आज देश को मिलेगा पहला स्वदेश अटैक हेलीकॉप्टर, जानिए इनके बारे में सबकुछ

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Update: 2021-11-19 01:45 GMT

आज का दिन हिंदुस्तान और उसकी सेना के लिए बेहद खास होने वाला है, क्योंकि आज भारतीय वायुसेना को सबसे हल्का अटैक हेलिकॉप्टर मिलने जा रहा है और इसमें सबसे खास और गर्व करने वाली बात ये है कि हेलिकॉप्टर कहीं से खरीदा नहीं जा रहा, ये देश में तैयार हुआ हेलिकॉप्टर है. लाइट कॉम्बैट हेलिकॉप्टर को हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड यानि HAL ने तैयार किया है. आज उत्तर प्रदेश के झांसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एलसीएच को भारतीय वायुसेना को सौपेंगे. जानिए एलसीएच के वायुसेना के बेड़े में शामिल होने का मतलब क्या है और ये अटैक हेलिकॉप्टर चीन को कितना बड़ा जवाब है.

इस अचूक हथियार से दुश्मन को डर क्यों लगता है?
15 से 16 हजार की फीट की ऊंचाई तक उड़ान भरने की क्षमता.
विश्व का इकलौता ऐसा हेलिकॉप्टर जो दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर में उड़ान भरने के साथ-साथ मुश्किल ऊंचाईयों पर ना सिर्फ टेकऑफ और लैंड कर सकता है बल्कि दुश्मन पर निशाना साधने की ताकत भी रखता है.
बर्फ की चोटियों पर माइनस 50 डिग्री सेल्सियस से लेकर रेगिस्तान में 50 डिग्री तापमान में भी कारगर.
हवा से हवा और हवा से जमीन में मार करने वाली मिसाइलों से लैस.
और 13 सालों की कड़ी मेहनत के बाद तराशा गया.
पूरे देश में स्वतंत्रता दिवस के 75 साल पूरे होने के मौके पर आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है. यूपी के झांसी में तीन दिन तक ये कार्यक्रम चलेगा. कार्यक्रम के पहले दिन यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने झांसी पहुंचकर इसकी शुरुआत की थी. आज कार्यक्रम के आखिरी दिन प्रधानमंत्री मोदी झांसी पहुंचेंगे और देश में बने लाइट कॉम्बैट हेलिकॉप्टर को भारतीय वायुसेना के बेड़े में शामिल करेंगे. इसके अलावा थलसेनाध्यक्ष को ड्रोन की खेप सौंपी जाएगी, जिसकी जरूरत लगातार भारत चीन सीमा पर महसूस की जा रही थी.
चोटियों पर आसानी से अपने मिशन को अंजाम दे सकता है एलसीएच
लाइट कॉम्बेट हेलिकॉप्टर यानि LCH में 20 एमएम गन है, 70 एमएम रॉकेट है और एयर टू एयर मिसाइल है. इसके एवियॉनिक्स और आर्म को अगर जोड़ दे तो ये टारगेट को खोज सकता है और बर्बाद कर सकता है चाहे वो हवा में हो या जमीन पर हो. मिशन के दौरान इस अटैक हेलीकॉप्टर को मैन्युवल किया जाता है. यानि 180 डिग्री पर खड़ा किया जा सकता है या फिर उल्टा भी किया जा सकता है. इसे हवा में ही रेवोल्व यानि 360 डिग्री पर तेजी से घूमाया भी जा सकता है. ये हेलीकॉप्टर ऑल वेदर यानि किसी भी मौसम और जलवायु में ऑपरेट कर सकता है. स्वदेशी एलसीएच की लागत करीब 150 करोड़ रुपए है. बेहद हल्का और खास रोटर्स वाला एलसीएच चोटियों पर आसानी से अपने मिशन को अंजाम दे सकता है. एलसीएच का वजन करीब 6 टन है.
हिंदुस्तान को 1999 में करगिल में पाकिस्तान के साथ युद्ध के वक्त ऐसे हेलिकॉप्टर की जरूरत महसूस हुई थी, क्योंकि दुश्मन उस वक्त हजारों फीट की ऊंचाई पर बैठा था. इस प्रोजेक्ट को मंजूरी साल 2006 में मिली और फिर 13 साल की मेहनत के बाद देश को एलसीएच मिला. हिंदुस्तान की जमीन पर तैयार हुआ ये लाइट कॉम्बेट हेलिकॉप्टर अमेरिका के बेहद एडवांस अटैक हेलिकॉप्टर अपाचे से भी बहुत आगे है.
दुश्मन की आंख में धूल झोंकने में भी माहिर
एलसीएच आसानी से दुश्मन के रडार की पकड़ में नहीं आएगा.
दुश्मन हेलिकॉप्टर या फाइटर जेट ने अगर एलसीएच पर अपनी मिसाइल दागी तो ये उसे चकमा भी दे सकता है.
इसकी बॉडी ऐसी है जिससे उस पर फायरिंग का कोई खास असर नहीं होगा.
यहां तक की रोटर्स यानि पंखों पर भी गोली का असर नहीं होगा.
न्युक्लिर बायलोजिकल और कैमिकल अटैक का भी तुरंत अलर्ट दे सकता है.
चौथी सबसे बड़ी वायु सेना है भारतीय वायुसेना
भारतीय वायुसेना दुनिया की चौथी सबसे बड़ी वायु सेना है. जिसके पास कुल 1700 एयरक्रॉफ्ट हैं. और इसमें से आधे से ज्यादा करीब 900 फाइटर एयक्राफ्ट हैं. भारतीय वायुसेना लगातार खुद को अपग्रेड कर रही है और अपग्रेड मिशन में शामिल फाइटर प्लेन का हिस्सा जगुआर, मिराज-2000, मिग- 29 और सुखोई- 30 Mki हैं.
थलसेनाध्यक्ष को ड्रोन की खेप सौंपी जाएगी
इसी साल जनवरी महीने में भारतीय सेना ने ड्रोन को लेकर एक स्वदेशी कंपनी से 140 करोड़ रूपये का सौदा किया था. आईडियाफोर्ज नाम की ये कंपनी 'स्विच' टेक्टिकल ड्रोन्स भारतीय सेना को मुहैया करा रही है. इन 'स्विच' टेक्टिकल ड्रोन्स का इस्तेमाल पूर्वी लद्दाख से सटी भारत चीन सीमा पर निगरानी के लिए किया जाना है.
इनकी खासियत क्या है?
4000 मीटर की ऊंचाई तक उड़ सकते हैं स्विच ड्रोन्स.
15 किमी के दायरे में निगरानी कर सकते हैं.
पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी बेहद ऊंचाई वाले पहाड़ों का लंबा इलाका है. ऐसे में भारतीय सेना का इन पहाड़ों की सुरक्षा करना बेहद मुश्किल साबित होता है, लेकिन अब इन ड्रोन की मदद से पूर्वी लद्दाख से सटी 826 किमी लंबी एलएसी की रखवाली की जाएगी.
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