कारगिल में 'चांदनी', जानिए क्या था युद्ध से चांद का रिश्ता?

Update: 2023-07-26 10:10 GMT

18 मई को हमारा जंगी जहाजों का बेड़ा कारगिल पहुंच चुका था। लेकिन हम लोगों को इस बात की जरा भी जानकारी नहीं थी कि हम जिससे मुकाबला करने के लिए जा रहे हैं, दरअसल वह लोग हैं कौन। क्या वह लोग घुसपैठिए हैं या चरवाहे हैं। क्या पाकिस्तान के भेजे गए आतंकवादी हैं, जो चोटियों पर कब्जा करके पहुंच गए हैं। या फिर हकीकत में पाकिस्तान की सेना है। लेकिन हम लोग जैसे पहुंचे उसके बाद अपने जहाजों से रेकी की और पता चला कि यह तो पाकिस्तान की सेना है। हमारे जंगी जहाजों के बेड़े में 26 मई से पाकिस्तान की सेना पर एयर स्ट्राइक कर दी। मुझे याद है कैसे हजारों फीट ऊंचे पहाड़ों पर जमी बर्फ में पड़ रही चांद की रोशनी से दुश्मनों के ठिकाने को ढूंढने और उन पर अटैक करने में सहूलियतें मिल रही थी। फिलहाल हमारे जंगी जहाजों के बेड़ों और सैनिकों ने करीब दस जुलाई को ही ऑपरेशन फतेह कर दिया था। देश के वायु सेना अध्यक्ष बीएस धनोआ ने अमर उजाला डॉट कॉम से हुई विशेष बातचीत में ऐसी तमाम अनसुनी कहानियां और रणनीति के बारे में खुलकर बताया

जंगी जहाजों ने की दुश्मन के ठिकानों की रेकी

पूर्व एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ कहते हैं कि कारगिल युद्ध के दो महत्वपूर्ण पहलू हैं। पहला तो यह कि इतनी बड़ी घुसपैठ हो गई और हम जान ही नहीं पाए। दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण है कि हमारे सैनिकों ने वीरता के साथ न सिर्फ पाकिस्तान की सेना को धूल चटाई बल्कि उनको इस युद्ध में हराया। बीएस धनोआ कहते हैं कि मई के दूसरे सप्ताह में कारगिल में हो रही घुसपैठ की सूचना मिली। उन्हें कहा गया कि अब कारगिल में जंगी जहाजों के बेड़े को पहुंचना होगा और एयर स्ट्राइक से दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देना होगा। वे कहते हैं कि जब उनके जवान और उनकी स्क्वॉड्रन 18 मई को वहां पहुंची, तो पता चला कि हकीकत में अभी दुश्मनों की चाल की रेकी तो उनको फिर से करनी होगी। धनोवा कहते हैं कि अगले कुछ दिनों में उनके हेलीकॉप्टर और अन्य जहाजों ने रेकी करनी शुरू की। 21 मई को उनकी रेकी से पता चला कि कारगिल की ऊंची चोटियों पर तो न घुसपैठिए पहुंचे और न ही पाकिस्तान के आतंकवादी। बल्कि या तो खुद पाकिस्तान की सेना है जो घात लगाकर हमारे इलाके में कब्जा जमा कर बैठ गई है।

ऐसे उठाया चांदनी रात और बर्फ का फायदा

बस इसके बाद ही बड़े ऑपरेशन की तैयारियां शुरू कर दी गईं। पूर्व एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ कहते हैं कि 26 मई से हमारे जहाजों ने कारगिल की चोटियों पर मौजूद पाकिस्तानी सैनिकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। वह कहते हैं कि एयर स्ट्राइक के दौरान उन्होंने कई तरह की स्ट्रेटजी भी बनाई और सफल भी हुई। भारतीय वायुसेना के पूर्व अध्यक्ष बीएस धनोआ कहते हैं कि जब वह एयर स्ट्राइक कर रहे थे, तो उस दौरान चांद भी निकला हुआ था। क्योंकि पहाड़ों पर बड़ी बर्फबारी हुई थी और चांद की चांदनी में बर्फ चमक भी खूब रही थी। वह कहते हैं कि उन्होंने इसका फायदा उठाया। जंगी जहाजों के बेड़ों ने दुश्मनों के ठिकानों को ना सिर्फ बर्फ पर बिछी चांदनी का फायदा उठाकर नजदीक से हमला किया, बल्कि दुश्मन के ठिकानों पर गिरने वाले बम का भी इसी चांदनी में बखूबी अंदाजा लगाते रहे। वह कहते हैं कि दुश्मनों के ठिकानों पर सटीक निशाना लग रहा था और दुश्मन के सभी ठिकाने एक-एक कर नेस्तनाबूद हो रहे थे।

रातों में एक किमी की दूरी पर जाकर दुश्मनों को ठोका

भारतीय सेना के पूर्व प्रमुख रहे बीएस धनोआ कहते हैं कि इस दौरान कई तरह की चुनौतियां भी सामने आईं। इसमें एक बड़ी चुनौती के रूप में रात को होने वाली बमबारी भी शामिल थी। वह कहते हैं कि मिग-21 से रात को एक किलोमीटर की दूरी पर पहुंचकर दुश्मन के ठिकाने को उड़ाने जैसा साहस भी उनकी सेना ने किया था। बीएस धनोआ बताते हैं कि वैसे तो दिन रात उनके दूसरे जहाज बमबारी कर ही रहे थे, लेकिन दुश्मन के ठिकानों से इनकी दूरी 3 से 4 किलोमीटर के बीच में होती थी। उन्होंने फैसला किया कि यह दूरी और कम होनी चाहिए। इसीलिए उन्होंने रात को दुश्मन के ठिकानों पर हमला करने के लिए कम दूरी के अटैक की योजना बनाई। बीएस धनोआ कहते हैं कि इसमें जीपीएस के माध्यम से दुश्मन के ठिकाने और हेलीकॉप्टर के बीच की दूरी तय करके बमबारी की गई। इस दौरान उनके जहाजों ने दुश्मन के ठिकाने से एक किलोमीटर के अंदर जाकर हमले किए। जो ना सिर्फ दिन में बल्कि रातों में भी लगातार कम ऊंचाई से हमले होते रहे।

पहाड़ों के बीच से घुसकर कर रहे थे हमला

वह कहते हैं कि उन्होंने मिग-21 का एक किलोमीटर की दूरी पर से किए जाने वाले हमले का ट्रायल किया। यह ट्रायल सफल हुआ। इस ट्रायल की सफलता के तुरंत बाद ही मिग-21 ने रात को पहाड़ों के बीच से जाकर दुश्मन के ठिकानों को एक किलोमीटर दूरी से ताबड़तोड़ हमले करने शुरू कर दिए। पूर्व एयर चीफ मार्शल धनोवा कहते हैं कि दुश्मन के सिर पर जाकर की जाने वाली एयर स्ट्राइक से दुश्मनों के पांव उखड़ गए। दुश्मनों के बंकर नष्ट किए जाने लगे और उन्हें मारा जाने लगा। उनका कहना है कि जब पहाड़ों के बीच से घुसकर वह दुश्मनों पर हमला कर रहे थे, तो पाकिस्तानी सेना को इसकी भनक भी नहीं लग रही थी कि किधर से भारतीय वायुसेना के जहाज आकर उनके ठिकानों को और सैनिकों को नष्ट कर रहे हैं। उनका कहना है कि ऐसा इसलिए संभव हो पाया क्योंकि कम ऊंचाई पर दुश्मन के ठिकाने से एक किलोमीटर के भीतर उनको निशाना बनाया जा रहा था।

वायु सेना ने तो 15 दिन पहले ही खत्म कर दिया था ऑपरेशन

भारतीय वायु सेना के अध्यक्ष बीएस धनोआ का कहना है कि 25 जुलाई को कारगिल युद्ध खत्म होने से 15 दिन पहले ही वायुसेना ने तो अपना ऑपरेशन खत्म कर दिया था। इस दौरान के जवानों ने दुश्मनों को न सिर्फ से पीछे हटने को मजबूर कर दिया, बल्कि ना जाने कितने दुश्मनों को मौत के घाट उतार दिया। वह कहते हैं कि कारगिल युद्ध के दौरान वायु सेना और थल सेना के जवानों ने जो अदम्य साहस का परिचय दिया, जिस पर उनको और समूचे देश को नाज है।

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