अंतिम संस्कार हुआ...लेकिन 26 साल बाद हुआ ये...जरा भी नहीं था अंदाजा, पढ़ें पूरी स्टोरी
भरतपुर: एक शख्स 26 साल पहले लापता हो गया था. परिजन उसका अंतिम क्रिया कर्म कर चुके थे, लेकिन बीते दिनों अचानक पता चला कि वह जिंदा है और राजस्थान के भरतपुर में है. सूचना मिलते ही 64 साल के हो चुके उस शख्स का बेटा उड़ीसा से भरतपुर पहुंचा और अपने पिता से मिलकर भावुक हो गया. इस दृश्य को देखकर वहां मौजूद लोगों की आंखें भी नम हो गईं.
दरअसल, उड़ीसा के कटक जिले के गांव सेंधा बिलिलीसही निवासी स्वप्नेश्वर दास पत्नी और दो बच्चों के साथ खेती-बाड़ी करते थे. 26 साल पहले उनकी दिमागी हालत बिगड़ गई थी, जिसके चलते वह घर से लापता हो गए थे. परिजनों ने उनकी काफी तलाश की, लेकिन कुछ पता नहीं चला. उड़ीसा में परंपरा है कि यदि कोई लापता व्यक्ति 12 वर्ष तक नहीं मिलता है तो उसका अंतिम संस्कार और पिंडदान इत्यादि कर दिया जाता है. मगर इसके बावजूद परिजनों ने लापता सदस्य की काफी खोजबीन की और जब कोई सुराग नहीं लगा तो 24 साल बाद अंतिम संस्कार कर दिया. स्वप्नेश्वर की पत्नी विधवा की तरह जीवन व्यतीत करने लगीं.
उधर, स्वप्नेश्वर दास ओडिशा से तमिलनाडु पहुंच चुके थे. उन्हें सड़क पर घूमता देख विल्लुपुरम स्थित अनभू ज्योति आश्रम वालों ने अपने यहां भर्ती कर लिया था. स्वप्नेश्वर दास को 13 मार्च 2021 को तमिलनाडु से भरतपुर के 'अपना घर' आश्रम में भर्ती कराया गया था, तभी से यहां स्वप्नेश्वर दास का इलाज चल रहा था और स्थिति सुधर रही थी.
हालत अच्छी होने के बाद स्वप्नेश्वर दास ने 'अपना घर' आश्रम के प्रशासन को अपने घर का पता बताया. इसके बाद बताए गए पते के अनुसार संबंधित पुलिस थाने को सूचना दी गई. सूचना मिलने के बाद स्वप्नेश्वर दास के पुत्र संजय कुमार दास आज अपने पिता स्वप्नेश्वर दास को लेने के लिए भरतपुर पहुंचे.
भरतपुर स्थित अपना घर आश्रम के निदेशक बीएम भारद्वाज ने कहा कि 26 वर्ष पहले अपने घर से लापता व्यक्ति को लेने उनका पुत्र भरतपुर पहुंचा, जो बेहद भावुक क्षण था. पिता जब पुत्र को छोड़कर लापता हुआ था, तब उस पुत्र की उम्र महज 13 वर्ष थी, लेकिन आज वह शादीशुदा है.
स्वप्नेश्वर दास के पुत्र संजय कुमार दास ने कहा, मेरे पिता स्वप्नेश्वर दास दिमागी हालत के चलते लापता हो गए थे. मैं तब 13 वर्ष का था और कक्षा 9 में पढ़ता था. पिता की काफी तलाश की, मगर वह नहीं मिल सके थे. उनको मृत समझकर हमने उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया था, लेकिन पता चला कि हमारे पिता जीवित हैं और वह भरतपुर के अपना घर आश्रम में रह रहे हैं. आज उनको लेने आया हूं.
बता दें कि अपना घर आश्रम की स्थापना साल 2000 में भरतपुर में हुई थी, जहां परित्यक्त, दीन, दुखी, बेसहारा, लाचार, मंदबुद्धि सड़क पर घूमते हुए लोगों को आश्रय दिया जाता है. उनकी सेवा की जाती है. उनका इलाज कराया जाता है. जब उनकी स्थिति अच्छी हो जाती है, तो उनके द्वारा बताए गए पते के अनुसार उनको उनके घर भेज दिया जाता है.