बंगाल बीजेपी में तेज हुई भगदड़, क्या है सीएम ममता बनर्जी का प्लान?

Update: 2022-05-23 06:47 GMT

नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल के बैरकपुर से बीजेपी सांसद अर्जुन सिंह ने रविवार को टीएमसी का दामन थाम लिया है. तीन साल बाद अर्जुन सिंह ने घर वापसी की है, जिन्हें टीएमसी महासचिव अभिषेक बनर्जी ने पार्टी की सदस्यता दिलाई. पिछले 11 महीनों में बीजेपी छोड़कर टीएमसी में आने वाले अर्जुन सिंह पांचवे बड़े नेता हैं. वहीं, बीजेपी के विधायकों की संख्या भी बंगाल में एक साल के भीतर 77 से घटकर 70 पर पहुंच गई है.

बंगाल की मुख्यमंत्री के रूप में लगातार तीसरी बार सत्ता पर काबिज हुईं ममता बनर्जी की नजर अब दिल्ली के सिंहासन पर है. ममता बनर्जी बंगाल के अपने सियासी दुर्ग को दुरुस्त करने में जुटी हैं ताकि 2024 के चुनाव में मजबूती के साथ अपनी दावेदारी पेश कर सकें. इस मिशन के तहत इन दिनों सियासी जनाधार रखने वाले उन सभी विपक्षी नेताओं की एक के एक बाद एक टीएमसी में एंट्री कराई जा रही है.
बता दें कि 2024 के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश की सत्ता से बेदखल करने की लड़ाई काफी कठिन और चुनौतीपूर्ण है. इस बात को ममता बनर्जी भी बेहतर और बाखूबी तौर पर समझती है. इसीलिए ममताअपनी दावेदारी पेश करने से पहले अपने सियासी किले को मजबूत करने में जुटी हैं, जिसकी शुरूआत उन्होंने 2021 के विधानसभा चुनाव जीतने के साथ ही कर दी थी.
पश्चिम बंगाल के कद्दावर नेता मुकुल रॉय ने सबसे पहले जून 2021 में बीजेपी को अलविदा कहा. इसके बाद राजीव बनर्जी, बाबुल सुप्रियो, विश्वजीत दास जैसे नेताओं ने भी बीजेपी छोड़कर टीएमसी का दाम थाम लिया. राजीव बनर्जी त्रिपुरा में पार्टी के प्रभारी हैं जबकि बाबुल सुप्रियो सांसदी छोड़ उपचुनाव में विधायक बन गए हैं. इस फेहरिश्त में अब बड़ा नाम अर्जुन सिंह का भी जुड़ गया है, जो बैरकपुर से सांसद हैं और भाटपारा सीट से 4 बार विधायक रह चुके हैं.
अर्जन सिंह बैरकरपुर इलाके से आते हैं. 2019 में टीएमसी से टिकट न मिलने पर बीजेपी का दामन थाम लिया था. अर्जुन सिंह दिनेश त्रिवेदी को बैरकपुर सीट से हराकर सांसद बने थे, लेकिन 2021 के विधानसभा चुनाव के दौरान ही त्रिवेदी ममता का साथ छोड़कर बीजेपी में एंट्री कर गए. ऐसे में बैरकपुर के इलाके में टीएमसी के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं बचा था, जिसके सहारे ममता टीएमसी को मजबूत कर सकें. ऐसे में अर्जुन सिंह की घर वापसी ने टीएमसी को बैरकपुर इलाके में मजबूत होने का मौका दे दिया है.
मुकुल रॉय, राजीव बनर्जी, बाबुल सुप्रियो, विश्वजीत दास और अर्जुन सिंह ने बीजेपी छोड़कर टीएमसी में एंट्री की है. ये पांचों नेता पश्चिम बंगाल की सियासत में अपना राजनीतिक आधार रखते हैं और अपने ही दम पर जीतने की ताकत. इन पांचों नेताओं की अपने-अपने इलाके में मजबूत पकड़ है, जिसके चलते ही ममता बनर्जी ने सारे गिले-शिकवे भुलाकर अपने साथ लेने में कोई देरी नहीं दिखाई.
मुकुल रॉय उन चंद नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने 1998 में ममता बनर्जी के साथ कांग्रेस का साथ छोड़ा था. ममता बनर्जी के संघर्ष को आगे बढ़ाने में मुकुल रॉय की अहम भूमिका रही है, जिनके चलते ममता बनर्जी अपना मिशन आगे बढ़ा पाईं और कुछ ही सालों में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बन गईं. मुकुल रॉय के भाजपा ज्वाइन करने की 'बड़ी गलती' को भी भूलते हुए ममता ने उन्हें वापस लेकर पुराना रुतबा फिर से दे दिया है.
दरअसल, 2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल को गढ़ बनाने को बेताब बीजेपी ने बड़ी जीत दर्ज करते हुए राज्य की कुल 42 सीटों में से 18 संसदीय सीटें जीती थीं जबकि 2014 में उसे महज दो सीटें मिली थीं. 'ममता बियॉन्ड 2021' (हार्पर कॉलिन्स इंडिया) पुस्तक लिखने वाले बंगाल के वरिष्ठ पत्रकार जयंत घोषाल कहते हैं कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को अपनी पार्टी को अब पहले से कहीं अधिक मजबूती से बंगाल के रण में उतारना होगा, क्योंकि 2024 के रोडमैप के लिए अपने घर को मजबूत रखना ही होगा.
जयंत घोषाल कहते हैं कि ममता बनर्जी का प्लान देश के अन्य बड़े राज्यों में विस्तार से पहले पश्चिम बंगाल में टीएमसी को और अधिक मजबूत करने का है. ममता का पहला लक्ष्य बंगाल की उन 18 सीटों पर वापस कब्जा जमाने का है, जिन्हें 2019 में बीजेपी जीतने में सफल रही थी. इसीलिए ममता बनर्जी एक के बाद एक बीजेपी के सांसदों और बड़े नेताओं को टीएमसी में शामिल कराने की मुहिम में लगी हैं.
जयंत घोषाल कहते हैं कि ममता तेज-तर्रार होने के साथ-साथ अनुभवी भी हैं. वह अपनी ताकत जानती हैं और साथ ही अपनी कमजोरियों से भी वाकिफ हैं. ऐसे में टीएमसी का फोकस किसी धूम-धड़ाके और अव्यावहारिक विस्तार योजना की बजाय धीरे-धीरे रणनीति के तहत ममता बनर्जी की नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय विकल्प के रूप में स्वीकार्यता बढ़ाने पर है ताकि 2024 में अपने लक्ष्य को हासिल कर सकें. ऐसे में ममता बनर्जी बहुत ही सावधानी के साथ पहले पश्चिम बंगाल की सभी 42 सीटों पर टीएमसी की जीत के लिए समीकरण बनाने की है ताकि क्लीनस्वीप कर विपक्ष में वो सबसे बड़े दल के नेता के तौर पर खुद को पेश कर सकें.
पश्चिम बंगाल में बीजेपी में लगातार असंतोष बढ़ता जा रहा है. हाल ही में मुर्शिदाबाद के विधायक गौरी शंकर घोष ने दो अन्य लोगों के साथ इस्तीफा दे दिया था. पिछले कुछ महीनों में, पार्टी को राज्य भर में बड़े पैमाने पर दलबदल और असंतोष का सामना करना पड़ा है. कई वरिष्ठ नेता और विधायक, जो टीएमसी से अलग होकर बीजेपी में चले गए थे, उनमें से तमाम नेता फिर से वापसी कर रहे हैं.
मई में 2021 के विधानसभा चुनावों के परिणाम और टीएमसी को प्रचंड जीत हासिल हुई थी और बीजेपी ने भी अपना सबसे बेहतर प्रदर्शन किया था. बीजेपी ने दिलीप घोष को हटाकर राज्य का नेतृत्व सुकांत मजूमदार के हाथों में सौंप दिया, लेकिन उसके बाद से विरोध, आंतरिक कलह, विधायकों का दलबदल तेज हो गया है. इसके बाद बंगाल में जो भी चुनाव हुए हैं, सभी में बीजेपी को हर चुनाव में हार का सामना करना पड़ा.
पिछले कई महीनों में दलबदल के कारण बीजेपी के कुल विधायकों की संख्या 77 से घटकर 70 हो गई है. इस तरह फायदे की बजाय बीजेपी नुकसान हुआ है. बीजेपी नए और पुराने नेताओं के बीच संतुलन बनाने में जूझ रही है, जिसका सियासी फायदा ममता बनर्जी को मिल रहा है. टीएमसी बंगाल में अपने सियासी आधार के मजबूत करने में जुटी है ताकि 2024 की सियासी पारी जबरदस्त तरीके से खेल सके. 
साभार: आजतक
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