मेडिकल की पढ़ाई में तकनीक का चलन, छात्र सीख रहे हैं रिमोट केयर, एआई और एमएल का फन

Update: 2022-12-04 04:42 GMT

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नई दिल्ली (आईएएनएस)| वर्ष 2020 में कोरोना की दस्तक के बाद देश के मेडिकल कॉलेज और इंस्टीट्यूट में डॉक्टरी और फिजिशियन की पढ़ाई करने वाले छात्रों को पढ़ाने के तरीके में बड़ा बदलाव आया है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और मशीन लनिर्ंग (एमएल) जैसी नए जमाने की तकनीकों ने डायग्नोसिस, इलाज, पोस्ट-ऑपरेटिव केयर, रिमोट पेशेंट केयर और पैलिएटिव केयर को एक अलग स्तर पर पहुंचाया है।
नोएडा इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के डीन डॉ आशुतोष निरंजन ने आईएएनएस को बताया , पारंपरिक लनिर्ंग का तरीका तो आने वाले समय में भी रहने वाला है लेकिन नए जमाने के तकनीकी युग में वर्चुअल रियलिटी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लनिर्ंग, कुछ ऐसे तरीके हैं जो भविष्य के डॉक्टरों और फिजिशियन को पढ़ाने और ट्रेनिंग प्रदान करने के लिए अमल में लाए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक से फिजिशियन द्वारा डिजिटल डेटा को सहेजने और डायग्नोसिस तथा प्रोग्नोसिस करने की उनकी क्षमता में सुधार आयेगा।
एक्सपर्ट्स मानते हैं कि पढ़ाने और मूल्यांकन विधियों में कुछ अन्य नए ट्रेंड सामने आए हैं जैसे कि कंप्यूटर एडेड इंस्ट्रक्शन, वर्चुअल पेशेंट (मरीज), ऑगमेंटेड रियलिटी, ह्यूमन पेशेंट सिमुलेशन और छात्र की योग्यता के आकलन के लिए वर्चुअल रियलिटी भी चलन में आ चुकी हैं।
मेडलर्न के मुख्य एग्जीक्यूटिव ऑफिसर दीपक शर्मा ने बताया कि भारतीय हेल्थकेयर के लिए महामारी एक टनिर्ंग प्वाइंट साबित हुई है। पिछली सदी में हेल्थकेयर में नई जानकारी तथा ज्ञान को पूरी तरह से फैलने में 50 साल लगते थे लेकिन 2020 मे नए ज्ञान को फैलने में सिर्फ 73 दिन लगे। पहले प्रैक्टिकल ट्रेनिंग में रिसर्च-आधारित ज्ञान को वास्तविक रूप से अपनाना बहुत धीमा हुआ करता था।
पहले ऐसा इसलिए होता था क्योंकि ज्ञान को व्यापक रूप से लागू होने से पहले डायग्नोसिस और इलाज में मिले नए रिजल्ट को कठोर टेस्टिंग से गुजरना पड़ता था और जब सब कुछ सही रहता था तभी उसे आगे अमल में लाया जाता था। लेकिन अब सब कुछ बदल रहा है। इसके अलावा हेल्थेकेयर मे कई ऐसे अवसर भी आ गए हैं जिसमें मरीजों के लिए बिना किसी खतरे की परवाह किए प्रोफेस्नल्स को नई स्किल्स और ट्रेनिंग दी रही है। अब मरीजों पर प्रयोग ज्यादा नही किए जा रहे हैं। यह सब डिजिटलीकरण से ही संभव हुआ है।
गौरतलब है कि भारत ने हेल्थ प्रोफेसनल्स और इससे सम्बन्धित 53 कैटेगरी को मान्यता दी है। इसके अलावा भारत ने एजुकेशन और ट्रेनिंग की जरूरतों को भी नया रूप दिया है। मेंटल हेल्थ काउंसलर और थेरेपिस्ट आदि इसी तरह की कई कैटेगरी है। इसके अलावा हेल्थकेयर इनफॉर्मेटिक, मॉल्युक्यूलर जेनेटिक्स स्पेशलिस्ट जैसे नए प्रोफेसन को भी सरकार ने मान्यता दी है।
इसके अलावा टेलीमेडसिन और होम हेल्थकेयर में भी काफी मांग बढ़ रही है। ऐसे कोर्सेस की फीस भी कम रखी गई है। रॉयल कॉलेज ऑफ नसिर्ंग, यूके वाले नर्सों के लिए व्यापक स्किल अपग्रेडेशन कोर्स की फीस मात्र 3,000 रुपये प्रति वर्ष है और इसमें 60 आवश्यक विषय शामिल हैं। इमरजेंसी नसिर्ंग एसोसिएशन, यूएस के विशेष कोर्स के लिए फीस 2,500 से लेकर 4,000 रूपए प्रति वर्ष है। हेल्थकेयर प्रोफेसनल भी अपने सॉफ्ट स्किल्स को 500 से रुपए से लेकर 4,000 रुपये मे सुधार कर सकते हैं।
अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन कोर्स जो बेसिक लाइफ सपोर्ट और एडवांस कार्डियोवास्कुलर लाइफ सपोर्ट के लिए अत्याधुनिक सिमुलेशन उपकरण का उपयोग करते हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सर्टिफिकेट देते हैं, उनकी फीस मात्र 3,000 से 11,000 रुपए है।
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