छात्रा पहुंची सुप्रीम कोर्ट...दुष्कर्म का मुकदमा रद्द होने के बाद सीनियर ने किया शादी से इनकार

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Update: 2021-07-17 17:09 GMT

एमबीबीएस के एक छात्र के खिलाफ निरस्त किए गए बलात्कार के मुकदमे को फिर से शुरू करने की मांग वाली पीड़ित युवती की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने छात्र और कर्नाटक सरकार को नोटिस जारी किया है। युवती भी एमबीबीएस की छात्रा है और दोनों बंगलूरू के एक मेडिकल कॉलेज में पढ़ते हैं। युवती कॉलेज में युवक की जूनियर है।

दरअसल सितंबर 2020 में युवक की ओर से यह भरोसा दिए जाने पर कि युवती की एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी होने के बाद वह शादी कर लेगा और इस संबंध में दोनों परिवारवालों के बीच हुए समझौते के बाद कर्नाटक हाईकोर्ट ने युवक के खिलाफ चल रहे मुकदमे को निरस्त कर दिया था
चार हफ्ते में देना होगा जवाब
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने युवती द्वारा हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) पर युवक व राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुए चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने के लिए कहा है।
वकील आकाश नागर और सिद्धार्थ झा के माध्यम से पीड़िता छात्रा द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि शुरू से ही युवक उसके साथ छल कर रहा है और शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाए। बाद में शादी से मुकर जाने पर युवती ने युवक के खिलाफ दुष्कर्म और धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज कराया।
इसके बाद युवक ने युवती व उसके घरवालों को मीठी-मीठी बातों में फंसा कर पहले तो अग्रिम जमानत ले ली और इसके बाद मंगनी भी कर ली। फिर एक समझौता पत्र पेश कर हाईकोर्ट से मुकदमे को निरस्त कराने में सफल भी रहा। यह देखते हुए कि दोनों पढ़े-लिखे हैं और चूंकि युवक, युवती से शादी करने को तैयार हो गया है, हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा-482 के तहत मुकदमे को निरस्त कर दिया।
आरोप: शादी करने से मुकर गया युवक, दहेज भी मांगा
शीर्ष अदालत के समक्ष याचिका में छात्रा ने दावा किया गया कि दोनों पक्षों के बीच समझौता, आरोपी द्वारा जबरन सहमति पर आधारित था। उसका कहना है कि युवक शादी करने से मुकर गया है और उसने एक करोड़ रुपये दहेज भी मांगा है। मुकदमा निरस्त करवाना उसकी एक 'चाल' थी।
याचिका में दावा किया गया है कि हाईकोर्ट द्वारा मुकदमे को निरस्त करने का फैसला गलत है। हाईकोर्ट ने शीर्ष अदालत द्वारा पारित उस आदेश की अनदेखी की जिसमें कहा गया था कि बलात्कार के मुकदमे को समझौते के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह अपराध एक महिला के शरीर और गरिमा के खिलाफ है।
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