ये मैरिटल रेप है: उच्च न्यायालय बोला- हम हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकते, और...
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नई दिल्ली: वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने की मांग पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि 'जब लोग किसी कानून में समस्या को लेकर उसके पास पहुंचते हैं तो वह हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठे रह सकते है।' न्यायालय ने यह टिप्पणी तब की जब एक गैर सरकारी संगठन ने कहा कि वैवाहिक दुष्कर्म को आपराध घोषित करने का सामाजिक प्रभाव पड़ता है, जिसका निर्णय विधायिका द्वारा किया जाना चाहिए, न कि उनकी क्षमता की कमी के कारण अदालत द्वारा।
जस्टिस राजीव शकधर और सी. हरि. शंकर की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि गैर सरकारी संगठन 'मेन्स वेलफेयर ट्रस्ट' का यह तर्क 'अस्पष्ट' है क्योंकि वे समस्या के कानूनी पहलू की जांच कर रहे हैं, न कि सामाजिक या मनोवैज्ञानिक प्रभाव का। पीठ ने कहा कि वह सिर्फ उन कारकों को देख सकते हैं जो किसी विशेष कानून बनाने में लगे हैं, लेकिन अंततः कानून के प्रावधान को संविधान के आधार पर परीक्षण किया जाना है। पीठ ने कहा कि ऐसे में संगठन का यह तर्क पूरी तरह से अस्पष्ट है।
पीठ ने कहा कि हमारे सामने एक कानूनी मुद्दा है, कुछ घटनाएं हुई हैं, विधायिका एक अधिनियम और कुछ आवश्यक नियम के दायरे में काम करती है। न्यायालय ने कहा है कि वह प्रावधान है जिसकी हम जांच कर रहे हैं और संविधान की कसौटी पर इसका परीक्षण कर रहे हैं। न्यायालय ने कहा कि हमारे पास याचिकाकर्ताओं में से एक एक जीवंत उदाहरण है, जहां उसने अपने पति के खिलाफ दुर्व्यवहार का आरोप लगाया है, लेकिन दुष्कर्म कानून में अपवाद के कारण कार्रवाई आगे नहीं बढ़ सका।
पीठ ने कहा कि जनहित याचिका के बारे में भूल जाओ, याचिकाकर्ता कहती है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में अपवाद के कारण आगे उसका मामला आगे नहीं बढ़ पाया तो क्या हम उसे बताएं कि नहीं, आप सही हैं या गलत, हम इसकी जांच नहीं कर सकते? पीठ ने कहा कि कानून का परीक्षण कर सकते हैं, हमें इसकी जांच करने की जरूरत है। आईपीसी की धारा 375 का अपवाद 2 वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी से बाहर करता है और यह कहता है कि यदि पत्नी की उम्र 15 साल से अधिक है तो उसकी सहमति के बगैर भी संभोग करना दुष्कर्म नहीं है।
उच्च न्यायालय ने जोर देकर कहा कि वह यह नहीं कह रही है कि उसके फैसले का असर नहीं होगा, लेकिन जब उसके पास मामला आया है, तो उसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के खिलाफ फैसला करना होगा। उच्च न्यायालय वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने की मांग को लेकर एनजीओ आरआईटी फाउंडेशन, ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेन एसोसिएशन और दो अन्य व्यक्तियों द्वारा 2015 में दाखिल जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।
इन याचिकाओं का विरोध कर रहे संगठन की ओर से वकील जे. साई दीपक ने पीठ से कहा कि न्यायिक कानून के प्रयोजनों के लिए वैवाहिक दुष्कर्म को आपराधिक बनाने के मुद्दे को अदालतों के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा जाना चाहिए।