भारतीय वैज्ञानिकों की स्टडी, कोरोना वायरस पर आई ये जानकारी

Update: 2021-09-10 05:04 GMT

कोरोनावायरस जब फैला तो कई तरह की अफवाहें उड़ी. कहा गया कि बारिश के मौसम या सर्दियों में ये काफी तेजी से फैलेगा. साथ ही ये भी कहा गया कि उष्णकटिबंधीय जलवायु (Tropical Climate) वाले देशों में कोरोना वायरस शायद ही उतनी तेज फैले, जितना कि अनुमान है. लेकिन भारत जैसे कई देश जो उष्णकटिबंधीय जलवायु या मौसम में आते हैं, वो कोरोना की मार से जूझ रहे हैं. अभी तक इसका कोई पुख्ता सबूत नहीं मिल पाया है कि मौसम का असर कोरोना वायरस पर होता है या नहीं. 

भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा की गई नई स्टडी साल 2020 की गर्मियों और मॉनसून के सीजन में अलग-अलग बड़े शहरों में की गई है. इन बड़े शहरों में मौसम तो अलग रहता ही है, बल्कि यहां की भौगोलिक स्थितियां भी एकदम अलग हैं. स्टडी में यह बात तो स्पष्ट हुई है कि मौसम का असर कोरोना वायरस के फैलाव पर पड़ता है लेकिन अलग-अलग शहरों की भौगोलिक स्थितियों और मौसम के अनुसार यह बदलता भी है. 
साल 2020 में कोरोनावायरस संक्रमण का दर पथरीले शहर पुणे में अलग था, वहीं सूखी दिल्ली में अलग और तटीय शहर मुंबई में एकदम अलग. लेकिन अहमदाबाद के मौसम का कोरोनावायरस के संक्रमण से संबंध बहुत कम था. इन चारों शहरों में की गई स्टडी से यह बात साफ हो गई है कि जैसी उम्मीद थी या जैसी अफवाहें फैली थीं, कि मौसम का सीधा संबंध कोरोना वायरस से हैं. वैसा इन चारों शहरों में पुख्ता तौर पर सामने नहीं आया.
हां एक बात इस स्टडी में साफ हुई है कि साल 2020 में पूरे भारत में कोरोना वायरस का संक्रमण सबसे ज्यादा हवा में तैरने वाली बूंदों के जरिए हुआ. जिसका सीधा संबंध नमी यानी ह्यूमेडिटी से है. लेकिन सूखे इलाकों में भी कोरोना के केस काफी ज्यादा सामने आए. इसका मतलब ये है कि भारत समेत अन्य उष्णकटिबंधीय जलवायु (Tropical Climate) वाले देशों में मौसम से कोरोना के संबंध पर ज्यादा और सटीक अध्ययन की जरूरत है.
कोरोनावायरस का संक्रमण सबसे पहले चीन के वुहान में दिसंबर 2019 में दर्ज किया गया. ये बात बताई गई कि यह वायरस एक इंसान से दूसरे इंसान तक छींक, खांसी या छूने से फैल सकता है. वह फैला भी. थोड़े ही समय में पूरी दुनिया इसकी गिरफ्त में आ गई. WHO के मुताबिक 27 सितंबर 2020 तक 3.27 करोड़ लोग इससे संक्रमित हो चुके थे और 9.91 लाख लोगों की मौत हो चुकी थी. यह बात भी सामने आई कि मौसम का असर सांस संबंधी बीमारियों पर पड़ता है. जैसे- इंफ्लूएंजा और सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (SARS).
इसके बाद कई ऐसी स्टडीज आईं जिसमें कहा गया कि जलवायु और वायु प्रदूषण कोरोना वायरस के संक्रमण और इससे मरने वालों की संख्या में बढ़ोतरी के लिए जिम्मेदार साबित हो सकते हैं. चीन और इंडोनेशिया में कोरोना संक्रमण की दर और वहां के औसत तापमान में काफी गहरा संबंध सामने आया. लेकिन इसके विपरीत स्टडीज भी आईं. अभी तक यह बात स्पष्ट नहीं हो पाई है कि कोरोना के संक्रमण पर मौसम का किस तरह से असर पड़ता है और कितना. खासतौर पर उष्णकटिबंधीय जलवायु (Tropical Climate) देशों या इलाकों में. 
भारत दुनिया का दूसरा सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है. यहां पर कोरोना वायरस का संक्रमण बड़े पैमाने पर हुआ. जनवरी 2020 में केरल में कोरोना का पहला केस सामने आया. मार्च तक यह वायरस पूरे देश में बड़े पैमाने पर फैल चुका था. 25 मार्च 2020 से भारत में लॉकडाउन लगा दिया गया. 31 मई 2020 तक लॉकडाउन रहने के बाद कई बार इसे हटाया और लगाया गया. 27 सितंबर 2020 तक भारत में 59.92 लाख कोरोना केस दर्ज किए जा चुके थे. 
अच्छी बात ये थी कि भारत में कोरोना की वजह से मरने वालों की संख्या कम थी. यहां पर मृत्युदर 2.28 फीसदी था, जबकि वैश्विक स्तर पर यह 3 फीसदी था. लेकिन कोरोना संक्रमण पर मौसम की वजह से पड़ने वाले असर को लेकर कोई सही स्टडी सामने नहीं आई थी. इस बार जो स्टडी की गई है, उसमें तापमान, रिलेटिव ह्यूमेडिटी और एब्सोल्यूट ह्यूमेडिटी को शामिल किया गया है. इन फैक्टर्स को कोरोनाकाल के छह महीनों में जांचा गया है. इस स्टडी में भारत के चार बड़े शहरों को शामिल किया गया है- दिल्ली, मुंबई, पुणे और अहमदाबाद. 
इन चारों शहरों में दिल्ली के बाद मुंबई में सबसे ज्यादा कोरोना के मामले आए. इस स्टडी में इन चारों शहरों का गहन अध्ययन किया गया, जिसमें लॉकडाउन और सामान्य दिनों का भी विश्लेषण किया गया है. ताकि उष्णकटिबंधीय जलवायु (Tropical Climate) के समय कोरोना के संक्रमण पर ध्यान दिया जा सके. इसलिए गर्मियों और मॉनसून के समय को इस स्टडी में शामिल किया गया है. इसी दौरान इन चारों शहरों में सबसे ज्यादा कोरोना मामले दिखाई पड़े. 
पिछले साल 17 सिंतबर को भारत में कोरोना के सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए थे. शुरुआत में कोरोना पर नियंत्रण बेहतरीन रहा. मामले भी कम आ रहे थे और मौतें भी कम हो रही थीं. इसकी वजह लॉकडाउन और यात्राओं पर प्रतिबंध था. लेकिन जैसे ही 1 जून 2020 से अनलॉक की प्रक्रिया शुरु हुई, धीरे धीरे कोरोना के केस भी बढ़ने लगे और मौतों की संख्या भी बढ़ने लगी. सबसे ज्यादा कोरोना के मामले महाराष्ट्र में दर्ज किए गए. पूरे देश में सामने आने वाले कोरोना केस का 21 फीसदी हिस्सा महाराष्ट्र का था. 
पुणे में आबादी कम है लेकिन वहां एक लाख की जनसंख्या पर 2890 केस दर्ज किए गए थे. जबकि, उससे ज्यादा आबादी वाले मुंबई में 1679 मामले सामने आ रहे थे. इसका मतलब ये है कि पुणे के मौसम और मुंबई के मौसम के अनुसार वहां पर कोरोना के मामले कम या ज्यादा थे. अप्रैल के अंत में दिल्ली और पुणे में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ने शुरु हुए थे. दिल्ली में मई के बाद हर दिन आने वाले कोरोना के केस उच्चतम 3947 तक पहुंच गए थे. लेकिन मध्य जुलाई से ये घटने लगे थे.
दिल्ली में दोबारा कोरोना के मामले सिंतबर में फिर तेजी से आने लगे. एक दिन में 4473 तक पहुंच गए. यह चारों शहरों में सबसे ज्यादा कोरोना केस आने का उदाहरण है. वहीं, मुंबई में मध्य अप्रैल से कोरोना के केस बढ़ने शुरु हुए. पुणे में केस बढ़े लेकिन धीमी गति से. अहमदाबाद में अप्रैल में केस बढ़े, जो जून तक बढ़ते रहे. लेकिन बाकी तीनों शहरों की तुलना में यहां पर प्रति दिन आने वाले कोरोना केस की संख्या 200 से 300 ही थी. 
इस स्टडी में यह पता चला कि मुंबई और पुणे के औसत तापमान में काफी ज्यादा अंतर था. जबकि, दिल्ली में शुरुआत में तापमान कम था, लेकिन अप्रैल के बाद यह बढ़ना शुरु हुआ और मई में अपने उच्चतम स्तर पर था. अहमदाबाद में भी तापमान अप्रैल-मई में सबसे ज्यादा था. मुंबई में रिलेटिव ह्यूमेडिटी हमेशा ज्यादा ही रही. जबकि बाकी शहरों में रिलेटिव ह्यूमेडिटी मॉनसून के आने पर बढ़ी. यह जून से लेकर अगस्त तक बनी रही. 
स्टडी में यह बात स्पष्ट हुई कि दिल्ली, मुंबई, पुणे और अहमदाबाद का मौसम अलग-अलग है. रिलेटिव ह्यूमेडिटी और एब्सोल्यूट ह्यूमेडिटी का तीन शहरों में कोरोना संक्रमण बढ़ने में सकारात्मक योगदान है. अहमदाबाद में यह काम नहीं करता. वहीं, अहमदाबाद और दिल्ली का वायुमंडलीय तापमान कोरोना को बढ़ाने में कम योगदान देता है. पुणे और मुंबई में कम तापमान की वजह से कोरोना के केस ज्यादा आए थे. 
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