उदयपुर। उदयपुर लंबे समय से अपने हक की लड़ाई लड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष-2014 में किन्नरों को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता प्रदान की थी। इसकी पालना रेलवे पर तो होने लगी, लेकिन राजस्थान रोडवेज 9 साल बाद भी इसकी पालना नहीं कर पाया है। ऐसा ही मामला मंगलवार को सामने आया। जब एक किन्नर रोडवेज बस स्टैंड पर अपने जेंडर का टिकट लेने के लिए अड़ गया। काफी समझाइश के बाद भी वह बिना टिकट के ही बस में चढ़ा। हुआ यूं कि मंगलवार सुबह करीब 11 बजे जोधपुर जाने के लिए एक किन्नर बस स्टैंड पर पहुंचा। यहां टिकट विंडो पर उसने अपने जेंडर का टिकट मांगा, इस पर विंडो पर बैठी कर्मचारी ने उसका जैंडर कंम्प्यूटर में नहीं होने की बात कही। इसको लेकर किन्नर नाराज हुआ। इसके बाद अधिकारियों से बात की। अधिकारियों ने भी थर्डजेंडर का ऑप्शन नहीं होने की बात कही। इसको लेकर जयपुर तक बात की गई, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला। अंत में बस निकलने का समय होने पर किन्नर बस में सवार होकर निकल गया।
भारत में 15 अप्रेल, 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्णय सुनाया था। इसके तहत किन्नरों को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दी है। किन्नरों को ऐसा दर्जा देने वाला भारत दुनिया का पहला देश था। अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रांसजेंडर देश के नागरिक हैं और शिक्षा, रोजगार एवं सामाजिक स्वीकार्यता पर उनका समान अधिकार है। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने किन्नरों को शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर सुविधाएं मुहैया कराने के लिए केंद्र एवं राज्यों को जरूरी निर्देश दिए थे। कोर्ट ने कहा था कि यह सामाजिक रूप से पिछड़ा समुदाय हैं। उन्हें आरक्षण दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में किन्नरों को विशेष दर्जा देने की बात कहते हुए इन्हें भी बच्चे गोद लेने का अधिकार मिलने का उल्लेख किया था।