तलाकशुदा महिला के आरोप को Court ने माना गलत, आरोपी दोषमुक्त

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Update: 2024-07-21 09:17 GMT

यूपी UP News। शादीशुदा महिला द्वारा शादी का झांसा देकर दो वर्ष तक दुष्कर्म rape करने के आरोप में लिखाई झूठी रिपोर्ट में फास्ट ट्रैक प्रथम रवि कुमार दिवाकर की अदालत ने चार्ज बनने के पांच महीने में ही आरोपी को दोषमुक्त कर बरी कर दिया। वहीं निर्दोष युवक को दुष्कर्म के आरोप में जेल भिजवाने पर कोर्ट ने महिला को एक हजार रुपये प्रतिकर देने का भी आदेश दिया है। कोर्ट ने एसएसपी को इस केस के विवेचक एसआई दुष्यंत गोस्वामी, तत्कालीन थानाध्यक्ष बारादरी और सीओ तृतीय के खिलाफ कार्यवाही करने के भी आदेश दिए हैं।

बारादरी निवासी युवती की शादी सीबीगंज क्षेत्र CBganj area में हुई थी। शादी के बाद उनके तीन बच्चे हुए लेकिन पति से विवाद होने पर महिला तलाक लिए बिना ही अपने मायके में रहने लगी। आरोप है कि इसी दौरान ससुराल के पड़ोसी राहुल से उसके प्रेम संबंध हो गए। राहुल से महिला के करीब दो साल तक प्रेम संबंध रहे। वह रात में महिला के घर में आकर रुकता था, लेकिन शादी करने से मना कर दिया। इस पर राज्य महिला आयोग के आदेश से 20 अगस्त 2023 को थाना बारादरी में महिला ने राहुल, उसकी मां लक्ष्मी, उसकी बहन की सास बसंती, भाई राजुकमार और बहनोई जितेंद्र व धर्मपाल के खिलाफ रिपोर्ट करायी थी।

इस केस की विवेचना एसआई दुष्यंत गोस्वामी ने की। विवेचना के दौरान विवेचक ने अपनी केस डायरी में लिखा कि शादीशुदा महिला के राहुल से प्रेम संबंध थे, वह उसके के घर पर रुकता भी था। मगर शादी से इनकार करने पर बदले की भावना से महिला ने राहुल समेत अन्य के खिलाफ बढ़ा चढ़ाकर झूठे आरोप लगा दिए। विवेचक ने अपने निष्कर्ष में महिला द्वारा झूठा केस लिखाने की बात दर्जकर लक्ष्मी, बसंती, राजकुमार, जितेंद्र और धर्मपाल को क्लीनचिट देकर राहुल के खिलाफ चार्जशीट लगा दी। जज रवि कुमार दिवाकर की कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि विवेचक ने केस डायरी में स्पष्ट लिखा है कि राहुल के महिला से प्रेम संबंध थे। वह उसके घर पर रुकता भी था। शादी से इनकार करने पर महिला ने राहुल और उसके परिजन के खिलाफ बढ़ा चढ़ाकर आरोप लगा दिए।

कोर्ट ने कहा कि विवेचक खुद ही विवेचना के दौरान इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि मामला झूठा है। इसके बावजूद उसने केस को एक्सपंज कर महिला के खिलाफ कार्यवाही नहीं की। तत्कालीन थाना प्रभारी बारादरी और सम्बंधित सीओ ने भी अपनी पर्यवेक्षण शक्तियों का उपयोग नहीं किया। कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा है कि विवेचक को लिपिक की तरह काम नहीं करना चाहिए। उसका कर्तव्य सत्य का पता लगाना है, न कि दोषसिद्ध करना। इस केस में विवेचक ने सत्य की खोज नहीं की। जज ने अपने आदेश में लिखा है कि न्यायाधीश को भी एक दर्शक मात्र और रिकार्डिंग मशीन नहीं बननी चाहिए। कोर्ट ने कहा है कि विवेचक एसआई दुष्यंत गोस्वामी, तत्कालीन थाना प्रभारी बारादरी, सीओ तृतीय द्वारा अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया गया। एसएसपी बरेली से यह अपेक्षा की जाती है कि वह संबंधित पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करना सुनिश्चित करें। एसएसपी जिले की पुलिस को सचेत करें कि विवेचक का काम सत्य को खोजना है, न कि असत्य कथनों पर अभियुक्त को झूठे केस में फंसाना।


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