सुपरटेक एमरॉल्ड केस : दोनों टावरों के निर्माण की लागत 200 करोड़ से ज्यादा, टूटने में भी आएगा करोड़ों का होगा खर्चा

नोएडा के सेक्टर-93 ए में स्थित सुपरटेक एमरॉल्ड कोर्ट सोसाइटी के दो टावरों को गिराये जाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी कर दिए हैं

Update: 2021-09-01 17:40 GMT

नोएडा के सेक्टर-93 ए में स्थित सुपरटेक एमरॉल्ड कोर्ट सोसाइटी के दो टावरों को गिराये जाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी कर दिए हैं और अब इन टावरों के ध्वस्तीकरण को लेकर मामला गरमा रहा है। जिसके ध्वस्तीकरण का खर्चा भी बिल्डर को ही उठाना होगा और नोएडा प्राधिकरण की जिम्मेदारी होगी कि वह तय समय में इन टावरों को ध्वस्त करायें। 33 मंजिल बन चुके इन टावरों के निर्माण पर 200 करोड़ से अधिक का खर्चा आया है और अब इनको गिराने में भी करोड़ों रुपये खर्च करने होंगे

एमरॉल्ड कोर्ट ग्रुप हाउसिंग प्रोजेक्ट के तहत 15 टावरों का निर्माण किया गया था। इन टावरों में प्रत्येक में सिर्फ 11 मंजिल ही बनी थीं। 2009 में नोएडा प्राधिकरण के पास सुपरटेक बिल्डर ने रिवाइज्ड प्लान जमा कराया। इस प्लान में एपेक्स व सियान नाम से दो टावरों के लिए एफएआर खरीदा। बिल्डर ने इन दोनों टावरों के लिए 24 मंजिल का प्लान मंजूर करा लिया, जिसे बाद में 40 मंजिल तक किया गया। इन टावरों का निर्माण प्रारम्भ हो गया, टावरों के 15 मंजिल तक बनने पर स्थानीय लोगों ने इसको लेकर आपत्ति उठानी प्रारम्भ की और 2010 में पहली आपत्ति लगायी गई, लेकिन कहीं सुनवायी न होने पर 2012 में इसको लेकर हाईकोर्ट में केस किया गया और 2014 में हाईकोर्ट ने इन टावरों को ध्वस्त करने के आदेश दिए, तब तक यह टावर 33 मंजिल बन चुके थे और आज भी 33 मंजिल बने खड़े हैं।
निर्माण विशेषज्ञों के अनुसार इन टावरों के निर्माण की लागत ही दो सौ करोड़ से अधिक है और इस लागत में जमीन की कीमत शामिल नहीं है। एसे में 200 करोड़ की निर्माण लागत का दंड बिल्डर पर पड़ेगा और इस बिल्डिंग को ध्वस्त करने में होने वाला खर्चा भी बिल्डर को ही उठाना होगा और यह खर्चा भी करोड़ो में ही आयेगा। जिसमें आस-पास के टावरों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इन टावरों को बड़ी ही सावधानी से ध्वस्त करना होगा।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अवमानना का भी भय, प्राधिकरण की तैयारी तेज
नोएडा प्राधिकरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है और प्राधिकरण पर अनेक गंभीर आरोप भी लगाये हैं, ऐसे में प्राधिकरण के अधिकारी इस मामले को लेकर गंभीर हैं। प्राधिकरण की सीईओ रितु माहेश्वरी कह चुकी हैं कि कोर्ट के आदेश को मिलते ही उसका पूरा पालन कराया जाएगा। जिसके तहत तीन महीने में इन टावरों को ध्वस्त किया जाना है। यदि तीन महीने में यह टावर ध्वस्त नहीं होते हैं तो यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना भी हो सकती है। जिसको लेकर भी चिंता बढ़ी हुई है। जबकि दूसरी ओर बिल्डर के द्दारा भी इस मामले में पुर्नविचार याचिका दायर करने की तैयारी हैं। अभी तक बिल्डर को सुप्रीम कोर्ट से आदेश की कॉपी नहीं मिली है, जिस दिन आदेश की कॉपी मिलेगी उससे 30 दिन के भीतर वह इस मामले में पुर्नविचार याचिका दायर कर सकते हैं। जिसके संबंध में ग्रुप के प्रबंध निदेशक मोहित अरोड़ा का कहना है कि वह इस मामले में पुर्नविचार याचिका दायर करेंगे।
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