सुप्रीम कोर्ट: अक्‍सर हत्या और गैर इरादतन हत्या में अंतर कर पाना मुश्किल, जानिए मामला

कई बार हत्या और गैर इरादतन हत्या में अंतर कर पाना मुश्किल हो जाता है.

Update: 2021-09-15 17:10 GMT

नई दिल्ली,  कई बार हत्या और गैर इरादतन हत्या में अंतर कर पाना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि दोनों में हत्या हुई होती है। अंतर केवल नीयत का होता है लेकिन दोनों ही अपराध होते हैं। यह बात सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कही है। शीर्ष न्यायालय ने मध्य प्रदेश में पुलिस के एक सब इंस्पेक्टर की हत्या के मामले में दोषी पाए गए व्यक्ति की सजा को बदलते हुए यह टिप्पणी की है।

दोषी मुहम्मद रफीक को पहले हत्या के मामले सजा मिली थी लेकिन जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ ने इसे गैर इरादतन हत्या का मामला माना है। दोषी को उम्रकैद की सजा से राहत देते हुए अब दस साल कैद की सजा दी गई है। रफीक ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट से हत्या के अपराध के लिए मिली उम्रकैद की सजा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
शीर्ष न्यायालय की पीठ ने कहा, आइपीसी की धारा 300 में हत्या की परिभाषा तय की गई है। उसमें हत्या के कारण और मंशा के बारे में बताया गया है। कहा कि हत्या और गैर इरादतन हत्या में अंतर करना अक्सर मुश्किल होता है। किसी भी तरह की हत्या के मामले में नीयत और जानकारी का बिंदु शामिल होता है। जांच में इसी की तलाश करनी होती है।
इस मामले में पुलिस थाने को नौ मार्च, 1992 को सूचना मिली कि एक ट्रक ने वन विभाग का बैरियर तोड़ दिया है और एक मोटरसाइकिल को चपेट में ले लिया है। बताया गया कि मौके पर पुलिस टीम के साथ सब इंस्पेक्टर डीके तिवारी मौजूद थे। पुलिस ने ट्रक को रुकने का इशारा किया लेकिन ड्राइवर मुहम्मद रफीक ने ट्रक की स्पीड तेज कर दी। सब इंस्पेक्टर तिवारी दौड़कर ट्रक पर लटक गए और उसे रुकवाने की कोशिश की।आरोप था कि ड्राइवर रफीक ने उन्हें धक्का दे दिया और ट्रक से सब इंस्पेक्टर को रौंदता हुआ भाग खड़ा हुआ। ट्रक से रौंदे जाने से सब इंस्पेक्टर की मौके पर ही मौत हो गई। निचली अदालत और हाईकोर्ट ने इसे हत्या का मामला माना जबकि हालात का विश्लेषण करने पर सुप्रीम कोर्ट ने गैर इरादतन हत्या का।
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