कल कोलकाता में पीएम मोदी की मेगा रैली, ब्रिगेड परेड ग्राउंड में भरेंगे हुंकार
इस मैदान की हनक 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी नजर आई थी।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क: इस मैदान की हनक 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी नजर आई थी। उस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली में जितनी भीड़ उमड़ी, उतने लोग तो ममता बनर्जी के नेतृत्व में आया पूरा महागठबंधन नहीं जुटा पाया था। आइए रूबरू होते हैं उस ब्रिगेड परेड ग्राउंड से, जो बंग, बांग्ला और बंगाल की पहचान बन चुका है।
ब्रिगेड परेड ग्राउंड का ऐसा है इतिहास
इस मैदान की कहानी साल 1857 से शुरू होती है। अंग्रेज प्लासी का युद्ध जीत कर बंगाल के मालिक बन गए। इसके बाद उन्होंने फोर्ट विलियम महल बनाया, जो इंग्लैंड के तीसरे किंग विलियम के नाम पर था। इस किले में रहने वाली अंग्रेज फौज की परेड के लिए मैदान बनाया गया, जिसका नाम ब्रिगेड परेड ग्राउंड रखा गया।
अंग्रेजों के जाने के बाद विलियम फोर्ट भारतीय सेना के कब्जे में आ गया। जहां अब पूर्वी कमान का मुख्यालय है। वहीं, किले के सामने मौजूद ब्रिगेड परेड ग्राउंड सरकार की संपत्ति बन गया है। बता दें कि कांग्रेस और वामपंथी दलों का गठबंधन 28 फरवरी को इस मैदान में अपनी सियासी मौजूदगी पहले ही दर्ज करा चुका है।
साल 1919 में हुई पहली राजनीतिक रैली
ब्रिगेड परेड ग्राउंड ने पहली राजनीतिक रैली का स्वाद आजादी से पहले यानी साल 1919 में ही चख लिया था। उस दौरान चितरंजन दास और अन्य स्वतंत्रता सेनानी रोलेट एक्ट के विरोध में इस मैदान में जुटे थे और ऑक्टरलोनी स्मारक के पास बैठक की थी। ऑक्टरलोनी स्मारक को अब शहीद मीनार के नाम से जाना जाता है।
इस मैदान का राजनीतिक इस्तेमाल सबसे पहले वामपंथी दलों ने किया। उन्होंने 1955 में 29 जनवरी को यहां सोवियत प्रीमियर निकोल एलेक्जेंड्रोविच और सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के पहले सचिव ख्रुश्चेव का स्वागत किया। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और तत्कालीन मुख्यमंत्री विधान चंद्र रॉय ने उन्हें आमंत्रित किया था।
यहीं से मिला 'जय भारत-जय बांग्ला' का नारा
ब्रिगेड परेड ग्राउंड पर छह फरवरी 1972 को एक और रैली हुई। करीब 10 लाख लोग बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख मुजीब-उर-रहमान और भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सुनने आए थे। तब बंगाल पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश से दिल से जुड़ा था। तब बंग बंधु मुजीब-उर-रहमान ने 'जय भारत-जय बांग्ला' का नारा दिया था।
आपातकाल के खिलाफ भी उठी थी आवाज
आपातकाल के दौर से गुजरने के बाद साल 1977 में केंद्र और पश्चिम बंगाल दोनों जगह कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। बंगाल में वामपंथी दलों के हाथ में सत्ता आ गई और देश में कांग्रेस के अलावा दूसरे राजनीतिक दलों का उदय होने लगा। उस दौरान साल 1984 में ब्रिगेड परेड ग्राउंड पर एक रैली आयोजित हुई।
इस रैली में ज्योति बसु, एनटी रामाराव, रामकृष्ण हेगड़े, फारूक अब्दुल्ला, चंद्र शेखर और इएमएस नंबूदरी पाद शामिल हुए। तब परेड ग्राउंड उस विचारधारा का गवाह बना, जो गैर कांग्रेसी सत्ता के गठजोड़ को तैयार कर रहा था। इस मैदान से इंदिरा गांधी सरकार की ओर से लगाए गए आपातकाल के खिलाफ आवाज उठी।
इसी मैदान से हुआ ममता बनर्जी का उदय
1980 और 90 के दशक में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का राजनीतिक कद बढ़ना शुरू हुआ था। उस वक्त उनकी पहचान कांग्रेस पार्टी से थी। दरअसल, 25 नवंबर 1992 को ब्रिगेड परेड मैदान पर एक रैली हुई थी, जिसकी मुख्य संयोजक ममता बनर्जी थीं। कांग्रेस ने सीपीएम के खिलाफ ममता बनर्जी को चेहरा बनाया था।
ममता बनर्जी का नाद ब्रिगेड परेड मैदान में गूंजा और वह बंगाल में वाम दलों का काल बन गईं, लेकिन इसका शिकार कांग्रेस भी हुई। बनर्जी ने नारा दिया था कि बदला नहीं, बदलाव चाहिए। अब देखना यह है कि रविवार को होने वाली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली का यह ब्रिगेड परेड ग्राउंड किस तरह साक्षी बनता है।