-ललित गर्ग-
बाल विवाह के खिलाफ असम सरकार ने व्यापक अभियान शुरू करके एक सराहनीय एवं सामाजिक उन्नयन का कार्य किया है। वहां की पुलिस ने ऐसे आठ हजार लोगों को चिह्नित किया है, जिन्होंने कम उम्र में शादी की या कराई। ऐसे विवाह कराने वाले पंडित और मौलवी के खिलाफ भी कदम उठाये जा रहे हैं। वहां की पुलिस ने इस मामले में दो हजार से अधिक लोगों को गिरफ्तार भी किया है। राज्य सरकार का कहना है कि ऐसे विवाहों को अवैध करार दिया जाएगा, निश्चित ही असम सरकार की यह पहल नारी जीवन में एक नया उजाला होगा। नया भारत को निर्मित करते हुए हमें ऐसी अनेक सामाजिक विसंगतियों एवं विडम्बनाओं को दूर करना ही होगा, जिसमें कम उम्र की शादियों एक बड़ा अभिशाप है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नारी जीवन से जुड़े ऐसे अभिशापों से उसे मुक्ति दिलाने के लिये प्रतिबद्ध है। तभी उन्होंने नारी विकास का सपना रात के अँधेरे में बंद आँखों से नहीं, दिन के उजाले में खुली आँखों से देखा है। उनके स्वप्न में नारी के चहुंमुखी विकास की कल्पना के साथ स्त्री और पुरुष की समानता की दस्तक है। मोदी ने 2020 के स्वतंत्रता दिवस सम्बोधन में घोषणा की थी कि देश में लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र को 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 किया जाएगा। वे जो कहते हैं, उसे साकार भी करते हैं, यही कारण है कि करीब एक वर्ष बाद ही प्रधानमंत्री ने अपनी घोषणा को क्रियान्वित कर दिखाया हैै। केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में महिलाओं के लिए विवाह की कानूनी आयु 18 से 21 वर्ष तक बढ़ाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। अब देश में चैदह साल से कम उम्र की लड़की के साथ विवाह करने वालों के खिलाफ पाक्सो अधिनियम के तहत और चैदह से अठारह बरस के बीच की लड़कियों से विवाह करने वालों के खिलाफ बाल विवाह रोकथाम अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज होगा। हालांकि असम सरकार की इस सख्ती से वहां के प्रभावित लोगों में नाराजगी देखी जा रही है, मगर सामाजिक बदलाव के लिए उठाए गए सरकारों के ऐसे कदम को अनुचित नहीं कहा जा सकता।
सरकारों ने बाल विवाह के खिलाफ कड़े कानून बना रखे हैं। प्रशासन ऐसी शादियों पर नजर रखने का प्रयास करता है ताकि निर्धारित उम्र से पहले बच्चों की शादी न होने पाए। मगर इन तमाम कोशिशों के बावजूद बहुत कम उम्र में बच्चों की शादी कर देने का प्रचलन सरेआम चालू है। एक मंजिल, एक दिशा और एक रास्ता, फिर भी स्त्री और पुरुष के जीवन में अनेक असमानताएं रही हंै, समाज की दो शक्तियां आगे-पीछे चल रही थी। इस तरह की विसंगतियों एवं असमानताओं को दूर करने के लिये सोच के दरवाजे पर कई बार दस्तक हुई, जब-जब दरवाजा खोला गया, दस्तक देने वाला वहां से लौटता दिखाई दिया। लेकिन मोदी ने दस्तक भी दी और इसे साकार भी किया है, जिसका स्वागत एवं क्रांतिकारी बदलाव के कदम उठाये जाने चाहिए। असम सरकार ने ऐसे कदम उठाये हैं तो अन्य प्रांतों को भी उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। क्योंकि इससे नारी तेजी से विकास करते हुए अपने जीवन में पसरी अनेक विसंगतियों को दूर होते हुए देख सकेंगी। कानून बनाने का फायदा भी तभी है, जब उसे संपूर्णता में लागू किया जाये। परिवार व समाज को बेटियों के व्यापक हित के लिए ज्यादा ईमानदारी एवं संवेदना से सोचना अपेक्षित है। अब भारत में पुरुष और महिला, दोनों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु सीमा 21 है, जो एक आदर्श एवं समतामूलक समाज की संरचना को आकार देगी।
आज देश में नारी समानता की तस्वीर देखने को मिल रहा है, लड़कियों की देश में साक्षरता दर बढ़ी है, लड़कियों को पढ़ा-लिखा कर सशक्त बनाने पर जोर है, वे प्रशासन, न्याय व्यवस्था, शिक्षा, चिकित्सा, व्यापार, उद्यम, देश विकास में बराबर की भागीदारी निभा रही है। शहरों एवं उच्च वर्गों में शादी की उम्र को लेकर भी जागरूकता देखने को मिल रही है। मगर एक हकीकत यह भी है कि बहुत सारे वर्गों, खासकर निम्न वर्ग में, पिछडे़ क्षेत्रों एवं ग्रामों में विवाह की उम्र आदि को लेकर जागरूकता का अभाव है। कई समुदायों में आज भी यह मान्यता बनी हुई है कि कन्या के रजस्वला होते ही उसका विवाह कर देना चाहिए। कई समाजों में तो लड़के और लड़कियों का बचपन में ही विवाह कर दिया जाता है, फिर उनके योग्य होने के बाद गौना किया जाता यानी उन्हें साथ रहने दिया जाता है। कई समुदायों में लड़कियों की सुरक्षा के लिहाज से भी जल्दी विवाह कर दिया जाता है। वहां माना जाता है कि विवाह के बाद लड़की की अस्मिता पर प्रहार बंद हो जाता है। इन्हीं सब मान्यताओं और धारणाओं के चलते आज भी कम उम्र में विवाह का सिलसिला नहीं रुक पा रहा है। राजस्थान एवं मध्यप्रदेश में तमाम कड़ाई के बावजूद हर साल अक्षय तृतीया के दिन बहुत सारे नाबालिगों की शादियां सार्वजनिक तौर पर कर दी जाती हैं। इन सामूहिक बाल विवाह पर कानून का असर न होना चिन्ताजनक है। क्योंकि इन बाल विवाहों से लड़कियों के जीवन में अनेक वित्तीय, सामाजिक और स्वास्थ्य विषयक दुष्प्रभाव देखने को मिलते हैं, वैज्ञानिक तथ्य यह है कि कम उम्र में लड़कियों का विवाह कर देने और फिर उनके मां बन जाने का सीधा असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है। वे जीवन भर शारीरिक रूप से कमजोर और बीमारियों से घिरी रहती हैं। वे स्वस्थ बच्चों को जन्म नहीं दे पातीं। कम उम्र में ही उनकी मौत हो जाती है। शिशु और मातृ मृत्यु दर पर काबू पाना इसी वजह से चुनौती बना हुआ है।
लड़कियों के विवाह की उम्र का प्रश्न केवल संतुलित समाज व्यवस्था से ही नहीं जुड़ा है बल्कि यह उनके स्वास्थ्य, सोच, सुरक्षा, विकास से भी जुड़ा है। हर देश, समाज एवं वर्ग विकसित होना चाहता है। विकास की दौड़ में महिलाएं भी पीछे क्यों रहे? यह प्रश्न अर्थहीन नहीं है, पर इसके समाधान में अनेक बिन्दुओं को सामने रखकर मोदी ने चिन्तन किया और एक नवनीत समाज एवं राष्ट्र के सम्मुख प्रस्तुत किया है। प्रधानमंत्री ने तब कहा था, 'सरकार बेटियों और बहनों के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है। बेटियों को कुपोषण से बचाने के लिए जरूरी है कि उनकी सही उम्र में शादी हो।' इसके लिए एक टास्क फोर्स की स्थापना हुई थी, जिसमें स्वास्थ्य मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, कानून मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे। टास्क फोर्स ने पुरजोर तरीके से कहा था कि पहली गर्भावस्था के समय किसी महिला की आयु कम-से-कम 21 साल होनी चाहिए। सही समय पर विवाह होने पर परिवारों की वित्तीय, सामाजिक और स्वास्थ्य की स्थिति मजबूत होती है। परिपक्व उम्र में शादी होने का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि लड़कियों को ज्यादा पढ़ने और आजीविका चुनने का मौका मिलता है। वे एक परिवार के कुशल संचालन में भी दक्ष हो जाती है। जगजाहिर है कि बड़ी संख्या में लड़कियों की पढ़ाई, रोजगार, परिवार संचालन की जिम्मेदारी कम उम्र में शादी की वजह से बाधित होती रही है। अपने मौलिक गुणों से सम्पन्न लड़कियों जिस किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ती है तो वह कल-कल करती नदी की तरह निर्मल व पवित्र रहती हुई न केवल स्वयं विस्तार पाती है बल्कि जहां-जहां से वह गुजरती है विविध रूपों में उपयोगी बनती जाती है। उपयोगी बनने की एक उम्र सीमा होती है। इन सब दृष्टियों से असम सरकार का बाल विवाह के विरुद्ध अभियान उचित ही है। मगर इस कड़ाई में उसे यह देखने की जरूरत होगी कि जिन परिवारों के एकमात्र कमाऊ सदस्य इस अभियान में गिरफ्तार होंगे, उनके परिवार का भरण-पोषण कैसे चलेगा। राज्य सरकार को विरोध भी इसी वजह से झेलना पड़ रहा है। पर इससे न सिर्फ वहां, बल्कि दूसरे राज्यों के लोगों को भी एक सबक तो मिलेगा कि कम उम्र में विवाह करने या कराने के क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं। इसलिए महिला मृत्यु दर में कमी लाना और पोषण के स्तरों में सुधार लाना जरूरी है। समय की दस्तक को सुनते हुए मां बनने वाली लड़की की उम्र से जुड़े पूरे मुद्दे को संवेदनशील नजरिये के साथ देखना जरूरी है। स्वस्थ एवं समतामूलक समाज की संरचना का दिल और दिमाग में उठ रहे इस नये सपने को आकार देने में सभी सहभागी बने, ताकि नारी जीवन-निर्माण का नया दौर शुरु हो सके।