बाड़मेर शहर से एक ऐसी बारात निकली, जिसके सपने पुराने लोग देखते और अपनी इच्छाओं में दबाए रहते थे. एक दादा की ऐसी ही इच्छा को पूरा करने के लिए पोते की बारात 21 ऊंटों पर निकाली गई. राजा-महाराजाओं के ज़माने में भले ही इस तरह की बारातें आम रही हों, लेकिन आजकल ये नजारे शायद ही देखने को मिलते हों.
शादी थी बाड़मेर के रहने वाले मलेश राजगुरु की, जो पेशे से इंजीनियर हैं. उनका कहना है कि उनके दादा की इच्छा थी कि जब उनकी बारात निकले, तो पुरानी परंपराओं के हिसाब से निकले. दादा की इसी इच्छा को पूरा करने के लिए, मलेश के परिवार ने उनका बारात ऊंटों पर निकाली. यह बारात करीब 10 किलोमीटर का सफर तय करके महाबार गांव पहुंची, जहां मलेश का ससुराल है
मलेश कहते हैं, 'यकीनन जब मेरी बारात शहर से निकल रही थी और जिस तरीके से लोगों के चेहरों पर खुशी थी, वह देखकर एक बात पर तो यकीन हो गया कि लोगों को आज भी अपनी पुरानी परंपराओं से बहुत प्यार है. इसी परंपरा को बचाने के लिए मैंने यह बारात रेगिस्तान के जहाज पर निकाली है.'
दूल्हे के रिश्तेदारों के मुताबिक, 'दादा की इच्छा पूरी करने के लिए हमने यह ऊंट लाखों रुपए खर्च करके जैसलमेर से मंगवाए हैं. इस बारात में 21 ऊंट दुल्हन की तरह तैयार किए गए हैं. किसी जमाने में इस तरीके की बारात निकला करती थीं, लेकिन अब बदले वक़्त के साथ हम परंपराओं को भूलते जा रहे हैं. उन्हीं परंपराओं को जिंदा रखने के लिए, हमने यह बारात निकाली है.'
दूल्हे के पिता दलसिंह कहते हैं, 'मेरे पिता पहाड़ सिंह की हमेशा से यही इच्छा थी कि पुरानी परंपराओं को हम लोग जिंदा रखें, इसीलिए वह चाहते थे कि बेटे की बारात रेगिस्तान के जहाज पर निकले और इसीलिए 6 महीने पहले ही हमने 21 ऊंटों की बुकिंग करवा दी थी. ये ऊंट 4 दिन का सफर तय करके जैसलमेर से बाड़मेर आए थे और सभी ऊंटों को दुल्हन की तरह सजाया गया है.'
इस अनोखी बारात को लोग देखते रह गए. जब शहर की सड़कों पर यह बारात निकली तो चमक-धमक, गाजे-बाजे के साथ सजे-धजे ऊंटों को देखना अपने आप में सुकून देने वाला नजारा था. आगे डीजे चल रहा था और उसके बाद एक के बाद एक, ऊंटों पर सवार पारंपरिक राजस्थानी वेशभूषा में बाराती नजर आ रहे थे. भारतीय संस्कृति से सराबोर इस बारात को देखकर लोगों में आश्चर्य भी था और खुशी भी.