तो चली जाएगी 30 लाख नौकरियां!...TCS, Infosys, Wipro, HCL बड़ी छंटनी को तैयार...पढ़े ये रिपोर्ट

IT कंपनियों में बड़ी छंटनी की तैयारी!

Update: 2021-06-17 01:18 GMT

फाइल फोटो 

मुंबई : IT Sector Layoffs: जिस तेजी के साथ इंडस्ट्रीज में ऑटोमेशन का दखल बढ़ रहा है, टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए उनकी नौकरी जाने का खतरा भी उतनी ही तेजी से बढ़ रहा है. एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि घरेलू सॉफ्टवेयर कंपनियां जहां अभी 1.6 करोड़ कर्मचारी काम करते हैं, 2022 तक 30 लाख कर्मचारियों की छंटनी को तैयार है. इससे उन्हें सालाना 100 बिलियन डॉलर की बचत करने में मदद मिलेगी.

घरेलू IT कंपनियों में होगी 30 लाख की छंटनी!
Nasscom के अनुसार, घरेलू आईटी क्षेत्र में लगभग 1.6 करोड़ लोग काम करते हैं, उनमें से लगभग 90 लाख लोग लो-स्किल्ड और बीपीओ में काम करते हैं. इन 90 लाख कम-कुशल सेवाओं और बीपीओ में से, 2022 तक 30 परसेंट या लगभग 30 लाख अपनी नौकरी गंवा देंगे, जो मुख्य रूप से रोबोट प्रोसेस ऑटोमेशन या RPA की वजह से होगा.
2022 तक 30 की लाख नौकरी जाएगी: रिपोर्ट
रिपोर्ट के मुताबिक TCS, Infosys, Wipro, HCL, Tech Mahindra और Cognizant जैसी कंपनियां और कई दूसरी कंपनियां भी RPA अप-स्किलिंग की वजह से 2022 तक लो-स्किल्ड 30 लाख लोगों को बाहर का रास्ता दिखाने की योजना बना रही हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत-आधारित संसाधनों पर सालाना 25,000 डॉलर और अमेरिकी रिसोर्सेज पर सालाना 50,000 डॉलर का खर्च आता है. छंटनी के बाद सैलरी और कॉर्पोरेट से जुड़े खर्चों पर कंपनियों को करीब 100 बिलियन डॉलर की बचत कराएगा.
ऑटोमेशन का असर अमेरिकी नौकरियों पर भी
मोटे तौर पर घरेलू कंपनियों में 7 लाख लोग अकेले RPA से ही रिप्लेस कर दिए जाएंगे. और बाकी अन्य टेक्नोलॉजी अपग्रेड और अपस्किलिंग से होंगे. जबकि RPA का सबसे बुरा असर अमेरिका में होगा, बुधवार को जारी Bank of America की रिपोर्ट के मुताबिक यहां 10 लाख लोगों की नौकरियां जा सकती हैं.
भारत, चीन सबसे ज्यादा निशाने पर
स्किल डिसरप्शन का सबसे ज्यादा असर भारत और चीन पर पड़ेगा. जबकि ASEAN, फारस की खाड़ी और जापान कम से कम जोखिम में हैं. शायद सबसे चिंताजनक ट्रेंड ये है कि उभरते बाजार की नौकरियों में ऑटोमेशन का सबसे ज्यादा जोखिम होता है क्योंकि मैन्यूफैक्चरिंग जैसे क्षेत्रों की निम्न/मध्य-कुशल प्रकृति, समय से पहले डी-इंडस्ट्रियलाइजेशन के खतरों को उजागर करती है. भारत ने अपना मैन्यूफैक्चरिंग शिखर 2002 में देखा, जबकि यह 1970 में जर्मनी में, 1990 में मैक्सिको में हुआ.
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