नई दिल्ली: शिवसेना ने सामना अखबार के जरिए पेट्रोल-डीजल पर वैट का मुद्दा उठाया है. शिवसेना ने कहा कि केंद्र सरकार महाराष्ट्र के साथ अन्याय करना बंद करे. बता दें कि कोरोना संक्रमण के केस बढ़ने पर चौथी लहर की आशंका को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ समय पहले सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बातचीत की थी. इस दौरान वैक्सीनेशन, ऑक्सीजन की उपलब्धता और अस्पतालों की तैयारियों पर चर्चा हुई. लेकिन अखबार का दावा है कि इस मीटिंग में गैर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को 'ताना' मारा गया.
वर्तमान में पेट्रोल-डीजल के दाम 100 रुपये से अधिक हो गए हैं. कांग्रेस के शासन में पेट्रोल की कीमत 70 रुपए लीटर हुई थी तो भाजपा हंगामा करते हुए महंगाई के खिलाफ सड़क पर उतर आई थी. उस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. तब उन्होंने सवालों की बौछार करते हुए कहा था कि 'प्रधानमंत्री महंगाई पर बोलते क्यों नहीं? वे चुप क्यों हैं?'. अब मोदी मंत्रिमंडल के सदस्य महंगाई का समर्थन करते हैं और सवाल पूछते हैं कि मोदी क्या पेट्रोल-डीजल के दाम कम करने के लिए प्रधानमंत्री बने हैं?
अखबार के मुताबिक, पीएम मोदी का कहना है कि पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि एक वैश्विक समस्या है, लेकिन मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहने के दौरान भी पेट्रोल-डीजल आज की ही तरह वैश्विक समस्या थी. पीएम मोदी ने 'कोरोना' की चर्चा में ईंधन दर वृद्धि का मुद्दा उठाया था. पीएम मोदी ने सुझाव दिया था कि विपक्षी दलों की सरकार वाले राज्य पेट्रोल-डीजल से 'वैट' कम करें.
सामना में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश सहित 5 राज्यों के चुनाव को देखते हुए पीएम मोदी ने तेल के दामों में 5 रुपये की कमी की थी, लेकिन चुनाव जीतने के बाद 10 रुपयों की भारी बढ़ोतरी कर दी. केंद्र को महाराष्ट्र पर अन्याय बंद करना चाहिए. देश के सकल कर में महाराष्ट्र का हिस्सा 38.3 फीसदी है, लेकिन टैक्स की सिर्फ 5.5 फीसदी रकम ही रिटर्न में मिलती है. देश को सर्वाधिक राजस्व महाराष्ट्र ही देता है. फिर भी राज्य के अधिकार के GST का बकाया 26 हजार 500 करोड़ रुपए केंद्र सरकार दे नहीं रही है. जिन राज्यों में भाजपा के मुख्यमंत्री नहीं हैं, उन राज्यों से केंद्र की मोदी सरकार बैर वाला बर्ताव कर रही है. ममता बनर्जी ने भी मोदी के बर्ताव पर आक्रोश व्यक्त किया है.
सामना अखबार के मुताबिक, पीएम मोदी हर मामले में राज्यों को जिम्मेदार ठहराते हैं. पेट्रोल-डीजल की दरों में बढ़ोतरी, कोयले की कमी, ऑक्सीजन के अभाव के लिए पीएम ने राज्यों को जिम्मेदार ठहराया है. मोदी सरकार ने 8 साल में पेट्रोल-डीजल के माध्यम से 26 लाख करोड़ जमा किए हैं. मनमोहन के कार्यकाल में कच्चा तेल 140 डॉलर प्रति बैरल था. फिर भी पेट्रोल की कीमत 75 रुपए से ज्यादा नहीं हुई. जबकि मोदी सरकार 30 से 100 डॉलर के भाव में कच्चा तेल खरीद रही है, लेकिन ईंधन की कीमत 100 रुपये के पार पहुंच गई है.
सामना के मुताबिक बैठक में चर्चा एकतरफा ही थी. मुख्यमंत्रियों को अपने विचार व्यक्त करने का मौका ही नहीं दिया गया. ममता बनर्जी कहती हैं कि कोरोना की परिस्थितियों का जायजा लेने के लिए मीटिंग का आयोजन किया गया था. लेकिन प्रधानमंत्री ईंधन दर वृद्धि पर क्यों बोलते रहे? पीएम मोदी को इसे टालना चाहिए था. बंगाल ने बीते 3 वर्षों में ईंधन दर वृद्धि को नियंत्रित रखने के लिए 1500 करोड़ रुपए खर्च किए. यह केंद्र को क्यों दिखाई नहीं देता?