सफेद आक के पौधे की जड़ों से बनी वीर गणेश की मूर्ति 11 साल पहले इंदौर से लाई गई थी
प्रतापगढ़। प्रतापगढ़ शहर में डाक बंगला रोड पर राज दरबार परिसर स्थित श्री विजय राघवजी मंदिर में विराजित श्री वीर गणेश की प्रतिमा की पूजा भक्त मनोकामना पूरी करने के लिए करते हैं। इस प्रतिमा की खासियत है कि श्वेत अर्क (सफेद आक) के पौधे की जड़ से 21 वर्ष में स्वयं निर्मित हुई थी। आक से बनी प्रतिमा अमूमन देखने को नहीं मिलती है। करीब डेढ़ फीट ऊंची इस प्रतिमा को 11 साल पहले सन् 2012 में इंदौर से लाकर यहां प्रतिष्ठित किया गया था। क्षेत्र के भक्तों में ये मूर्ति मनोरथ गणेश के नाम से भी विख्यात है। मनोरथ गणेश जी की प्रतिमा का स्वरूप वीर रूप में होने से वे "वीर गणेश" के रूप में यहां स्थापित हैं। इस मूर्ति की स्थापना प्रतापगढ़ स्थित इस मंदिर में राज परिवार के ज्योतिषी स्व. पंडित मदनलाल जोशी के परिजनों द्वारा विधिवत पूजा-अर्चना कर की गई थी।
इसके बाद से आज तक यहां की सेवा-पूजा विजय राघवजी मंदिर के पुजारी पंडित कैलाश जोशी, केदार जोशी द्वारा की जा रही है। पुजारी बताते हैं कि इंदौर में सिलावटपुरा स्थित मंदिर में सन् 1984 से एक मूर्ति की सेवा ब्रह्मलीन तेजकरण राठौर करते आ रहे थे। उनके परिवार के दामाद इंदौर निवासी सुभाष शर्मा को सपने में आक की जड़ से बनी ये प्रतिमा नजर आई। उन्होंने प्रतिमा को जमीन से निकालकर पहले घर और फिर मंदिर में भेंट की। मान्यता है कि किसी भी मंदिर में गणेशजी की दो मूर्ति की सेवा-पूजा एक साथ नही होती। इसलिए सुभाष शर्मा को विचार आया कि इस मूर्ति की स्थापना प्रतापगढ़ में डाक बंगला राज दरबार परिसर स्थित मंदिर में करवा दी जाए। इसी सोच से उन्हें तत्कालीन पुजारी द्वारा ब्रह्मलीन होने से एक दिन पहले अपने पौत्र कबीर राठौर को आज्ञा देकर यह मूर्ति सहर्ष और स्वेच्छा से भेंट दी।