महाकाल मंदिर के पास की खोदाई में मिल रहे शुंग, गुप्त व परमारकालीन पुरा-संपदा
महाकाल मंदिर के पास चल रही खोदाई में अब तक शुंग, गुप्त व परमार काल की पुरा संपदाएं प्राप्त हुई हैं।
उज्जैन, महाकाल मंदिर के पास चल रही खोदाई में अब तक शुंग, गुप्त व परमार काल की पुरा संपदाएं प्राप्त हुई हैं। मध्य प्रदेश स्थित धर्मनगरी उज्जैन का ज्योतिर्लिग महाकाल मंदिर मानवीय सभ्यता, संस्कृति, स्थापत्य कला तथा प्राचीन इतिहास को जानने व समझने का नया केंद्र होगा। दरअसल, मध्य प्रदेश पुरातत्व विभाग द्वारा मंदिर के समीप की जा रही खोदाई में अब तक शुंग, गुप्त व परमार काल की पुरा संपदाएं प्राप्त हुई हैं। पुराविदों के अनुसार भूगर्भ से प्राप्त स्थापत्य खंड व पात्रों के अवशेष बताते हैं कि उज्जैन की बसाहट दो हजार साल से अधिक पुरानी है। उस समय यहां मंदिरों की विराट श्रृंखला और भव्य राज-प्रासाद रहे होंगे।
पुरातत्व विभाग के शोध अधिकारी डा. धु्रवेंद्र सिंह जौधा ने बताया 40 दिनों से खोदाई का काम जारी है। इसमें एक हजार साल पुराने परमारकालीन शिव मंदिर का आधार भाग दिखाई देने लगा है। मंदिर के आसपास ब्लैक बेसाल्ट का परिक्रमा पथ भी मिला है। प्राचीन मूर्तियों में अष्टभुजा गणेश, चर्तुभुजी चामुंडा, चतुर्भुज विष्णु की मूर्ति विशेष हैं। ये सभी मूर्तियां 11वीं शताब्दी की हैं। इनके अलावा आमलक, कलश, मंजरी, भारवाही कीचक, शार्दुल के रूप में प्राचीन मंदिर के अनेक स्थापत्य व वास्तुखंड भी प्राप्त हुए हैं।
भूगर्भ से प्राप्त पुरासंपदाओं के मिलने का क्रम यहीं समाप्त नहीं होता, बल्कि इनमें शुंग व गुप्त काल के मिट्टी के बर्तनों के अवशेष तथा ईटें भी मिले हैं, जोकि अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। मंदिर के दक्षिण-पश्चिम भाग में नौवीं-10 वीं शताब्दी का शिव¨लग भी मिला है। शिव¨लग का सबसे नीचे वाला ब्रह्म भाग चतुष्ट कोणीय, मध्य का विष्णु भाग अष्टकोणीय तथा सबसे ऊपर का रुद्र भाग खंडित अवस्था में प्राप्त हुआ है। इसका अर्थ है कि इस नगर में धर्म, अध्यात्म, नगरीय परंपरा व मानवीय सभ्यता का इतिहास दो हजार साल से अधिक पुराना है।
यूं शुरू हुई खोदाई
महाकाल मंदिर के समीप नवनिर्माण के लिए वर्ष 2020 में खोदाई शुरू हुई थी। तब प्राचीन मंदिर की एक दीवार नजर आई थी। धीरे-धीरे काम आगे बढ़ा और मई 2021 में पुरा-संपदा भूगर्भ से बाहर निकली। तब मध्य प्रदेश पुरातत्व विभाग के आयुक्त शिवशेखर शुक्ला ने पुरातत्व अधिकारी डा. रमेश यादव के नेतृत्व में चार सदस्यीय दल गठित कर खोदाई स्थल का निरीक्षण करवाया व आगे की खोदाई पुरातत्व विभाग की निगरानी में करवाने को कहा। इसके बाद दो हजार साल से अधिक पुराना इतिहास सामने आया।