नई दिल्ली: कश्मीर मुद्दे पर अलग-थलग पड़े पाकिस्तान को तुर्की के बाद अब अजरबैजान ने भी सपोर्ट किया है. पाकिस्तान के प्रमुख अखबार एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान में अजरबैजान के राजदूत खजर फरहादोव ने सोमवार को कहा कि उनका देश संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के अनुरूप कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का खुलकर समर्थन करता है. रिपब्लिक ऑफ अजरबैजान की स्वतंत्रता की 30वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए फरहादोव ने कहा कि 'अजरबैजान यूएन के प्रस्तावों के अनुसार कश्मीर मुद्दे पर पूरी तरह से पाकिस्तान के साथ है. पाकिस्तान ने अजरबैजान की अखंडता से संबंधित सभी मामलों का खुलकर समर्थन किया है और पाकिस्तान पहला ऐसा देश है जिसने अजरबैजान को मान्यता दी थी.'
अजरबैजान के राजदूत ने इसके अलावा तुर्की, पाकिस्तान और अजरबैजान के बीच त्रिपक्षीय समझौते को लेकर भी बात की. इस कार्यक्रम में नेशनल असेंबली के अध्यक्ष असद कैसर और तुर्की तथा यूरोपियन यूनियन समेत कई विदेशी राजदूतों ने शिरकत की थी और इस समारोह में पाकिस्तान और अजरबैजान के झंडों से सजा केक भी काटा गया.
वहीं, इस मामले में असद कैसर ने कहा कि पाकिस्तान और अजरबैजान के बीच काफी करीबी और दोस्ताना संबंध हैं. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान और अजरबैजान शांति से रहना चाहते हैं, हालांकि दोनों देश कश्मीर और कराबाख जैसे मुद्दों का सामना कर रहे हैं. उन्होंने इसके अलावा अजरबैजान के लोगों को विवादित क्षेत्रों का हल निकलने पर बधाई भी दी. गौरतलब है कि पिछले साल ही आर्मीनिया, अजरबैजान और रूस ने नागोर्नो-काराबाख के विवादित हिस्से पर सैन्य संघर्ष को समाप्त करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था.
असद ने बाकू की अपनी यात्रा के अनुभव को साझा करते हुए कहा कि अजरबैजान और आर्मेनिया की संसदों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं. इस समझौते के तहत दोनों देशों के बीच व्यापार, निवेश और लोगों के बीच संपर्क को बढ़ावा देने पर सहमति बनी है. उन्होंने इसके अलावा कश्मीर का राग भी अलापा और कहा कि इस क्षेत्र में चल रही क्रूरता की वे निंदा करते हैं. असद ने कहा कि कश्मीर मुद्दे का समाधान केवल संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के माध्यम से ही संभव है और उन्होंने इस मुद्दे का समर्थन करने के लिए अजरबैजान सरकार और उसके लोगों को धन्यवाद भी दिया.
बता दें कि नागोर्नो-काराबाख का विवादित हिस्सा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अजरबैजान का हिस्सा माना जाता है मगर 1994 से ये इलाका यहां रहने वाले जातीय अर्मीनियाई लोगों के हाथों में था. कई साल पुराने इस विवाद में अजरबैजान और जातीय अर्मीनियाई लोगों के बीच छह हफ्तों तक युद्ध भी चला था. समझौते के बाद आर्मीनिया के प्रधानमंत्री निकोल पाशिन्यान ने इस समझौते को अपने और अपने देशवासियों के लिए दर्दनाक बताया था.