पत्नी से अलग होने हाईकोर्ट पहुंचा शख्स, झूठ का हुआ पर्दाफाश

Update: 2022-11-25 07:05 GMT

मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने उस शख्स की याचिका खारिज कर दी है, जो अपनी पत्नी से इस आधार पर तलाक मांग रहा था कि वह एचआईवी पॉजिटिव है. पुणे फैमिली कोर्ट ने मेडिकल रिपोर्ट और एक चिकित्सक की जांच में इसे झूठ पाने के बाद शख्स की अपील खारिज कर दी थी. हाईकोर्ट ने भी ऐसा ही किया.

इस दंपति की शादी 16 मार्च, 2003 को हुई थी. पति ने दावा किया कि शादी के बाद उसकी पत्नी टीबी से पीड़ित थी, जिसके लिए उसने उसका ट्रीटमेंट कराया है. पति ने आगे दावा किया कि पत्नी सनकी स्वभाव की, गुस्सैल और जिद्दी है और वह अपने परिवार के सदस्यों के साथ ठीक से व्यवहार नहीं करती है. पति ने दावा किया कि उसके और उसकी पत्नी के बीच लगातार झगड़े होते रहते थे, जिसके कारण वह मानसिक रूप से प्रताड़ित होता है.

शख्स के अनुसार, दिसंबर 2004 में, पत्नी को अस्पताल में भर्ती कराया गया क्योंकि उसे "हरपीज" हो गया था. अस्पताल में उसके इलाज के दौरान, उसका एचआईवी टेस्ट किया गया जो पॉजिटिव आया. इसके बाद फरवरी 2005 में पत्नी कथित तौर पर घर छोड़कर चली गई. शख्स ने दावा किया कि जब पत्नी ठीक हो गई तो वह उसे वापस ससुराल ले आया. हालाँकि, पत्नी की वापसी से वह मानसिक रूप से परेशान था और इसलिए उसने अपनी पत्नी को अपने माता-पिता के घर लौटने के लिए कहा था. दो महीने बाद, वह अपनी पत्नी से मिलने गया तो उसे पता चला कि वह स्वस्थ नहीं है और इसलिए वह उसे वापस ससुराल नहीं ला सकता है. व्यक्ति ने दावा किया कि एक डॉक्टर ने उसे बताया कि उसकी पत्नी अभी भी एचआईवी से पीड़ित है. इस वजह से उसने अपनी शादी को खत्म करने का फैसला किया.

हालांकि, पत्नी ने इस कदम को चुनौती दी और अपने ऊपर लगे सभी आरोपों से इनकार किया. उसने कहा कि उसकी एचआईवी रिपोर्ट "नॉट डिटेक्टेड" के परिणाम के साथ आई थी जिसका मतलब था कि वह निगेटिव है. इसके बावजूद, उसका पति सभी को बताता रहा कि वह एचआईवी संक्रमित है और इन अफवाहों के कारण उसे बहुत मानसिक पीड़ा हुई है और उसकी सोशल लाइफ बर्बाद हो गई है. इसके बाद महिला ने घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत याचिका दायर की और हर्जाने के लिए 5 लाख रुपये और अपने आवास के लिए पुणे में 1-बीएचके फ्लैट की मांग की. युवक ने इसका विरोध किया है.

जस्टिस नितिन जामदार और शर्मिला देशमुख की खंडपीठ ने कहा कि पत्नी के खिलाफ उसके या उसके परिवार के साथ व्यवहार के बारे में पति द्वारा लगाए गए सभी आरोपों के बीच, वह किसी भी विशिष्ट घटना का विवरण देने में विफल रहा है. पीठ ने आगे कहा कि "यह निश्चित है कि क्रूरता ऐसी प्रकृति की होनी चाहिए जिससे पुरुष के मन में उचित आशंका पैदा हो कि पत्नी के साथ रहना हानिकारक है," जबकि इस मामले में ऐसा कुछ नहीं हुआ. एचआईवी रिपोर्ट के मुद्दे पर, पीठ ने मेडिकल रिपोर्ट और पुणे परिवार अदालत के समक्ष डॉक्टर के बयान को देखा कि महिला वास्तव में इस बीमारी से पीड़ित नहीं थी. पीठ ने कहा कि व्यक्ति को "अपनी गलती का फायदा उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती" और उसकी याचिका खारिज कर दी.


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