खून की तस्‍करी का बेहद चौंकाने वाला मामला

Update: 2022-07-02 04:36 GMT

न्यूज़ क्रेडिट: हिंदुस्तान

लखनऊ: लखनऊ के ब्‍लडबैंक में फर्जी डोनर का बड़ा मामला सामने आया है। डीएम ने खुद ये मामला पकड़ा तो राजधानी में हड़कंप मच गया। डीएम ने शुक्रवार को पुराने शहर के वजीरहसन रोड स्थित स्वास्तिक चैरिटेबल ब्लड बैंक में छापा मारा। रजिस्टर में दर्ज एक रक्तदाता के मोबाइल नंबर पर फोन किया तो होश उड़ गए। फोन उठाने वाले ने कहा कि पीलीभीत से बोल रहा हूं, रक्तदान कौन कहे, मैं तो लखनऊ ही कभी नहीं आया। डीएम ने विधिक कार्रवाई के लिए ड्रग कंट्रोलर को रिपोर्ट भेजी है।

गौरतलब है कि इसके अलावा राजधानी के कुछ अन्‍य ब्‍लड बैंकों में गड़बड़ि‍यां सामने आई हैं। खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग (एफएसडीए) की शुरुआती जांच में पता चला है कि ठाकुरगंज स्थित मिडलाइफ चैरिटेबल ब्लड बैंक में ढाई साल से खून का अवैध कारोबार चल रहा था।
स्वास्तिक चैरीटेबल ब्लड बैंक में डीएम को मौके पर मेडिकल अफसर नहीं मिले। रजिस्टर में ब्लड डोनर के नाम दर्ज थे। जांच में शामिल ड्रग इंस्पेक्टर माधुरी सिंह ने उनमें से रैंडम आधार पर 10 नंबरों पर कॉल की। इनमें चार ने कहा कि उन्होंने रक्तदान नहीं किया। चार ने फोन रिसीव नहीं किया तथा दो ने रक्तदान की बात स्वीकार की। ब्लड बैंक में मेडिकल अफसर, टेक्निकल सुपरवाइजर, टेक्नीशियन और नर्स की तैनाती के बारे में एफएसडीए को कोई सूचना नहीं भेजी गई।
ठाकुरगंज स्थित मिडलाइफ चैरिटेबल ब्लड बैंक में ढाई साल से खून का अवैध कारोबार चल रहा था। दिसंबर 2019 में ब्लड बैंक को लाइसेंस मिला। इसके बाद ही खून का अवैध कारोबार शुरू हो गया। राजस्थान और दिल्ली समेत दूसरे राज्यों से खून लाकर मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ किया जा रहा था।
यह तथ्य खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग (एफएसडीए) की शुरुआती जांच में सामने आए हैं। ब्लड बैंक खुलने के बाद दलाली में कूद गया। ब्लड बैंक के दलालों ने अस्पतालों से संपर्क साधा। ग्राहक के बदले अस्पताल को मोटा कमीशन देते थे। अफसरों के मुताबिक मिडलाइफ ब्लड बैंक में रोजाना 20 से 30 मरीजों को खून जारी करता था। रक्तदान पांच से सात लोग करते थे। बाकी जरूरतमंदों को बिना डोनर मुंह मांगी कीमत पर खून दिया जाता था। अफसरों का दावा है कि जो लोग डोनेशन नहीं करते थे, उन्हें आठ से 10 हजार में खून दिया जाता है। डोनेशन वालों को पांच हजार रुपये में एक यूनिट खून मिलता था।
कृष्णानगर के नारायणी ब्लड बैंक का मालिक अजीत दुबे एक साल पहले तक सेना में नायब सूबेदार था। वह सेना में ब्लड ट्रांसफ्यूजन यूनिट में था। रिटायर होते ही उसने ब्लड बैंक खोलकर खून का काला कारोबार शुरू कर दिया था। एसटीएफ की पूछताछ में अजीत ने ऐसा ही कुबूला। उसने बताया कि ब्लड कैम्प लगाने के लिये ब्लड बैंक का ट्रस्ट से संचालित होना जरूरी है। इस पर अजीत दुबे ने हाथरस के वैष्णवी फाउण्डेशन चैरिटेबल ट्रस्ट से सम्बद्धता दिखायी। बदले में ट्रस्ट संचालक अनिल पिपरोहा को 25 प्रतिशत हिस्सेदारी दी।
एसटीएफ डिप्टी एसपी प्रमेश शुक्ला ने बताया कि जुलाई, 2021 में अजीत दुबे रिटायर हुआ था। अनिल पिपरोहा आगरा का है। ट्रस्ट से सम्बद्धता मिलते ही अजीत दुबे ने ब्लड कैम्प लगाने शुरू कर दिये थे। कैम्प में रक्तदान से आधा खून लिखापढ़ी में लाया जाता था, बाकी काले कारोबार में इस्तेमाल होता था। एसटीएफ ने बताया कि डॉ. पकंज त्रिपाठी नारायणी ब्लड बैंक में मेडिकल आफीसर था। उसका अपना मानव ब्लड बैंक कृष्णानगर में चलता है। पत्नी मेडिकल आफीसर है। डॉ. पंकज भी वान्टेड है। तलाश जारी है।
मरीजों की जान से खिलवाड़ करने वाले मिडलाइफ और नारायणी ब्लड बैंक को एफएसडीए ने नोटिस कर दिया है। जवाब पर कार्रवाई होगी। रिपोर्ट आकलन के बाद दोनों ब्लड बैंक के लाइसेंस भी रद्द किए जा सकते हैं। ड्रग इंस्पेक्टर माधुरी सिंह ने बताया कि दूसरे राज्यों से खून लाने पर रोक नहीं है। दूसरे राज्यों से खून लाने के लिए नैको की गाइडलाइन पालन नहीं किया गया। जवाब मांगा है। एफएसडीए अफसरों की मानें तो जांच में गड़बड़ी पर ब्लड बैंक का लाइसेंस रद्द होगा।
अवैध कारोबार को रफ्तार देने के लिए मिडलाइफ नए ब्लड बैंकों पर जाल फेंकता था। मोटी कमाई का लालच देता था। झांसे में नारायणी चैरिटेबल ब्लड बैंक आलमबाग भी फंस गया। मार्च 2022 में नारायणी चैरिटेबल ब्लड बैंक को लाइसेंस मिले। इसके संचालक से मिडलाइफ ब्लड बैंक के दलालों ने संपर्क किया और ज्यादा कमाने का लालच देकर फंसाया।
साभार: हिंदुस्तान
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