेशिया को मेजबान देश (होस्टिंग कंट्री) चुना गया था। आज विश्वस्तर पर युद्ध की स्थितियां गहराई हुई है, हर व्यक्ति महंगाई, बेरोजागारी, बीमारी, महामारी आदि किसी-ना-किसी परेशानी से घिरा हुआ है, भय और जीवनसंकट के इस दौर में ऐसा लगता है मानो खुशी एवं मुस्कान तो कहीं गुम हो गई है। बावजूद इन सबके हर व्यक्ति को अपने जीवन में कुछ समय ऐसा जरूर निकालना चाहिए जिसमें खुशी, शांति एवं प्रसन्नता के पल जीवंत हो सके, इसका सशक्त माध्यम है पर्यटन। खुशियों एवं शांतिपूर्ण जीवन को गले लगाने के लिये पर्यटन पर जरूर निकलना चाहिए।

पर्यटन सिर्फ हमारे जीवन में खुशियों के पलों को वापस लाने में ही मदद नहीं करेगा बल्कि यह किसी भी देश के सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका का माध्यम भी बनेगा। अनेक कारणों से दुनिया में आर्थिक संकट के बादल मंडरा रहे हैं, इन हालातों हर देश की पहली जरूरत अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है उसमें पर्यटन की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। क्योंकि कई देशों की अर्थव्यवस्था पर्यटन-उद्योग के इर्द-गिर्द घूमती रही है। यूरोपीय देश, तटीय अफ्रीकी देश, पूर्वी एशियाई देश, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और भारत आदि ऐसे देश हैं जहां पर पर्यटन उद्योग से प्राप्त आय वहां की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करता है। भारत ने अतीत में अपने कल्पित धन, सांस्कृतिक वैभव, प्रकृति एवं मनोरम छटाओं के कारण बहुत से विदेशी यात्रियों को आकर्षित किया। चीनी बौद्ध धर्मनिष्ठ ह्वेनसांग की यात्रा इसका एक उदाहरण है। तीर्थ यात्रा को सम्राट अशोक और सम्राट हर्ष ने बल देने के लिये अनेक निर्माण करवाये। भारतीय अर्थशास्त्र सरकारों के लिये पर्यटन क्षेत्र के बुनियादी ढाँचे के महत्त्व को इंगित करता है, जिसने अतीत में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्वतंत्रता के पश्चात पर्यटन क्षेत्र लगातार पंचवर्षीय योजनाओं का हिस्सा बना रहा है। सातवीं पंचवर्षीय योजना के बाद भारत में पर्यटन के विभिन्न रूप जैसे- व्यापार पर्यटन, स्वास्थ्य पर्यटन और वन्यजीव पर्यटन आदि प्रस्तुत किये गए। वर्ष 2021 में विश्व यात्रा और पर्यटन परिषद की रिपोर्ट में 178.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर के योगदान के साथ भारत का पर्यटन क्षेत्र विश्व सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में अपने योगदान में छठे स्थान पर है।

भारत एक विविधतापूर्ण पर्यटन संभावनाओं एवं समृद्धि वाला देश है और यह सांस्कृतिक, प्रकृति, विरासत, शैक्षिक, खेल, ग्रामीण, पर्यावरण-पर्यटन आदि सहित कई प्रकार के पर्यटन प्रदान करता है। भारत की यह विविधता इसे पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण बनाती है। भारत में पर्यटन में तेज़, अधिक टिकाऊ और अधिक समावेशी विकास को बढ़ावा देने की क्षमता है। विश्व पर्यटन दिवस के लिए 27 सितंबर का दिन चुना गया क्योंकि इसी दिन 1970 में विश्व पर्यटन संगठन का संविधान स्वीकार किया गया था। पर्यटन दिवस को वैश्विक पर्यटन को बढ़ावा देने के प्रयास हेतु मील के पत्थर के रूप में देखा जाता है एवं इस दिवस को मनाने का उद्देश्य विश्व में इस बात को प्रसारित तथा जागरूकता फैलाने के लिए हैं कि किस प्रकार पर्यटन वैश्विक रूप से दुनिया को एक परिवार के रूप में विकसित करते हुए सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक तथा आर्थिक मूल्यों को तथा आपसी समझ बढ़ाने में सहायता कर सकता है। यह विश्व शांति का मुख्य आधार है। भारत जैसे देशों के लिए पर्यटन का खास महत्व है। देश की पुरातात्विक विरासत या सांस्कृतिक धरोहर केवल दार्शनिक, धार्मिक, सांस्कृतिक स्थल के लिए नहीं है बल्कि यह राजस्व प्राप्ति का भी स्रोत है। पर्यटन क्षेत्रों से कई लोगों की रोजी-रोटी भी जुड़ी है। आज भारत जैसे देशों को देखकर ही विश्व के लगभग सभी देशों में पुरानी और ऐतिहासिक इमारतों का संरक्षण, संवर्द्धन किया जाने लगा है।

भारत असंख्य पर्यटन अनुभवों और मोहक स्थलों का देश है। चाहे भव्य स्मारक हों, प्राचीन मंदिर या मकबरे हों, नदी-झरने, प्राकृतिक मनोरम स्थल हो, इसके चमकीले रंगों और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रौद्योगिकी से चलने वाले इसके वर्तमान से अटूट संबंध है। केरल, शिमला, गोवा, आगरा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, मथुरा, काशी जैसी जगहें तो अपने विदेशी पर्यटकों के लिए हमेशा चर्चा में रहती हैं। भारत में अपने लोगों के साथ लाखों विदेशी लोग प्रतिवर्ष भारत घूमने आते हैं। यहां सभी प्रकार के पर्यटकों को चाहे वे साहसिक यात्रा पर हों, सांस्कृतिक यात्रा पर या वह तीर्थयात्रा करने आए हों या खूबसूरत समुद्री-तटों की यात्रा पर निकले हों, सबके लिए खूबसूरत जगहें हैं। दिल्ली, मुंबई, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, दक्षिण भारत के अनेक राज्यों में तो लोगों को घूमते-घूमते महीना बीत जाते हैं।

भारत अपनी सुंदरता के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। भारत में विभिन्न संप्रदाय-धर्म और जाति के लोग एक साथ मिलकर रहते हैं। अपनी समृद्ध सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, प्राकृतिक धरोहर के कारण भारत दुनिया के प्रमुख पर्यटन देशों में शुमार होता है। यहां के हर राज्य की अलौकिक और विलक्षण विशिष्टताएं हैं जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। उन पर्यटकों के लिए भारत-यात्रा का विशेष आकर्षण है जो शांत, जादुई, सौंदर्य और रोमांच की तलाश में रहते हैं। इन पर्यटकों के लिये भारत में विपुल यात्रा साहित्य अपनी एक विशेष पहचान और उपयोगिता को लेकर प्रस्तुत होता रहा है। अब तक यात्रा साहित्य की दृष्टि से राहुल सांकृत्यायन का ‘मेरी तिब्बत यात्रा’, डॉ. भगवतीशरण उपाध्याय का ‘सागर की लहरों पर’, कपूरचंद कुलिश का ‘मैं देखता चला गया’, धर्मवीर भारती का ‘ढेले पर हिमालय’ तथा नेहरू का ‘आंखों देखा रूस’, रामेश्वर टांटिया का ‘विश्व यात्रा के संस्मरण’, आचार्य तुलसी का यात्रा साहित्य की ही भांति मेरे मित्र श्री पुखराज सेठिया का ‘आओ घूमे अपना देश’ एक मार्मिक और रोचक यात्रा-वृतांत है।

इन यात्रा ग्रंथों में तथ्यपरकता, भौगोलिकता, रोचकता, सरसता और सहजता आदि यात्रा-वृत्त के सभी गुण समाहित हैं। इन ग्रंथों के कारण देश की इन विविधताओं ने ही देश एवं दुनिया के अनेक यायावरी लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया है। इन यायावरी पुरुषों के जीवन का लक्ष्य जीवन की आपाधापी, भागदौड़ से हटकर प्रमुख पर्यटन स्थलों के बीच जीवन के मायने ढूंढ़ना रहा है। इसी सत्य की खोज ने उन्हें ऐसे-ऐसे ऐतिहासिक, प्राकृतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक स्थलों से साक्षात्कार करवाया है। इन यात्रा-ग्रंथों में केवल प्रमुख दर्शनीय स्थलों का वर्णन नहीं है बल्कि वहां के लोगों, वहां के खान-पान, वहां की जीवनशैली, वहां के सांस्कृतिक मूल्य, वहां के ऐतिहासिक तथ्य का भी जीवंत प्रस्तुतीकरण है। यह भारत पल-पल परिवर्तित, नितनूतन, बहुआयामी और इन्द्रजाल की हद तक चमत्कारी यथार्थ से परिपूर्ण है। इस भारत की समग्र विविधताओं, नित नवीनताओं और अंतर्विरोधों से साक्षात्कार करना सचमुच अलौकिक एवं विलक्षण अनुभव है। जिससे इस बहुरूपी भारत को उसके बहुआयामी और निहंग वास्तविक रूप में देखा जा सके और ऊबड़-खाबड़ अनगढ़ता की परतों में छिपी सुंदरता को उद्घाटित किया जा सके।

हम भारत को एक गुलदस्ते की भांति अनुभव करते हैं, एक ऐसा गुलदस्ता जिसमें भिन्न-भिन्न प्रकार के पुष्प सुसज्जित हैं। किसी फूल में कश्मीर की लालिमा है तो किसी में कामरूप का जादू। कोई फूल पंजाब की कली संजोए हैं, तो किसी में तमिलनाडु की किसी श्यामा का तरन्नुम। किसी में राजस्थान के बलिदान की गाथाएं है तो किसी में उत्तरप्रदेश की धार्मिकता। महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल और अन्य प्रदेशों में तो विविधता में सांस्कृतिक एकता के दर्शन होते हैं। इसी भांति जैसलमेर में पर्यटन से हटकर वहां संग्रहीत प्राचीन पांडुलिपियों की विशद् जानकारी, स्थापत्य कला एवं जैन दर्शनीय स्थलों का अनुभव भी अनूठा है। भारतीय पर्यटन विभाग ने ‘अतुल्य भारत’ नाम से अभियान चलाया था। इस अभियान का उद्देश्य भारतीय पर्यटन को वैश्विक मंच पर प्रोत्साहित करना था जो काफी हद तक सफल हुआ। सिमटती दूरियों के बीच लोग बाहरी दुनिया के बारे में भी जानने के उत्सुक रहते हैं। यही कारण है कि आज दुनिया में टूरिज्म एक फलता फूलता उद्योग बन चुका है।

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