नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की उस टिप्पणी पर लोक सभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने असहमित जताई है जिसमें सीजेआई ने संसद की कार्यवाही पर चिंता जताई थी। सीजेआई ने संसद की कार्यवाही में होने वाले हंगामों का जिक्र करते इस बात पर खेद जताया था कि कानून पास करते वक्त उचित बहस नहीं होती। इसी पर अब प्रतिक्रिया देते हुए ओम बिड़ला ने कहा कि यह आरोप सही नहीं है। हर अहम बिल पर व्यापक चर्चा कराई जाती रही है।
दरअसल, सीजेआई की यह टिप्पणी तब सामने आई थी जब पिछले स्वतंत्रता दिवस के मौके पर मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने ध्वजारोहण समारोह कार्यक्रम में शिरकत की थी। उस समय चीफ जस्टिस ने कहा था कि बहस ना होने की वजह से कई ऐसे कानून भी पास हुए जिनमें कुछ कमियां थीं। उस समय उन्होंने यह भी कहा था कि कानून पास करते वक्त संसद में उचित बहस की कमी दिखती है। कानूनों पर बहस ना होने की वजह से भी कोर्ट तक आने वाले मामले बढ़ते हैं।
लोक सभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए अपने एक साक्षात्कार में इस पर जवाब दिया जिसे रिपोर्ट में बकायदा विस्तृत छापा गया है। रिपोर्ट के मुताबिक ओम बिड़ला ने चीफ जस्टिस के आरोप को सिरे से खारिज कर दिया। बिड़ला ने कहा कि सब कुछ रिकॉर्ड पर है और दस्तावेज कभी झूठ नहीं बोलते। उनके तीन साल के कार्यकाल में संसद की कार्य प्रणाली में सुधार आया है और डिबेट लगातार हो रही हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि उनके तीन साल के कार्यकाल में लोकसभा में बहस के लिए तय समय से ज्यादा अलाट किया गया है। पहले जहां चार सवाल ही लिए जाते थे, अब यह संख्या 6 हो चुकी है। बीते तीन सालों के दौरान जीरो ऑवर में 4648 मामले उठाए गए। रूल 377 के तहत 92-93 फीसदी मामलों पर जवाब मिला। बजट या धन्यवाद प्रस्ताव पर भी पहले की अपेक्षा ज्यादा सांसदों ने भागीदारी की। 17वीं लोकसभा के दौरान माहौल काफी बदला है।
ओम बिड़ला ने यह भी कहा कि संसद कभी कार्यपालिका के काम में दखल नहीं देती लेकिन अगर उनकी तरफ से संसद के कामों में दखल दिया जाता है तो वो सुनिश्चित करते हैं कि ऐसा न हो। उधर रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि पिछले कुछ समय से विपक्ष भी संसद में बहस ना कराने का आरोप लगाता रहा है। विपक्षी नेताओं का आरोप है कि सरकार का रवैया तानाशाही भरा रहा है। महत्वपूर्ण बिलों को बगैर चर्चा के पास करा दिया जाता है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना 75वें स्वतंत्रता दिवस पर एक कार्यक्रम में संसद में बिना बहस पास होने वाले बिलों पर चिंता जाहिर की थी। उन्होंने सांसदों के डिबेट से बचने के रवैए पर नाखुशी जताई। उन्होंने पुराने समय से तुलना करते हुए कहा कि पहले संसद के दोनों सदन वकीलों से भरे होते थे। उनका कहना था कि आज के दौर में स्थितियां अलग हैं। यह नीतियों और उपलब्धियों की समीक्षा करने का समय है।