मुंबई: चार राज्यों में हुए उपचुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा. अब इसे लेकर शिवसेना ने बीजेपी पर निशाना साधा है. शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में कहा, बीजेपी ने उपचुनाव के दौरान धार्मिक हिंसा को भड़काने की कोशिश की. हनुमान चालीसा-मस्जिदों पर लाउडस्पीकर के मुद्दे को उठाया, इसके बावजूद उसकी हार हुई. लिखा गया कि उपचुनाव में हार हिंसा कराने वालों के मुंह पर तमाचा है.
दरअसल, चार राज्यों की 5 सीटों पर उपचुनाव हुए थे. इनमें एक लोकसभा और चार विधानसभा की सीटें थीं. बीजेपी इस उपचुनाव में एक भी सीट जीतने में सफल नहीं रही.
पश्चिम बंगाल में आसनसोल लोकसभा सीट पर टीएमसी प्रत्याशी शत्रुघ्न सिन्हा और यहां की बालीगंज विधानसभा सीट से टीएमसी प्रत्याशी बाबुल सुप्रियो ने जीत हासिल की. छत्तीसगढ़ की खैरागढ़ विधानसभा सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी को जीत हासिल हुई है. इसके अलावा महाराष्ट्र के कोल्हापुर में कांग्रेस प्रत्याशी और बिहार के बोचहां में आरजेडी ने जीत हासिल की है.
सामना में लिखा, चार राज्यों में हुए उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी हार गई है. इसका मतलब ये नहीं कह सकते हैं कि भाजपा के विरोधियों को अभूतपूर्व सफलता मिली है. इस उपचुनाव के परिणामों का महत्व बस इतना ही है कि भाजपा और उसके किराए के पिट्ठुओं द्वारा जहां देशभर में धार्मिक द्वेष का विषाणु फैलाए जाने और धार्मिक हिंसा भड़काए जाने के बीच हुए चुनाव में भी बीजेपी को हार मिली. यह चुनाव जीतने के लिए सांप्रदायिक हिंसा कराने वालों के मुंह पर तमाचा है.
शिवसेना ने आगे लिखा, कोल्हापुर उत्तर विधानसभा सीट पर कांग्रेस की जयश्री जाधव ने जीती है. विधायक चंद्रकांत जाधव के निधन से यह सीट खाली हुई थी. महाविकास अघाड़ी ने उनकी पत्नी जयश्री जाधव को उम्मीदवार बनाया था. यह चुनाव प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल के गृह क्षेत्र में था. पहले चंद्रकांत पाटिल ने खुद उतरने का ऐलान किया था. लेकिन बाद में वे गायब हो गए.
शिवसेना ने लिखा, इसका मतलब यह नहीं है कि भाजपा ने कोल्हापुर नॉर्थ को जीतने की कोशिश नहीं की. उन्होंने एक बड़े तंत्र को काम में लगाया, बहुत पैसा खर्च किया. मतदाताओं को पैसे बांटते हुए भाजपा के लोगों को रंगे हाथ पकड़ा गया. कोल्हापुर के हिंदुत्ववादी मतदाताओं को गुमराह करने की कोशिश की. देवेंद्र फडणवीस कोल्हापुर में डेरा डाल कर बैठ गए. इस दौरान 'मस्जिदों पर लाउडस्पीकर के खिलाफ हनुमान चालीसा' जैसे मुद्दों को गरम किया गया. इन सबका प्रभाव कोल्हापुर के मतदाताओं पर नहीं पड़ा.
सामना में लिखा गया, ऐसे छोटे चुनावों में ईवीएम में झोल करने में भाजपा की दिलचस्पी नहीं होती है. इसी का लाभ विरोधियों को भी मिलता है. फिर भी पूरी दृढ़ता के साथ और एकजुट होकर चुनाव लड़ें तो भाजपा को पराजित किया जा सकता है, ये चार राज्यों के उपचुनावों ने दिखा दिया. सांप्रदायिक हिंसा पर चिंता व्यक्त करते हुए 13 दलों द्वारा एक संयुक्त बयान जारी किया गया था. भाजपा की राजनीतिक हार उसी के बिच्छू के जहर की काट है. कोल्हापुर और पश्चिम बंगाल ने ये दिखा दिया.