सुप्रीम कोर्ट ने किया बड़ा फैसला, आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध में वैसी मनोदशा दिखनी जरूरी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उकसाने के अपराध में दोषी ठहराने के लिए अपराध विशेष को अंजाम देने की मनोदशा दिखनी चाहिए।

Update: 2020-10-03 14:09 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| नई दिल्ली, पीटीआइ। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उकसाने के अपराध में दोषी ठहराने के लिए अपराध विशेष को अंजाम देने की मनोदशा दिखनी चाहिए। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने 1997 में पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपित व्यक्ति को अपराधी ठहराने के आदेश को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मकसद को मानकर नहीं चला जा सकता, बल्कि यह स्पष्ट और दिखाई देने वाला होना चाहिए।

जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की पीठ ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मार्च 2010 के आदेश को निरस्त करते हुए उक्त टिप्पणी की। हाई कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धारा-306 (खुदकुशी के लिए उकसाना) के तहत पति को दोषी ठहराए जाने के फैसले को बरकरार रखा था। शीर्ष अदालत ने कहा, 'सभी अपराधों में आपराधिक मन:स्थिति को साबित करना होता है।

आइपीसी की धारा-107 के तहत उकसावे के अपराध को साबित करने के लिए किसी खास अपराध को अंजाम देने की मनोदशा जरूर दिखनी चाहिए ताकि दोष निर्धारित हो सके।' अदालत ने कहा कि आपराधिक मन:स्थिति को साबित करने के लिए यह स्थापित करने या दिखाने के लिए कोई साक्ष्य होना चाहिए कि व्यक्ति कुछ गलत मंशा रखे हुए था और उस मनोदशा में उसने अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाया।

हाई कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा आरोपित को इस मामले में दी गई चार साल की कैद की सजा को बरकरार रखा था। आरोपित की पत्नी के पिता के बयान के आधार पर 1997 में बरनाला में इस संबंध में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी और अभियोजन ने आरोप लगाया था कि पर्याप्त दहेज नहीं दिए जाने को लेकर विवाहिता को परेशान किया जाता था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले में पति या उसके माता-पिता के खिलाफ क्रूरता का कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं है। 

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