भारत के खुदरा स्वर्ण आभूषण बाज़ार में चेन स्टोर्स की हिस्सेदारी अगले 5 वर्षों में और बढ़ सकती है: वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल की रिपोर्ट
दिल्ली: वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल ने भारतीय स्वर्ण बाज़ार पर गहन विश्लेषण की एक श्रृंखला के हिस्से के रूप में 'ज्यूलरी मार्केट स्ट्रक्चर' शीर्षक से आज एक रिपोर्ट लॉन्च की। रिपोर्ट में पिछले कुछ वर्षों में भारत के स्वर्ण आभूषण बाज़ार में आए उल्लेखनीय बदलाव पर प्रकाश डाला गया है, जो उपभोक्ता व्यवहार और सरकारी विनियमों में बदलाव से उत्प्रेरित हैं। आभूषण बाज़ार में छोटे स्वतंत्र खुदरा विक्रेताओं का अभी भी वर्चस्व है लेकिन पिछले एक दशक में चेन स्टोर (राष्ट्रीय और क्षेत्रीय) की बाज़ार हिस्सेदारी में लगातार वृद्धि हुई है। खुदरा आभूषण व्यापार के विपरीत, विनिर्माण स्तर पर परिवर्तन अपेक्षाकृत धीमे रहे हैं, लेकिन जैसे-जैसे बाज़ार का विकास हो रहा है, संगठित रिटेल और विनिर्माण परिचालन अपनी बाज़ार हिस्सेदारी बढ़ने के लिए अच्छी तरह से तैयार हैं।
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के रीजनल सीईओ-इंडिया, सोमसुंदरम पीआर ने कहा, ''भारतीय खुदरा आभूषण बाज़ार में पिछले एक दशक में कई संरचनात्मक बदलाव हुए हैं, कुछ नियमों से प्रेरित हैं और कुछ उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव से। अनिवार्य हॉलमार्किंग, परिभाषित के रूप में अपने फाइनल स्वरूप में लागू हो चुका है, ऐसे में सभी को एकसमान अवसर प्रदान करना चाहिए। हालांकि राष्ट्रीय और क्षेत्रीय चेन स्टोर मौजूदा रुझान में बाज़ार हिस्सेदारी हासिल करने के लिए तैयार हैं क्योंकि उनकी क्रेडिट तक पहुंच है और उनके पास काफी इन्वेंट्री होती है। छोटे भागीदारों को यदि ऋण तक समान पहुंच हासिल करनी है और अपनी बाज़ार हिस्सेदारी बचानी है, तो उन्हें अधिक पारदर्शी बनना और टैक्नोलॉजी को तेजी से अपनाना होगा। दूसरी ओर, विनिर्माण क्षेत्र अपनी बहुप्रतीक्षित परिवर्तनकारी यात्रा की शुरुआत में ही है। ज्यूलरी पार्क, जिनमें से कुछ पहले ही स्थापित हो चुके हैं, नैतिक मानकों और काम करने की स्थितियों के बारे में चिंताओं को दूर करने में मदद करेंगे। इससे विनिर्माण उद्योग के विकास की बाधाओं को भी दूर करने में मदद मिल सकती है और यह सकारात्मक रूप से मांग का समर्थन कर सकता है। लब्बोलुआब यह है कि इस क्षेत्र में वृद्धि हुई है लेकिन तकनीक अपनाने और अर्थव्यवस्था में व्यापक कर अनुपालन के कारण उद्योग के सामने आने वाली परिवर्तन की लहर उन लोगों के लिए एक वरदान हो सकती है जो बदलाव के इच्छुक हैं और दूसरों के लिए एक महत्वपूर्ण जोखिम है जिनका व्यापार मॉडल विरासत वाली कार्यप्रणालियों के हिसाब से आराम करना जारी रखना पसंद करते हैं।''
रिटेल मार्केट की संरचना: भारत में खुदरा आभूषण बाज़ार में पिछले एक दशक में उल्लेखनीय परिवर्तन हुए हैं, जो ग्राहकों की वरीयताओं और सरकारी विनियमन को विकसित करने से प्रेरित हैं और इसने उद्योग को और अधिक संगठित होने के लिए प्रोत्साहित किया है। पिछले कुछ वर्षों में विमुद्रीकरण और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की शुरुआत ने उद्योग को अधिक संगठित और ज्यादा पारदर्शी बनने में मदद की है। इसके अलावा ग्राहकों की वरीयताओं के बदलने से उद्योग संगठन को सहायता मिली है क्योंकि ग्राहक बेहतर खरीदारी अनुभव, पारदर्शी मूल्य निर्धारण, पुनर्खरीद नीतियां और बिलों तथा ऑनलाइन ट्रांजेक्शंन के माध्यम से तेजी से खरीदारी करना चाहते हैं। नतीजतन, चेन स्टोर पिछले 10-15 वर्षों में तेजी से बढ़े हैं और 2021 तक 35% बाज़ार हिस्सेदारी हासिल करने में सफल रहे। बेहतर डिजाइन और उपभोक्ता अनुभव की मांग, हॉलमार्किंग के बारे में बढ़ती जागरूकता, बेहतर मूल्य निर्धारण ढांचा और प्रतिस्पर्धी रिटर्न नीतियों ने चेन स्टोर को तेजी से बढ़ने में मदद की। देश भर में मौजूदगी वाले चेन स्टोर, रोजमर्रा में पहने जाने वाले और फास्ट मूविंग ज्यूलरी आइटम्स (जैसे चेन और अंगूठियां) पर ध्यान केंद्रित किया है और उनके कारोबार में इन इन आइटम्स की हिस्सेदारी करीब 50-60% है। रिपोर्ट का अनुमान है कि अगले पांच वर्षों में, चेन स्टोर का विस्तार जारी रहेगा और उनकी बाज़ार हिस्सेदारी 40% से अधिक हो सकती है। इस समयावधि के दौरान अकेले शीर्ष पांच खुदरा विक्रेताओं के 800-1,000 स्टोर खोले जाने की संभावना है।
हालांकि स्टैंड-अलोन खुदरा विक्रेताओं को शुरू में चेन स्टोर के साथ प्रतिस्पर्धा करने में थोड़ा संघर्ष करना पड़ा, लेकिन बेहतर कार्यप्रणालियों को अपनाने से उन्हें अत्यधिक प्रतिस्पर्धी परिदृश्य में सह-अस्तित्व की अनुमति मिली। 2021 तक, खुदरा आभूषण उद्योग में उनकी बाज़ार हिस्सेदारी 37% थी। आमतौर पर, स्टैंड-अलोन और मध्यम आकार के खुदरा विक्रेता तीन चीजों पर ध्यान केंद्रित करते हैं: ब्राइडल ज्यूलरी, कस्टमाइजेशन और अपने ग्राहकों के साथ व्यक्तिगत संबंध विकसित करना।
मिलेनियल्स ने बढ़ाई ऑनलाइन ज्यूलरी की बिक्री: भारतीय ऑनलाइन ज्यूलरी बाज़ार में भी पिछले कुछ वर्षों में तेजी से विकास हुआ है, जो मिलेनियल्स की मांग, इंटरनेट की बढ़ती पहुंच और स्मार्टफोन की बिक्री में बढ़ोतरी से प्रेरित है। अधिकांश बिक्री 18 से 45 वर्ष की आयु के ग्राहकों के बीच होती है। दिलचस्प बात यह है कि ऑनलाइन आभूषणों की खरीदारी में वृद्धि हुई है और औसत टिकट का आकार (बिक्री की मात्रा) 5 से 10 ग्राम के बीच बना हुआ है। ऑनलाइन खरीदार 18 कैरेट सोने में हल्के दैनिक उपयोग वाले/फैशन ज्यूलरी खरीदते हैं। आगे के परिदृश्य के बारे में रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि अगले पांच वर्षों में ऑनलाइन ज्यूलरी की बाज़ार हिस्सेदारी बढ़कर 7-10% हो सकती है।
रिटेल गोल्ड ज्यूलरी मार्केट की चुनौतियां: रिटेल मार्केट के अधिक मजबूत और संगठित ईको-सिस्टम की ओर बढ़ने के कई आशाजनक संकेत हैं, फिर भी कई चुनौतियां हैं जो इसके विकास के लिए जोखिम बने हुए हैं। भारतीय रत्न और आभूषण उद्योग अभी भी बैंक ऋण हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहा है। इस क्षेत्र को दिए गए 20% से अधिक ऋण गैर-निष्पादित आस्तियां (एनपीए) बन गए हैं, जिसके परिणामस्वरूप रत्न एवं आभूषण उद्योग को भारत में कुल आवंटित ऋण का केवल 2.7% प्राप्त हुआ है। छोटे स्वतंत्र ज्वैलर्स के लिए फाइनेंसिंग और भी मुश्किल है, जो फंडिंग के लिए मासिक गोल्ड स्कीम पर भरोसा करते हैं या साहूकार के रूप में काम करते हैं। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि राष्ट्रीय और क्षेत्रीय चेन स्टोर बाज़ार में हिस्सेदारी हासिल करना जारी रखेंगे क्योंकि उनकी क्रेडिट तक पहुंच और है और उनके पास इन्वेंट्री भी काफी ज्यादा होती है। इसके विपरीत, यदि छोटे भागीदार पारदर्शिता के स्वीकृत मानकों को पूरा करने में सक्षम नहीं होते हैं, तो उनकी ऋण तक पहुंच सीमित होगी, क्योंकि बैंक और वित्तीय संस्थान रत्न एवं आभूषण क्षेत्र को उधार देने में सतर्कता बरतते हैं।
विनिर्माण मार्केट का ढांचा: दुनिया में गोल्ड ज्यूलरी के सबसे बड़े फैब्रिकेटरों में से एक होने के बावजूद, भारत का विनिर्माण उद्योग अभी भी अत्यधिक बिखरा और असंगठित है। रिपोर्ट में कहा गया है कि केवल 15-20% विनिर्माण इकाइयां संगठित और बड़े पैमाने पर विनिर्माण केंद्र के रूप में काम कर रही हैं जो करीब पांच साल पहले 10% से कम थी। रिपोर्ट इस वृद्धि का श्रेय तीन अलग-अलग कारकों को देती है: संगठित खुदरा बिक्री का विस्तार, निर्यात में वृद्धि, और अधिकारियों द्वारा सख्ती। विनिर्माण उद्योग में अभी भी छोटे ज्वैलरी वर्कशॉप और कारीगरों का दबदबा है। हालांकि भारत में विनिर्माताओं की संख्या का कोई आधिकारिक अनुमान नहीं है, और कई स्वतंत्र रूप से फ्रीलांसर के रूप में काम करते हैं, लेकिन उद्योग का अनुमान है कि देश भर में 20,000-30,000 विनिर्माण इकाइयां हैं। 'कारीगर' भारतीय रत्न एवं आभूषण उद्योग की रीढ़ हैं, मगर उनमें से कई अभी भी बेहद खराब परिस्थितियों में काम करते हैं और अन्य उद्योगों की तुलना में उन्हें कम भुगतान किया जाता है।
सरकार और उद्योग तेजी से विनिर्माण को भीड़भाड़ वाले केंद्रों से ज्यूलरी पार्कों में स्थानांतरित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और इससे व्यापार के अंतर्गत संगठन को मदद मिलेगी। ये एकीकृत औद्योगिक पार्क एक ही छत के नीचे कारीगरों के लिए सुविधाओं तक पहुंच प्रदान करेंगे, जिसमें विनिर्माण इकाइयां, वाणिज्यिक क्षेत्र, औद्योगिक श्रमिकों के लिए आवास, वाणिज्यिक सहायता सेवाएं और प्रदर्शनी केंद्र शामिल हैं। अनिवार्य हॉलमार्किंग की शुरुआत के माध्यम से सरकार ने शुद्धता के मामले में एकसमान अवसर पैदा करने और खुदरा विक्रेताओं को विशेषज्ञता पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम बनाने का प्रयास किया है। इन उपायों को विनिर्माण उद्योग में आने वाली कुछ बाधाओं को खत्म करने के लिए डिजाइन किया गया है, जिससे मांग बढ़ाने में मदद मिलेगी।