सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून पर लगाई रोक, केंद्र सरकार ने जारी की एडवाइजरी

Update: 2022-05-12 02:47 GMT

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया. कोर्ट ने अंग्रेजों के जमाने के इस कानून के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है. साथ ही कहा है कि पुनर्विचार तक राजद्रोह कानून यानी 124ए के तहत कोई नया मामला दर्ज ना किया जाए.

कोर्ट ने कहा है कि राजद्रोह में बंद लोग बेल के लिए कोर्ट जा सकते हैं. बता दें कि राजद्रोह एक गैर-जमानती अपराध है और इसमें सजा तीन साल से लेकर आजीवन कारावास और जुर्माना है.
इस बीच सूत्रों के हवाले से खबर है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को राजद्रोह कानून पर एडवाइजरी जारी की है. केंद्र सरकार ने कहा कि राजद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट के विनोद दुआ बनाम भारत सरकार के फैसले का पालन होना चाहिए.
124ए के तहत एफआईआर तभी दर्ज की जाए जब एसपी के स्तर के अधिकारी इस बात से संतुष्ट हों. अपराध सुप्रीम कोर्ट के ऊपर दिए गए आदेश के आलोक में 124 ए के तहत बनता है. किसी भी नागरिक को सरकार के बारे में कुछ भी कहने और लिखने का अधिकार है जब तक कि वो हिंसा के लिए नहीं उकसा रहा हो या उसका इरादा कानून व्यवस्था की स्थिति बिगाड़ना न हो.
गौरतलब है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के अनुसार, जब कोई व्यक्ति बोले गए या लिखित शब्दों, संकेतों या दृश्य प्रतिनिधित्व द्वारा या किसी और तरह से घृणा या अवमानना या उत्तेजित करने का प्रयास करता है या भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति असंतोष को भड़काने का प्रयास करता है तो वह राजद्रोह का आरोपी है.
जानकारी के मुताबिक 2010 से 2020 के बीच करीब 11 हजार लोगों के खिलाफ देशद्रोह के 816 केस दर्ज किए गए. इनमें सबसे ज्यादा 405 भारतीयों के खिलाफ नेताओं और सरकारों की आलोचना करने पर राजद्रोह के आरोप लगे हैं. यूपीए-2 सरकार की तुलना में एनडीए सरकार के कार्यकाल में हर साल राजद्रोह के मामलों में 28 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. धारा 124 ए का सबसे ज्यादा इस्तेमाल आंदोलनों को दबाने में किया गया.
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