देश भर की जेलों में 2017 से 2021 के बीच हुई 817 अप्राकृतिक मौतों का एक प्रमुख कारण आत्महत्या है। जेल सुधारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित की गयी समिति ने यह जानकारी दी है। समिति ने जेलों में अप्राकृतिक मौतों को रोकने के लिए आत्महत्या रोधी बैरक बनाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस (सेवानिवृत्त) अमिताभ रॉय की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा कि 817 अप्राकृतिक मौतों में से 660 आत्महत्याएं थीं और इस अवधि (2017 से 2021) के दौरान उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 101 आत्महत्याएं दर्ज की गईं।
सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2018 में जेल सुधारों से जुड़े मुद्दों पर गौर करने और जेलों में भीड़भाड़ समेत कई पहलुओं पर सिफारिशें करने के लिए जस्टिस (सेवानिवृत्त) रॉय की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था। शीर्ष अदालत पूरे देश की 1382 जेलों में व्याप्त स्थितियों से संबंधित मामले पर विचार कर रही है। इस मामले की सुनवाई 26 सितंबर को होनी है।
हिरासत में मौत बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन
समिति ने कहा कि हिरासत में यातना या हिरासत में मौत नागरिकों के बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन है और यह मानवीय गरिमा का अपमान है। यूपी के बाद पंजाब में सबसे ज्यादा कैदियों ने कीं आत्महत्याएं...समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि वर्ष 2017 से 2021 के दौरान उत्तर प्रदेश में देश में सबसे अधिक 101 आत्महत्याएं दर्ज की गई हैं, इसके बाद पंजाब और पश्चिम बंगाल में क्रमशः 63 और 60 कैदियों ने आत्महत्या की। 2017-2021 के दौरान केंद्र शासित प्रदेशों में से दिल्ली की जेल में सबसे अधिक 40 आत्महत्याएं दर्ज की गईं।
वरिष्ठ नागरिकों, बीमार कैदियों की वीडियो कान्फ्रेंसिंग से अदालत में पेशी की जाए
समिति ने सिफारिश की है कि जहां तक संभव हो अदालतों में वरिष्ठ नागरिकों और बीमार कैदियों की पेशी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से की जाए। समिति ने कहा कि जेल कर्मचारियों को चेतावनी के संकेतों को पहचानने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए और जेलों में जीवन सुरक्षा के लिए उचित तंत्र तैयार करना चाहिए। इसमें कहा गया है कि जेल प्रशासन को कैदियों के बीच हिंसा को रोकने के लिए तत्काल और प्रभावी कदम उठाने चाहिए। समिति के मुताबिक जेलों में हिंसा को कम करने के लिए यह सिफारिश की जाती है कि जेलों में पहली बार अपराध करने वालों और बार-बार अपराध करने वालों को जेलों, अस्पतालों और अदालतों तथा अन्य स्थानों पर अलग-अलग ले जाया जाना चाहिए।
ट्रांसजेंडर कैदियों के साथ अन्य कैदियों जैसा ही व्यवहार हो
समिति ने यह भी कहा है कि ट्रांसजेंडर कैदियों के साथ अन्य श्रेणियों के कैदियों के समान व्यवहार किया जाना चाहिए और उन्हें समान अधिकार और सुविधाएं मिलनी चाहिए। समिति ने सिफारिश की है कि जेल कर्मचारियों और सभी स्तरों पर सुधारात्मक प्रशासन, विशेष रूप से सुरक्षा कर्मियों को पर्याप्त और नियमित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि उन्हें ट्रांसजेंडर कैदियों के साथ उचित रूप से बातचीत करने में सक्षम बनाया जा सके। ट्रांसजेंडर कैदियों के खिलाफ दुर्व्यवहार, उत्पीड़न या हिंसा की घटनाओं पर अंकुश लगाया जाना चाहिए और इसे अकादमिक और नागरिक समाज से जुड़े व्यक्तियों के साथ कार्यशालाओं और प्रशिक्षण सत्रों की एक शृंखला के माध्यम से हासिल किया जा सकता है।
समिति ने सिफारिश की है कि राज्य सरकारों और जेल विभागों को ट्रांसजेंडर कैदियों के खिलाफ सभी प्रकार की हिंसा, भेदभाव और अन्य नुकसान को खत्म करने के लिए उचित और प्रभावी उपाय करने चाहिए।