सुरक्षा समूह ने जेपी इंफ्राटेक का किया अधिग्रहण, 20,000 से अधिक घर खरीदारों को राहत
नोएडा (आईएएनएस)| जेपी इंफ्राटेक के 20 हजार होम बायर्स के लिए राहत की खबर है। नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ने कर्ज के बोझ से दबी जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड का अधिग्रहण करने और उसकी विभिन्न परियोजनाओं में करीब 20,000 फ्लैटों को पूरा करने के लिए मुंबई स्थित सुरक्षा समूह को मंगलवार को मंजूरी दे दी।
एनसीएलटी के अध्यक्ष रामलिंगम सुधकर की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय प्रधान पीठ ने सुनवाई पूरी करने और आदेश सुरक्षित रखने के तीन महीने से अधिक समय बाद समाधान योजना को मंजूरी दे दी। पीठ ने जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड (जिल) के समाधान के लिए पेशेवर की याचिका पर पिछले साल 22 नवंबर को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। याचिका में सुरक्षा समूह की बोली के लिए मंजूरी मांगी गई थी। इसके साथ ही नोएडा तथा ग्रेटर नोएडा में विभिन्न अटकी पड़ी परियोजनाओं में करीब 20 हजार फ्लैटों को पूरा करने की मांग की गई थी। जून 2021 में सुरक्षा समूह को जेआईएल के अधिग्रहण के लिए लेनदारों की समिति (सीओसी) की मंजूरी मिली जिसमें बैंक और घर खरीदार शामिल हैं। सीओसी के इस फैसले से 20,000 मकान खरीदारों को रुकी हुई परियोजनाओं में अपने फ्लैटों का कब्जा मिलने की उम्मीद जगी है। जिल के खिलाफ कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया अगस्त 2017 में शुरू की गई थी।
पीठ ने कहा कि आईआरपी द्वारा एक निगरानी समिति का गठन किया जाएगा। यह समाधान योजना के शीघ्र कार्यान्वयन के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगी। समाधान योजना के तहत गठित की जाने वाली समिति का गठन सात दिनों में किया जाएगा। समिति इकाइयों के निर्माण की प्रगति की निगरानी करेगी। जो कि एनसीएलटी के समक्ष प्रति माह प्रगति रिपोर्ट जमा करेगी।
जिल उन 12 कंपनियों की पहली सूची में शामिल थी, जिनके खिलाफ भारतीय रिजर्व बैंक (फइक) ने बैंकों को दिवाला कार्यवाही शुरू करने के लिए एनसीएलटी से संपर्क करने का निर्देश दिया था। इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईसीसी) की धारा 12 (1) में सीआईआरपी को आवेदन की तारीख से 180 दिनों की समय सीमा के भीतर पूरा करना अनिवार्य है। जिसे 330 दिनों के भीतर बढ़ाया और पूरा किया जा सकता है। सीआइआरपी का मतलब कॉपर्ोेट दिवाला समाधान प्रक्रिया है।
2021 में जिल के लिए खरीदार खोजने के लिए बोली प्रक्रिया के चौथे दौर में, सुरक्षा समूह ने 98.66 प्रतिशत मतों के साथ बोली जीती थी। कंपनी को राज्य के स्वामित्व वाली एनबीसीसी की तुलना में 0.12 प्रतिशत अधिक वोट मिले थे। सीओसी में 12 बैंकों और 20,000 से अधिक होमबॉयर्स के पास मतदान का अधिकार था।