सुप्रीम कोर्ट: जब जज ने कहा- जिस स्कूल में मैं पढ़ती थी, वहां...जानें पूरा मामला

Update: 2022-09-07 09:47 GMT

न्यूज़ क्रेडिट: आजतक

नई दिल्ली: केंद्रीय विद्यालयों में अनिवार्य प्रार्थना की परंपरा खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर सुनवाई तब दिलचस्प बातचीत में बदल गई, जब जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने कहा कि मुझे अब भी याद अपने स्कूल की असेंबली है. जिस स्कूल में मैं पढ़ती थी, वहां भी सब एकसाथ खड़े होकर प्रार्थना करते थे.
आजतक की खबर के मुताबिक इस पर याचिकाकर्ता के वकील कोलिन गोंजालविश ने कहा कि केंद्रीय विद्यालय में पढ़ रहे एक छात्र की मां की गुहार है कि अनिवार्य प्रार्थना बंद की जाए. जस्टिस बनर्जी ने कहा कि लेकिन स्कूल में हम जिस नैतिक मूल्यों की शिक्षा लेते और पाठ पढ़ते हैं वो सारे जीवन हमारे पास रहते हैं. कोलिन ने फिर दलील दी कि ये तो सामान्य सिद्धांत और मूल्य हैं, लेकिन कोर्ट के सामने हमारी प्रार्थना एक खास प्रार्थना को लेकर है. ये सबके लिए समान नहीं हो सकता. सबकी उपासना की पद्धति अलग है, लेकिन उस स्कूल में असेंबली के समय सामूहिक प्रार्थना न बोलने पर दंड भी मिलता है.
वकील ने दलील दी कि अब मैं जन्मजात ईसाई हूं, लेकिन मेरी बेटी हिंदू धर्म का पालन करती है. मेरे घर में असतो मा सदगमय नियमित रूप से गूंजता है, लेकिन ये गहराई वाली बात है. जस्टिस बनर्जी ने कहा कि देखिए आज बहुत से मैटर लगे हैं. स्वास्थ्य संबंधित परेशानियों की वजह से मैं कोर्ट का कोई कामकाज नहीं देख पाई. ये निजी मुद्दे हैं. इस मामले को अगले महीने अक्टूबर में लगाते हैं. कोलिन ने कहा कि केंद्रीय विद्यालय संगठन के जवाब पर भी अगली सुनवाई में चर्चा हो. इस पर जस्टिस बनर्जी ने मामले की सुनवाई 8 अक्तूबर तक टाल दी.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और केंद्रीय विद्यालयों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. तब जस्टिस नरीमन की अगुआई वाली बेंच ने कहा ये बडा गंभीर संवैधानिक मुद्दा, जिस पर विचार जरूरी है. दरअसल एक वकील ने याचिका दाखिल कर कहा है कि केंद्रीय विद्यालयों में 1964 से संस्कृत और हिंदी में सुबह की प्रार्थना होती आ रही है जो कि पूरी तरह असंवैधानिक है. ये संविधान के अनुच्छेद 25 और 28 के खिलाफ है. इसे इजाजत नहीं दी जा सकती है.
असतो म सदगमय! तमसो म ज्योतिर्गमय! मृत्योर्मामृतं गमय! ऊँ शान्तिः शांतिः शान्तिः.
अब वेद की ये ऋचाएं भी सुप्रीम कोर्ट में घसीट दी गई हैं. विवाद केंद्रीय विद्यालयों में रोज़ सुबह इन ऋचाओं को दैनिक प्रार्थना में शामिल करने को लेकर है. याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और केंद्रीय विद्यालय संगठन को नोटिस जारी कर पूछा है कि रोजाना सुबह स्कूल में होने वाली इस हिंदी और संस्कृत की प्रार्थना से किसी धार्मिक मान्यता को बढ़ावा मिल रहा है? इसकी जगह कोई सर्वमान्य प्रार्थना क्यों नहीं कराई जा सकती? इन तमाम सवालों के जवाब कोर्ट ने 4 हफ़्ते में तलब किए हैं.
सुप्रीम कोर्ट में विनायक शाह ने याचिका लगाई है. जिनके बच्चे केंद्रीय विद्यालय में पढ़े हैं. याचिका के मुताबिक, देश भर में पिछले 50 सालों से 1125 केंद्रीय विद्यालयों की प्रार्थना में ये ऋचाएं शामिल हैं. इस प्रार्थना में और भी ऋचाएं शामिल हैं, जिनमें एकता और संगठित होने का संदेश है. ओम् सहनाववतु, सहनौ भुनक्तु: सहवीर्यं करवाता है. तेजस्विना वधीतमस्तु मा विद्विषावहै!
कोर्ट इस याचिका पर अगली सुनवाई में केंद्र के जवाब पर विचार करेगा. केंद्रीय विद्यालय संगठन की संहिता को भी चुनौती दी गई है कि कोई छात्र प्रार्थना नहीं गा पा रहे तो उसे मंच पर बुलाकर सबके सामने बताया जाता है कि इसे प्रार्थना याद नहीं. प्रार्थना याद कराने की ज़िम्मेदारी शिक्षक की होती है. याचिकाकर्ता का कहना है कि सरकारी स्कूलों में खासकर केंद्रीय विद्यालयों में प्रार्थना होनी ही नहीं चाहिए क्योंकि वहां नास्तिक और तर्कवादियों के बच्चे भी पढ़ते हैं. वो अभिभावक किसी ईश्वर या प्रार्थना को मानते ही नहीं.
Tags:    

Similar News

-->